शनिवार, 15 मार्च 2025

फूलदेई: उत्तराखंड का प्रकृति प्रेम से जुड़ा पर्व | Phooldei Festival in Uttarakhand

फूलदेई त्योहार के दौरान उत्तराखंड के पहाड़ों में खिले पीले फूल | Phooldei Festival Uttarakhand
उत्तराखंड  में बसंत ऋतु के आगमन पर फूलदेई पर्व मनाने की तैयारी मे सजे पहाड़ ।

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत में कई अद्भुत पर्व और त्योहार हैं, जो न केवल प्रकृति से जुड़ाव दर्शाते हैं, बल्कि समाज में मेलजोल और प्रेम को भी बढ़ावा देते हैं। इन्हीं में से एक है फूलदेई, जो बसंत ऋतु के स्वागत में मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर बच्चों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है, जहाँ वे ताजे फूलों को एकत्र कर घर-घर जाकर शुभकामनाएँ देते हैं। इस त्योहार की जड़ें इतिहास, लोककथाओं और परंपराओं में गहराई से समाई हुई हैं।

फूलदेई का इतिहास और महत्व

फूलदेई पर्व का संबंध उत्तराखंड की प्राचीन कृषि परंपराओं और प्रकृति पूजन से है। यह त्योहार वर्ष के उस समय आता है, जब पहाड़ों में बसंत ऋतु दस्तक देती है, बर्फ पिघलती है, और जंगलों में रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, यह पर्व स्थानीय देवी-देवताओं को समर्पित माना जाता है। मान्यता है कि अगर घरों की देहरी पर फूल अर्पित किए जाएँ और मंगल गीत गाए जाएँ, तो परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इसे देवी पार्वती और भगवान शिव के आशीर्वाद से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि हिमालय पार्वती का मायका माना जाता है।

फूलदेई से जुड़ी लोककथाएँ और किवदंतियाँ

1. फूलों की देवी का आशीर्वाद

एक पुरानी लोककथा के अनुसार, किसी समय उत्तराखंड के एक गाँव में भीषण अकाल पड़ा। न फसल उग रही थी, न बारिश हो रही थी। एक दिन, गाँव के एक बच्चे को स्वप्न आया कि यदि वे जंगलों से ताजे फूल लाकर घर-घर सजाएँ और देवी से प्रार्थना करें, तो गाँव में खुशहाली लौट आएगी।

गाँव के सभी बच्चों ने इस परंपरा को अपनाया, और कुछ ही दिनों में बारिश शुरू हो गई, जिससे फसलें फिर से हरी-भरी हो गईं। तभी से फूलदेई पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।

2. राजकुमारी की मनोकामना और फूलदेई

एक अन्य लोककथा के अनुसार, हिमालय की तलहटी में बसे एक राज्य की राजकुमारी बहुत दयालु थी। उसने एक साधु से सुना कि यदि बसंत ऋतु में बच्चे फूलों को घर-घर सजाएँ और देवी को समर्पित करें, तो राज्य में कभी कोई संकट नहीं आएगा।

राजकुमारी ने यह परंपरा शुरू की, और धीरे-धीरे यह पूरे उत्तराखंड में लोकप्रिय हो गई। आज भी यह पर्व बच्चों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।

फूलदेई की परंपराएँ और उत्सव

फूलदेई पर्व के दिन सुबह-सुबह बच्चे जंगलों और बगीचों से ताजे फूल इकट्ठा करते हैं। वे इन फूलों को थालियों में सजाकर गाँव या कस्बे के हर घर के दरवाजे पर रखते हैं और शुभकामनाएँ देते हैं। इस दौरान पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। घर के लोग बच्चों को मिठाई, गुड़, चावल, या पैसे देकर आशीर्वाद देते हैं।

पारंपरिक फूलदेई गीत:

"फूल देई, फूल देई,
घर द्वार भर देई।
देवी देवता आशीष दे,
सुख समृद्धि से घर महके।"

यह पर्व केवल बच्चों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का उत्सव है। इस दिन परिवार अपने घरों की सफाई करते हैं, आंगन में फूल सजाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

फूलदेई का आधुनिक रूप

आज के दौर में जब शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, फूलदेई जैसी परंपराएँ गाँवों तक ही सीमित होती जा रही हैं। हालाँकि, उत्तराखंड में अब भी यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। राज्य के सांस्कृतिक संगठनों और विद्यालयों में भी इसे बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सके।

फूलदेई पर्व न केवल प्रकृति से प्रेम और सामुदायिक सौहार्द्र का संदेश देता है, बल्कि यह हमें हमारी संस्कृति की अनमोल धरोहर से भी जोड़े रखता है।

फूलदेई केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देने का पर्व है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें अपने पर्यावरण को संजोना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को इसकी महत्ता बतानी चाहिए। उत्तराखंड की यह परंपरा हमारे समाज की एक अनमोल धरोहर है, जिसे बचाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।

"आओ मिलकर फूलदेई मनाएँ, प्रकृति और संस्कृति से जुड़ाव बढ़ाएँ!"

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