Lockdown effect : अभिभावको पर दोहरी मार छिना रोजगार, स्कूलों का बिना पढ़ाई फीस जमा करवाने का तुगलगी फरमान ।। web news network ।।

आदेश-पत्र
उत्तराखंड शासन की ओर से सभी जिलाधिकारियों दिया गया  आदेश पत्र


फीस वसूलने से अभिभावकों में गुस्सा

नई टिहरी।। सी.पी.भद्री ।। निजी विद्यालयों में फीस माफी को लेकर स्थिति स्पष्ट नही है। जबकि सरकार लॉकडाउन की अवधि की फीस न लेने का आदेश पूर्व में कर चुकी है। इसके बावजूद भी निजी विद्यालय अभिभावकों से फीस वसूलने की कवायद शुरू कर चुके है। निजी विद्यालयों का तर्क है कि लॉकडाउन के चलते उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है और वह अब अपने शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कार्मिकों का वेतन नहीं दे सकते है। दूसरी ओर इस कोरोना महामारी के चलते कई अभिभावकों का रोजगार छूट गया है तो कई अभिभावकों को वेतन नही मिल पाया है। ऐसे में ये अभिभावक विद्यालयों की फीस कैसे चुका पाएंगे यह चिंता का विषय है। 

निजी विद्यालयों में लगभग 65 प्रतिशत उन अभिभावकों के बच्चे हैं जिनका रोजगार कोरोना के चलते अब संकट के दौर से गुजर रहा है। जिनमे होटलों, कंपनियों, फैक्ट्रियों व अपने प्राइवेट संस्थान चलाने वाले लोग शामिल है। निजी विद्यालयों के प्रबंधन में उन अभिभावकों के प्रति कोई संवेदना नही है जिनका रोजगार छूट गया है।



सरकार के दोगले चरित्र के कारण निजी विद्यालयों का फीस वसूली को लेकर साहस बढ़ गया है। 22 अप्रैल 2020 को आर. मीनाक्षी. सुंदरम, सचिव उत्तराखंड शासन की ओर से सभी जिलाधिकारियों को दिए  आदेश में कहा गया है कि शुल्क जमा करने के लिए विद्यालयों को अनुमति प्रदान की जाती है जो अभिभावक स्वेच्छा से जमा कर सकते है। साथ ही कहा गया है कि एक बार मे वर्तमान माह का ही शुल्क लिया जाएगा। उक्त आदेश ने निजी विद्यालयों को फीस वसूली का मौका दिया है। 

पिछले बीस दिनों से निजी विद्यालय ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर आडम्बर रच रहे है। वाट्स ग्रुप के माध्यम से बच्चों को काम दिया जा रहा है। शिक्षकों का बच्चों के साथ कोई संवाद नही है। बच्चे स्कूल के किसी भी सामान का उपयोग नही कर रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद निजी विद्यालयों को अपनी फीस चाहिए ये कैसा शिक्षातंत्र है।


निजी विद्यालय तर्क दे रहे है कि फीस के बिना शिक्षकों व अन्य कर्मियों को दो माह का वेतन नही नही दे सकते। तो दूसरी तरफ अभिभावकों का कहना है कि निजी विद्यालय जितनी एडमिशन फीस और मासिक फीस लेते है उसके एवज में शिक्षकों को बहुत कम वेतन दिया जाता है। निजी विद्यालयों का करोड़ों का टर्न ओवर है। यदि वह शिक्षकों को दो- दो महीने का वेतन एडवांस में भी दें तो भी कोई दिक्कत नही है।
उदाहरण स्वरूप यदि एक विद्यालय में 5000 छात्र- छात्राएं है और प्रत्येक की फीस लगभग 2000 रुपये है तो 1 करोड़ रुपये कुल धनराशि होगी। यदि अधिक से अधिक 50 प्रतिशत वेतन और अन्य खर्चो में व्यय होता है तो पचास प्रतिशत की बचत होती है। यह तो केवल एक माह की अनुमानित तस्वीर है। पूरे वर्ष का अनुमान आप स्वयं लगा सकते है। जबकि इसमे प्रवेश और पुनः शुल्क शामिल नही है। अब आप ही सोचिये की शिक्षा की कंपनी चलाने वाले कितने निर्दयी और संवेदनहीन है। संकट की इस घड़ी में भी फीस वसूलने के रास्ते तलाश रहे है। लेकिन और दुख की बात तो यह है कि सरकार भी इसमें इन निजी विद्यालयों का ही साथ दे रही है।

इसी बीच एक सकारात्मक पहल Dehradun से की गयी अभिभावक हितों के लिए संघर्षरत संगठन नैशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स NAPSR  ने  COVID 19 लॉक डाउन के चलते अभिभावकों की आर्थिक तंगी को देखते हुए और निजी स्कूलों की मनमानियों पर अंकुश लगाने के लिए फीस माफी के लिए  ने नैनीताल हाई कोर्ट मे दाखिल करी जनहित याचिका ।



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