हेमा नेगी करासी : उत्तराखंडी लोकगीतों की जागर शैली की मधुर आवाज ।।web news।।
लोकगायिका हेमा नेगी करासी की संगीत की पहली पाठशाला
रूद्रप्रयाग जिले के दशज्यूला गाँव निवासी चंद्र सिंह नेगी जी के घर जन्मी उनकी छः संतानों में हेमा चौथे नंबर की है, हेमा बाल्य काल से ही अपने पिताजी के मधुर कंठ से जागर, लोकगीतों, दांकुडी,झुमेलो, चौंफुला को सुना करती थी। महज 4 बरस की बाल्य अवस्था से ही हेमा की रुचि संगीत में होने लगी थी हेमा ने जब दे देवा बाबाजी.... गीत अपने पिताजी को सुनाया तो पिताजी ने शाबासी दी बस फिर हेमा की रुचि और बढ़ी जो आज लाखों करोड़ों संगीत प्रेमियों की चहीती बन गयी । हेमा ने नरेंद्र सिंह नेगी , बंसती बिष्ट , प्रीतम भर्तवाण के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए नयी पीढ़ी की जागर गायिका का मुकाम हासिल किया ।हेमा नेगी करासी की गायकी यात्रा
2003 में इंटर काॅलेज कांडई में वार्षिकोत्सव में हेमा नेधरती हमारा गढ़वाल की गीत गाया ,सुरीले कंठ से स्वरों के उतार चढ़ाव के साथ यह गीत हेमा की गायिकी का शुरुआत थी इस प्रोग्राम में दूरदर्शन और आकाशवाणी से लोग आये हुये थे जो इस आवाज को सुनकर झूम उठे यह हेमा का संगीत के क्षेत्र में अनोपचारिक डेब्यू था क्योंकि हेमा की पहली ऑडियो कैसेट क्या ब्वन तब 2005 में आयी जिसके साथ हेमा की संगीत की दुनिया मे शुरुआत हुई साथ ही इसी साल गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी के साथ कथा कार्तिक स्वामी की एलबम रिलीज हुई। इन गीतों के साथ गायकी की शुरुआत करने वाली हेमा की आवाज और अंदाज लोगों के मन को खूब भाया । 2008 में हेमा परिणय बंधन में बंधी फलस्वरूप हेमा कुछ सालों तक अपने प्रशंसकों के लिए नये गीत न ला सकी लेकिन हेमा को संगीत की धुन पुनः खींच ले आयी 2012 में माई मठियाणा देवी व 2013 में गिर गेंदुआ एलबम रिलीज हुई ,हेमा के सबसे ज्यादा व्यू मेरी बामणी गीत को मिले जिसे अभी तक 16 मिलियन से अधिक लोग देख चुके है। लेकिन 2013 में रिलीज गीत गिर गेंदुआ जागर गीत हेमा नेगी का सिग्नेचर गीत है जिसे उनके प्रशंसक औऱ उत्तराखण्ड संस्कृति प्रेमी बार बार और उनके लाइव प्रोग्राम में हर बार सुनना चाहते है ।
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