Latter : अपने बच्चों के साथ साथ आपके बच्चों का ध्यान रखने वाले आरिफ खान की शिक्षा मंत्री को लिखी चिठी हो रही है वाइरल, आप भी पढें ।। web news।।


सधन्यवाद आभार माननीय शिक्षा मन्त्री श्री अरविंद पाण्डेय जी, उत्तराखंड शासन

अभिभावकों को सरकारी स्कूल का रास्ता दिखाने के लिए सही भी है जब हम 93-95 से पहले वाले लगभग सभी अभिभावक इन्ही स्कूलों मे तो पढ़े हैं और आपके आशिर्वाद से लगभग 95% छात्र उस समय के सरकारी स्कूलों मे पढ़े हुए कामयाब भी हैं । अब जबकि आपने अभिभावकों को फीस के मुद्दे पर सरकारी स्कूलों का रास्ता दिखा ही दिया है तो इन प्राइवेट स्कूलों मे भी ताला बंदी शुरू करवा दीजिए क्योंकि ये आपके शिक्षा विभाग की NOC पर ही चल रहे हैं न और फिर सोसायटी एक्ट 1860 की धारा (21) मे पंजिकृत सोसायटी पर ही तो चल रहे हैं न no profit no loss वाले चैरिटी का शपथपत्र भर कर सरकार से मुफ्त की जमीन,सरकारी लोन, सरकारी ग्रान्ट, और सरकारी छूट के दम पर अब आप ही बताइए मंत्री जी जब अभिभावकों के लॉक डाउन के दौरान एक महीने की फीस न जमा करने पर इन्होने कोर्ट और सरकार का दरवाजा खटखटा दिया अपने कर्मचारियों की तनख्वाह काट दी लोन और खर्चो की दुहाई देने लगे तो यदि हमने अपने बच्चे इन स्कूलों से निकाल कर सरकारी स्कूलों मे डाल दिये तो ये सब तो सड़को पर आ जाएंगे न जाने कितने कर्मचारियों की नौकरी चली जायेगी और इनके हाथों मे तो कटोरा आ जायेगा और फिर आप जैसे गणमान्यजन मुख्यातिथि बनकर कहाँ जाएंगे ,मुख्यमंत्री राहत कोष मे लाखों करोड़ों रुपये कैसे और कहां देंगे ये ! और रही हमारे बच्चों को सरकारी स्कूलों मे भेजने की बात तो सर्वप्रथम जितने जनप्रतिनिधियों के बच्चे, सरकारी नौकरियों के मजे ले रहे कर्मचारियों के बच्चे , सरकारी शिक्षकों और शिक्षा विभाग मे कार्यरत कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों मे डलवा दो मै खुद व्यक्तिगत तौर पर वचन देता हूँ कि मै अपने बच्चों को सरकारी स्कूल मे डलवा दूंगा ! और माफ करना मंत्री जी छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा हूँ पहले ये तो बतायें यदि मै दुर्गम क्षेत्रों के स्कूलों की बात छोड़ भी दुँ जहां आज भी बच्चे मिलों चलकर ,रस्सी पर लटक कर अपनी जान जोखिम मे डालकर ऐसे सरकारी स्कूलों मे पढ़ने जाते हैं जहां न छत है न दीवारें, न जहां शौचालय है न वाचनालय और कई विद्यालयों मे तो आपके द्वारा नियुक्त शिक्षक भी आगे ठेके पर किसी थोड़ा बहुत पढ़े लिखे बेरोजगार युवक या युवती को अपनी जगह स्कूल चलाने का ठेका देंकर घर पर आराम फरमाता है । अब दूर न जाकर उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून के सरकारी स्कूलों का हाल तो किसी से छुपा ही नही है आज भी नगर निगम क्षेत्रों के स्कूलों की हालत इतनी दयनीय है कि कभी भी स्कूल का प्लास्टर या छत गिरने से बच्चों के चोटिल होने का खतरा बना रहता है छात्र छात्राओं को शौचालय के लिए भी झाड़ी और दीवार का सहारा लेना पड़ता है यदि इक्का दुक्का शौचालय हैं भी स्कूलों मे तो उन पर स्टाफ का ताले के साथ कब्जा हुआ है और यदि किसी विद्यालय मे छात्रों को टॉयलेट नसीब भी हो गयी तो किसी मे दरवाजे नही होंगे तो किसी मे शीट और पानी नही होगा । वैसे पिछले साल ही सरकार अपने स्कूलों मे किताबें मुहैया नही करवा सकी जिसके कारण 56000 (छप्पन हजार) या 57000 (सत्तावन हजार) छात्रों का एक साल खराब हो गया था । और सबसे आखरी और महत्वपूर्ण सवाल हमने अपने बच्चे सरकारी स्कूलों मे क्या दाल- भात (मिड डे मील) खाने भेजने हैं या फिर स्कूल मे झाड़ू पोछा लगाने ....? आपके समक्ष दो तस्वीरें प्रेषित कर रहा हूँ ये मेरे खुद के मोबाइल से आपके जिला BJP कार्यालय और नगर शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के पीछे स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय मे ली गयी तस्वीरें हैं जिसमे एक बच्ची के एडमिशन को लेकर आपके बदलाव वाले सरकारी स्कूल मे जाना हुआ तो एक बच्ची को झाड़ू लगाते देखा पूछने पर उसने बताया कि सब बच्चों की बारी आती है झाड़ू और साफ सफाई करने की जब प्रिंसिपल से इस बात जनाकारी ली तो वो उल्टा बच्ची को ही धमकाने लगीऔर सरकारी बजट का हवाला देकर सफाई कर्मचारी न रख पाने की मजबूरी बता कर अपना पक्ष रखती नजर आयी और ये हाल तब है जबकि नगर शिक्षा अधिकारी का कार्यालय और सत्ताधारी पार्टी का कार्यालय उनके नजदीक है अन्य जगहों का तो अल्लाह ही मालिक है । बच्ची का चेहरा छिपा दिया है ताकि उसकी व्यक्तिगत पहचान छुपाई जा सके.......*

एक जागरूक, पीड़ित व आपके बयान से आहत अभिभावक
आरिफ खान (राष्ट्रीय अध्यक्ष)
नैशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स (NAPSR)

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