Hillywood News : lockdown में गाँव वापसी दर्शकों को खूब भायी जाने क्या है पूरी कहानी ।। web news ।।


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गाँव वापसी पहाड़ का दर्द समेटे सुखद जीवन की ओर ले जाने वाली सच्ची कहानी

गाँव वापसी - पर्वतीय बिगुल फ़िल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी पलायन पर बनी लघु फ़िल्म दर्शकों को खूब भ रही है । इस फ़िल्म के माध्यम से लेखक/निर्देशक प्रदीप भंडारी ने पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की पीड़ा आम मानस तक लाने की ईमानदार कोशिश की है । गांव वापसी लॉक डाउन के प्रथम चरण में पर्वतीय बिगुल फ़िल्म के यु ट्यूब चैनल पर रिलीज की गयी गाँव वापसी फ़िल्म को दर्शकों ने भरपूर प्यार दिया अभी तक 1 लाख 75 हजार से ज्यादा बार देखा गया साथ ही 2 हजार से ज्यादा लाइक इस फ़िल्म को you tube चैनल पर मिल चुके है ।फ़िल्म आलोचकों एंव प्रशंसकों द्वारा उत्तराखंड की संस्कृति के काम करने वाले प्रदीप भंडारी व टीम के सदस्यों से फ़िल्म हिंदी में रिलीज करने पर सवाल जरूर पूछे लेकिन प्रदीप भंडारी के संतोषपूर्वक जबाब से सभी लोग संतुष्ट हुए और फ़िल्म जबदस्त वाइरल हुई ।

कोरोना वाइरस संकट के चलते लॉक डाउन प्रवासियों की हो रही है गाँव वापसी

ऐसा फ़िल्म लिखते समय सोचा भी नही जा सकता था कि लोग भारी संख्या में गाँव वापसी करेंगे। लेकिन जब संकट की घड़ी आती है तो अपना गाँव अपनी मिट्टी की याद जरूर आती है । लॉक डाउन में जब लोग परेशान हो रहे थे तो गाड़ी न मिलने के बाद भी पैदल ही घर पहुचने की कोशिश कर रहे थे। उत्तराखंड में लाखों लोग गांव लौट चुके है या फिर इंतजार में है पलायन आयोग की रिपोर्ट भी आ चुकी है कि लोग यही रोज़गार की तलाश में है ऐसे लोगों को गांव वापसी फ़िल्म देखकर स्वरोजगार के विकल्प पर जरूर सोचना चाहिए ।

गावँ वापसी फ़िल्म देखने के लिए इस लिंक पर जाएं-https://youtu.be/GpetPqo9ayI

जानिए "गाँव वापसी" हिन्दी में क्यों ??

बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है । साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्टभूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ । पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं। दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फिल्म में के जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानते हैं कि उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - रवाल्टा,जाड़भाषा, भाषा, बंगाली, अच्छा, तोल्छा, जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में कुमइया, सोयाब, अस्कोटी, सीराली, खसपर्जिया, चौंक खर्सिया, रंगोलीआदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषाओं को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है। मुझे विश्वास है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे गढ़प्रेमी संतुष्ट होंगें, धन्यवाद- प्रदीप भण्डारी, लेखक/निर्देशक, गांव वापसी

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