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शनिवार, 5 जून 2021

World Environment Day : जिला विधिक सेवा प्राधिकरण एवं सामाजिक संस्थाओं ने पेंटिंग प्रतियोगिता और वृक्षारोपण कार्यक्रम किए ।।Web News।।





विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर DLSA ,जिला समाज कल्याण विभाग व सामाजिक संगठनों ने विभिन्न कार्यक्रमों का किया आयोजन

देहरादून आज पर्यावरण दिवस के अवसर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला समाज कल्याण विभाग देहरादून व सामाजिक संस्थाओं ने सिंगल मंडी कुसुम बिहार की बस्ती में बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए पेंटिंग प्रतियोगिता कराई गई । बच्चों को पर्यावरण का महत्व समझाया गया साथ ही वृक्षारोपण के माध्यम से बच्चों को पौधे लगाने के प्रति जागरूक किया गया। इस दौरान बच्चों ने पौधारोपण के साथ सुंदर सुंदर पेंटिंग्स भी बनाई।


कुछ बच्चे जो नशे में लिप्त थे उनकी काउंसलिंग करके नशा न करने और नशे से बचने के तरीके भी बताए गए।आज के इस कार्यक्रम में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से समीना सिद्दीकी, विमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट फाउंडेशन से मानसी मिश्रा, मैक संस्था से जहांगीर आलम, गगन फाउंडेशन से वैजयंती माला आदि लोग उपस्थित रहे।

देखे वीडियो, पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का जीवन परिचय


World Environment Day : यूसर्क ने उत्तराखंड में जल सुरक्षा एवं जलसंरक्षण पर केंद्रित पर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया ।।web news।।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यूसर्क नेपर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन

आज विश्व पर्यावरण दिवस 2021 के अवसर पर उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क), देहरादून द्वारा ऑनलाइन माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस वर्ष निर्धारित की गई थीम "ईकोलॉजिकल रेस्टोरेशन" के अंतर्गत "उत्तराखंड में जल सुरक्षा एवं जलसंरक्षण पर केंद्रित पर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशेषज्ञों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का संचालन करने हुये यूसर्क के वैज्ञानिक डा० ओम प्रकाश नौटियाल ने किया।


कार्यक्रम में यूसर्क की निदेशक प्रो० (डा०) अनीता रावत ने कहा कि पांचों तत्वों के शुद्धिकरण एवं पुनर्जीवन पर केंद्रित एप्रोच के माध्यमों से एक जल तत्व को केंद्रित करते हुए आज का कार्यक्रम "एनवायर्नमेंटल सोलूशन्स फोकसिंग ऑन वाटर प्रोटेक्शन एंड कंजर्वेशन इन उत्तराखंड" विषय पर आयोजित किया गया । 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विख्यात पर्यावरणविद एवं पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता सचिदानंद भारती द्वारा मुख्य व्याख्यान दिया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में उत्तराखण्ड की जल समस्याओं के समाधान हेतु पाणी राखो आन्दोलन पर विस्तार से बताते हुये तथा पहाड़ी चाल, खाल के महत्व एवं उनकी आवश्यकता पर बताया। 
कार्यक्रम में "क्लीनिंग ऑफ रिवर्स एण्ड रिजुविनेशन आफ स्माल ट्रिब्यूटरीज इन उत्तराखण्ड" विषय पर पैनल डिस्कसन भी किया गया, जिसमें बोलते हुये हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय बादशाही थाल परिसर के जल विशेषज्ञ एवं प्रोफेसर एन० के० अग्रवाल ने कहा कि पहाड़ के छोटे-छोटे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करके नदियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस दिशा में सामूहिक जन सहभागिता आवश्यक है। पैनल डिस्कसन में कोसी नदी पुनर्जीवन के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर शिवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि जलागम प्रबन्धन करके, सघन पौधारोपण एवं जन सहभागिता से कोसी, कुंजगढ़, सरोटागाड, गगास, रामगंगा नदियों जल स्रोतों का पुनर्जीवित किया जा रहा है। हैस्को के भूवैज्ञानिक विनोद खाती ने चाल, खाल, नौले धारे के पुनर्जीवन हेतु जन सहभागिता के साथ भू वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी स्थान पर वर्षाजल संचयन विधियां अपनाने को कहा तथा पहाड़ में पुनर्जीवित किये गये जलस्रोतों के अनुभव बताये ।

यूसर्क द्वारा आयोजित की गयी जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता एवं जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान हेतु नवाचार समाधान विषयक लेखन प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों का परिणाम यूसक की वैज्ञानिक डा० मन्जू सुन्दरियाल एवं डा० राजेन्द्र सिंह राणा द्वारा घोषित किया गया। 

प्रतियोगिता परिणाम सीनियर वर्ग

◆जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता के सीनियर वर्ग अपराजिता (हरिद्वार) ने प्रथम स्थान,अशंमान सुजलबेरीने (पिथौरागढ़)द्वितीय व उदय सती (रानीख़ेत)तृतीय स्थान प्राप्त किया
◆जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता के सीनियर वर्ग में उत्कर्ष धपोला (बागेश्वर) ने प्रथमक० नीहारिका शर्मा (देहरादून) ने द्वितीय व कृष्णा पाण्डे (नैनीताल) ने तृतीय स्थान प्राप्त किया ।

देखे वीडियो, पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का जीवन परिचय


कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन यूसर्क के वैज्ञानिक डॉ. भवतोष शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों शिक्षकों सहित कुल 90 लोगों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम के आयोजन में यूसर्क की आई०सी०टी० टीम के ओम जोशी, उमेश जोशी, राजदीप जंग, शिवानी पोखरियाल द्वारा सकिय प्रतिभाग किया गया। माटी संस्था, हिमालयन ग्राम विकास समिति गंगोलीहाट, डी०एन०ए० लैब, किशन असवाल, पवन शर्मा, डा० शम्मू प्रसाद नौटियाल, विनीत, एल०डी० भट्ट, प्रो० के० डी० पुरोहित, पर्यावरणविद प्रताप पोखरियाल उत्तरकाशी, दीप जोशी बागेश्वर, सुनील नाथन बिष्ट चमोली द्वारा चर्चा में प्रतिभाग कर अनुभव बताये गये।

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मंगलवार, 30 मार्च 2021

पर्यावरण समाचार : पर्यावरण प्रेमी चंदन सिंह नयाल का हरित वन क्रान्ति से जुड़ने का आह्वान ।।web news।।

Harit-wan-kranti

घर घर की एक ही आवाज, हरित वन क्रांति की शुरुआत - चंदन सिंह नयाल

जहां एक ओर लगातार जंगल खत्म होते जा रहे हैं और दूसरी ओर जंगलों से उत्पन्न होने वाले जल स्रोत भी धीरे-धीरे समाप्त होने के कगार पर हैं इस स्थिती को देखते हुए चन्दन सिंह नयाल एक हरित वन क्रांति को गति देने का प्रयास कर रहे हैं जैसा किस शब्द से ही प्रतीत होता है हरित वन अर्थात हरे-भरे वन हमें पुनः से अपने वनों को हरा भरा करना है जिसके लिए इस क्रांति को प्रत्येक व्यक्ति द्वारा शुरू करना पड़ेगा जिस प्रकार कृषि को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रांति का जन्म हुआ उसी प्रकार लगातार पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए जंगलों के अंधाधुन कटान को देखते हुए और जल स्रोतों को सूखते देखते हुए हरित वन क्रांति शुरू होने जा रही है हम आज नहीं जागे तो समय हमारे लिए नहीं रुकेगा प्रत्येक घर से प्रत्येक व्यक्ति की इस क्रांति में भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि जल जंगल जमीन हम सब की जरूरत है ।

हरित वन क्रान्ति के मुख्य उद्देश्य

◆ चौडी पत्ती के जंगलों को संरक्षित करना
◆चौडी पत्ती के पौधों का पौधा रोपण करना 
◆फलदार पौधे लगाकर रोजगार उत्पन्न करना
◆जल स्त्रोतों का संरक्षण करना 
◆जंगल में उत्पन्न होने वाले औषधीय पौधों की खेती करना 

वन हरित क्रांति से जुड़ने के लिए सम्पर्क किया जा सकता है 

●पर्यावरण प्रेमी, चंदन सिंह नयाल फोन नम्बर 7249971445
●फेसबुक पेज- पर्यावरण प्रेमी चन्दन सिंह नयाल
●ट्वीटर हैंडल - CHANDAN SINGH

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मंगलवार, 16 मार्च 2021

USERC News : जल संरक्षण, जल गुणवत्ता एवम् स्वास्थ्य स्वच्छता विषय पर यूसर्क द्वारा दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ।।Web News।।

Userc-news

दो दिवसीय जल संरक्षण, जल गुणवत्ता एवम् स्वास्थ्य स्वच्छता विषयक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय लोहाघाट में प्रारंभ

आज उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवम् अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) द्वारा गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवम् सतत् विकास संस्थान कोसी कटार मल अल्मोड़ा के सहयोग से जल" संरक्षण, जल गुणवत्ता एवम् स्वास्थ्य स्वच्छता" विषय पर स्वामी विवेकानंद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में जंतु विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में प्रारंभ दो दिवसीय प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ। 


कार्यक्रम के मुख्य अन्वेषक एवं यूसर्क के वैज्ञानिक डॉ भवतोष शर्मा ने पर्वतीय जल स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन की विभिन्न विधियों को विस्तार से बताया जिसमें रिचार्ज पिट बनाना, रिचार्ज साफ्ट बनाना, रिचार्ज ट्रेंच बनाना,बुश चेक डैम बनाना, परकोलेशन टैंक, वर्षा जल संरक्षण तथा वर्षा जल संरक्षण में महिलाओं का योगदान व विद्यार्थी गतिविधि पर विस्तार से बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ संगीता गुप्ता ने पानी को बचाने का आवाहन किया तथा विद्यार्थियों को आगे आने को कहा । हिमालयन ग्राम विकास समिति गंगोलीहाट के राजेन्द्र बिष्ट ने पर्वतीय जल स्रोतों के पुनर्जीवन कार्य को करने के विभिन्न पहलुओं को बताया । उन्होंने पहाड़ी जल स्रोतों को बचाने के लिए सामूहिक रूप से मिलकर कार्य करने का आवाहन किया। 


उत्तराखंड जल संस्थान देहरादून स्थित राज्य स्तरीय जल गुणवत्ता प्रयोग शाला के तकनीकी प्रबंधक डॉ विकास कंडारी एवं भास्कर पंत की टीम ने जल गुणवत्ता जांचने के विभिन्न वैज्ञानिक विधियों को प्रयोगात्मक किट के माध्यम से सभी प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रदान किया। उपस्थित प्रतिभागियों के सभी प्रश्नों का समाधान भी प्रदान किया गया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ धर्मेंद्र राठौड़ ने जल संरक्षण को आज की आवश्यकता बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ मनोज कुमार ने किया । कार्यक्रम में राजदीप जंग, डॉ तौफीक अहमद, डॉ महेश त्रिपाठी, डॉ अनीता सिंह, डॉ विमला देवी, डॉ एस पी सिंह, डॉ रुचिर जोशी, डॉ अनीता खर्कवाल, डॉ नम्रता दयाल व महाविद्यालय के स्टाफ उपस्थित रहे साथ 95 प्रतिभागियों विद्यार्थियों एवं ग्रामीण जनों द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त किया गया।

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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

World Wetland Day : माटी संस्था व भारतीय प्राणी सर्वेक्षण देहारादून ने “पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम का आयोजन किया ।। web news ।।


विश्व वेटलैंड दिवस के अवसर पर माटी संस्था व भारतीय प्राणी सर्वेक्षण देहारादून के संयुक्त प्रयास से “पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम का आयोजन ।

2 फरवरी को “विश्व आर्द्रभूमि दिवस” (World Wetland Day) मनाया जाता है । इस वर्ष “विश्व आर्द्रभूमि दिवस” की थीम “आर्द्रभूमि (वेटलेंड) और जीवन” निर्धारित की गयी है। यह दिन वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करने, उसे बढ़ावा देने तथा सम्पूर्ण मानव जाति के लिये आर्द्रभूमि (वेटलैंड) की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताने के लिए आयोजित किया जाता है। वेटलैंड का मतलब होता है नमी या दलदली क्षेत्र अथवा पानी से संतृप्त भूभाग से है। आर्द्रभूमि वह क्षेत्र है जो सालभर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है। भारत में वेटलैंड ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है। वेटलैंड के बहुत से लाभ है। जैविक रूप से विविध पारिस्थितिक तंत्र जो कई प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करना, तूफान और बाढ़ के खिलाफ तट पर बफ़र्स के रूप में सेवा करना, पानी की गुणवत्ता में सुधार करने, बाढ़ के पानी को स्टोर करने और हानिकारक प्रदूषकों को बदलकर स्वाभाविक रूप से पानी को फ़िल्टर अर्थात जल को प्रदुषण से मुक्त करना है। वेटलैंड्स जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहां उपयोगी वनस्पतियां एवं औषधीय पौधे भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। ये उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विश्व वेटलैंड दिवस पर बर्ड वाचिंग कार्यक्रम का आयोजन

माटी संस्था, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण और अल्पाइन ग्रुप ऑफ कॉलेज द्वारा संयुक्त रूप से “विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) के अवसर पर आसन कंज़र्वेशन रिज़र्व, देहारादून के आर्द्रभूमि (वेटलैंड) क्षेत्र में “बर्ड वाचिंग कार्यक्रम” का आयोजन किया। आसन आर्द्रभूमि  क्षेत्र उत्तराखंड का पहला वेटलैंड है जिसको रामसर साइट घोषित किया गया है। आसन बैराज, आसन और यमुना नदी के किनारे फैला लगभग 4.5 किमी का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में सितम्बर -अक्टूबर से ही विदेशी मेहमानो अर्थात प्रवासी पक्षियों का आना आरम्भ हो जाता है। एक दिवसीय “बर्ड वाचिंग” कार्यक्रम की शुरूवात भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, देहारादून के वैज्ञानिक डॉ० गौरव शर्मा द्वारा की गयी। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए वेटलैंड व प्रवासी पक्षियों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए भारतीय प्राणी सर्वेक्षण संस्थान के द्वारा पक्षी व जंतुओं पर पूर्व व वर्तमान किए जा रहे शोधों से अवगत कराया। साथ ही उन्होने अपने संस्थान की तरफ से प्राणीयों पीआर शोध कर रहे विद्यार्थियों व शोधार्थियों को हर संभव मदद करेंगे का असवासन दिया। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ० वेद प्रकाश तिवारी, संस्थापक और वैज्ञानिक, माटी संस्थान ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए वेलैंड डे को मानाने के उद्देश्य, वेटलैंड के हमारे जीवन में महत्त्व से लेकर इनके संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों के विषय में रोचक जानकारी दी। उन्होंने प्रवासी पक्षियों के बारे में भी चर्चा की और बताया कि कैसे बर्डवॉचिंग एक मनोरंजन के साथ - साथ हमें इन नन्हे जीवों के जीवन की विभिन्न क्रियाओं व् पहलुओं से भी रूबरू करवाता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि हर किसी को स्थानीय स्तर पर और विश्व स्तर पर इस तरह के जैव विविधता दस्तावेज में संलग्न होना चाहिए ताकि यह हमारे वन्यजीवों और उनके आवासों को बचाने के लिए एकजुट होकर कार्य कर सके। इस दौरान भारतीय प्राणी सर्वेक्षण से डा० अनिल कुमार, पक्षी विशेषज्ञ ने भी इन पक्षियों के विषय में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । इसके बाद माटी की एक रिसर्च स्कॉलर ओएँड्रिल्ला सान्याल ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सभी प्रतिभागियों को चार - चार समूहों में विभाजित किया व बर्डवाचिंग के नियमो के विषय में सभी को बताया। छात्रों ने पक्षियों के संबंध में सभी जानकारी एकत्र की और उनके व्यवहार और आवास को बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया। सभी ग्रुप्स के फील्ड नोट्स और ड्राइंग का आकलन करने के पश्चात् वहां उपस्थित सभी संस्थानों के वैज्ञानिको द्वारा कार्यक्रम के अंत में बेस्ट-बर्ड वॉचर से एक समूह को सम्मानित किया गया ताकि वे भविष्य में भारत की जैव विविधता को बचाने के लिए आगे आएं। कार्यक्रम का संचालन डॉ ० हिमानी बडोनी, प्रोजेक्ट साइंटिस्ट, माटी संस्था ने किया। उन्होने बताया की इस बर्ड वाचिंग कार्यक्रम के दौरान इस क्षेत्र में पाए जाने वाले पक्षियों की विभिन्न क्रियाओं से सम्बंधित फोटोग्राफ व विडियो भी संलेखित किया गया, साथ ही पक्षियों को प्रलेखित किया गया, जिनमे हैरूडी शेल्डक, टफ्टेड डक, रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड, नार्दर्न पिंटेल, पेंटेड स्टॉर्क, ग्रे हेडेड स्वेफेन कॉमन कोट, कॉमन मूरेन, इंडियन स्पॉट-बिल्ड डक, ग्रे हेरॉन, रिवर लैपविंग, ग्रीन सैंडपाइपर आदि प्रमुख है। अंत में प्रतीक्षा, सीनियर रिसर्च फेलो, माटी ने उपस्थित सभी प्रतिभागियों, मेहमानों, वैज्ञानिको आदि का धन्यवाद व्यक्त करते हुए माटी और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा आयोजित ऑनलाइन फोटोग्राफी प्रतियोगीयता के बारें में जानकारी प्रदान किया। 

“पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम में उपस्थित रहे ।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) के अवसर पर अल्पाइन इंस्टिट्यूट के विधार्थियों के साथ - साथ पर्यावरण डिपार्टमेंट के अध्यक्ष एम० डी० कौसर ने भी भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान कुल सत्तर से ज्यादा प्रतिभागियों में भाग लिया। इस कार्यक्रम को सफल बनाए में माटी संस्था टीम के सभी सदस्य जिसमें की अनुप्रिया, शेफाली, मृतुन्जय, रश्मि , शालिनी, विशाल, देशांशी आदि ने योगदान किया।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

International mountain day : : यूसर्क ने वेबिनार के माध्यम से दिया हिमालयी जैवविविधता संरक्षण का संदेश , पढे पूरी खबर ।।web News।।

अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर यूसर्क ने ‘पर्वतीय जैवविविधता’ विषय पर वेबीनार का आयोजन 

उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) ने आज ‘अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ के अवसर पर वेबिनार का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये यूसर्क के निदेशक प्रो0 एम.पी.एस. बिष्ट ने बताया कि इस वर्ष ‘अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ को ‘पर्वतीय जैवविविधता’ विषयक थीम को लेकर मनाया जा रहा है। प्रो0 बिष्ट ने हिमालयी जैवविविधता के संरक्षण हेतु सभी युवाओं को आगे आ कर कार्य करने का आवाहन किया। उन्होंने बताया कि यूसर्क द्वारा विज्ञान शिक्षा एवं पर्यावरण संरक्षण विषयक कार्य को किया जा रहा है। राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार कीे महत्वपूर्ण परियोजना जैसे कि जलशक्ति मिशन, स्वच्छता अभियान, जलसा्रेत पुर्नजीविकरण तथा अन्य पर्यावरण एवं विज्ञान से सम्बन्धित कार्यक्रमों का लाभ आम जनमानस तक पहुंचाने के लिये यूसर्क कार्य करेगा। उन्होंने कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न जनपदों से जुड़े छात्र-छात्राओं को शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से उत्तराखण्ड के दूरस्थ क्षेत्रों में विद्यमान पलायन, पर्यावरण, कृषि, सूखते जलस्रोत, रोजगार सृजन इत्यादि से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिये भी ओ प्रेरित किया।

मुख्य वक्ता नेहरू पर्वतारोहण संस्थान निम के प्राचार्य कर्नल अमित बिष्ट का संदेश

इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान निम, उत्तरकाशी के प्राचार्य कर्नल अमित बिष्ट जी द्वारा मुख्य व्याख्यान दिया गया। कर्नल बिष्ट ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ को मनाये जाने के सन्दर्भ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गये कार्य के पूर्व इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पर्वतों का संरक्षण वर्तमान समय की एक मुख्य आवश्यकता है। कर्नल अमित बिष्ट ने बताया कि किस प्रकार मनुष्य अपनी मानवीय गतिविधियों में परिवर्तन एवं नियंत्रण करके हिमालयी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकता है। अनियंत्रित गतिविधियां हमारे पर्वतीय जलस्रोत, जंगलों एवं पर्वतीय जैवविविधता को हानि पहुंचाते है। कर्नल अमित बिष्ट ने कहा कि पर्यटन, पर्वतारोहण अथवा अन्य प्रकार की मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित रूप से पर्यावरण को ध्यान में रखते हुये एवं शासकीय नियमों के अनुसार ही करना चाहिये तथा पर्यावरण की स्वच्छता एवं संरक्षण पर विशेष रूप से चिंतन एवं कार्य करना चाहिये।


निम के उपप्रधानाचार्य ले0 कर्नल योगेश धूमल ने पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य करने का आहवान किया। उन्होंने कहा कि भूमण्डलीय ताप वृद्धि को रोकने, अपशिष्ट के उचित निस्तारण हेतु आम जनमानस 
को भी जागरूकता के साथ प्रयास करना चाहिये जिससे प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में मदद मिल सके। 


कार्यक्रम में निम के रजिस्ट्रार डा0 विशाल रंजन जी द्वारा बताया गया कि हमारे पास बहुत से प्राकृतिक संसाधन है जिनका उपयोग वैज्ञानिक ढंग से आवश्यकतानुसार ही करना चाहिये। उन्होंने ग्रीन 
टूरिज्म पर विशेष रूप से ध्यान देने का आहवान किया जिससे पर्वतीय जैवविधिता का संरक्षण करने में मदद मिल सके।


वेबिनार के संचालक डा0 भवतोष शर्मा  ने यूसर्क के जल संरक्षण साक्षरता अभियानों की जानकारी दी

वेबिनार का संचालन करते हुये यूसर्क के वैज्ञानिक डा0 भवतोष शर्मा ने बताया कि यूसर्क द्वारा जल संरक्षण हेतु आम जनमानस को जागरूक करने हेतु जल साक्षरता एवं जल शिक्षा कार्यक्रम को चलाया जा रहा है तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्मार्ट ईको क्लबों की स्थापना प्रदेश के 65 विद्यालयों में की गयी है।कार्यक्रम के अंत में प्रश्न उत्तर सत्र में प्रतिभागियों के द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों का विशेषज्ञों एवं निदेशक यूसर्क द्वारा समाधान किया गया। उक्त कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न जनपदों से 900 से अधिक छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों ने आनलाइन रजिस्ट्रेशन किया गया।

वेबिनार में सक्रिय प्रतिभाग किया गया।

यूसर्क के वैज्ञानिक डा0 भवतोष शर्मा, डा0 मन्जू सुन्दरियाल, डा0 राजेन्द्र सिंह राणा, डा0 बिपिन सती तथा आई.सी.टी. टीम के उमेश चन्द्र, राजदीप जंग, ओम जोशी, शिवानी पोखरियाल, हरीश ममगांई, राजीव बहुगुणा, विक्रात पठानिया द्वारा सक्रि

रविवार, 22 नवंबर 2020

Positive Web : उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष की बेटी ने सगाई में पर्यावरण संरक्षण का दिया सन्देश , पढे खबर ।।web news।।


उत्तराखण्ड विधना सभा अध्यक्ष की बेटी की यादगारपूर्ण सगाई की विशेष रिपोर्ट

उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल की पुत्री निमिका अग्रवाल का सगाई समारोह आज देहरादून में संपन्न हुआ। समारोह में महाराष्ट्र के राज्यपाल, देशभर के विभिन्न विधानसभाओं के अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री ,सांसद, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, मंत्री एवं विधायक आदि शामिल हुए। सभी आतिथियों ने नवदंपति को अपना आशीर्वाद लिया । कोरोना संक्रमण के चलते सरकार के दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए विधानसभा अध्यक्ष की सुपुत्री के सगाई समारोह में सीमित अतिथियों ने प्रतिभाग किया। इस दौरान सभी अतिथि सेनीटाइज होकर समारोह स्थल पर पहुंचे। 

विधान सभा अध्यक्ष की बेटी ने सगाई में निभाई पर्यावरण संरक्षण की रस्म

सगाई को यादगार और संदेश पूर्ण बनाने के लिए नव दम्पति ने परिसर में पौधारोपण किया। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल हमेशा पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग रहते है समय समय पर पर्यावरण के प्रति आम नागरिक की जिम्मेदारी निभाने के संदेश देते रहते है उनका मानना है कि हर धार्मिक अनुष्ठान एवं पावन पर्व के अवसर पर पौधारोपण अवश्य करना चाहिए। अपने पिता से प्रेरित उनकी पुत्री निमिका एवं ऋषभ ने सगाई समारोह में पौधारोपण कर उस परंपरा का निर्वहन किया। साथ ही इस पावन अवसर पर नवदंपति द्वारा 31 जरूरतमंद पर्यावरण मित्रों को राशन की सामग्री भी वितरित की गई। 

निमिका की सगाई के वीआईपी मेहमान

इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सांसद महारानी राज लक्ष्मी शाह,सांसद अजय भट्ट, सांसद तीरथ सिंह रावत, सांसद नरेश बंसल, दिल्ली के विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत, वन मंत्री हरक सिंह रावत, शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक, कृषि मंत्री सुबोध उनियाल, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृरदयेश, महिला विकास मंत्री रेखा आर्य, हरियाणा के विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता, विधायक प्रीतम सिंह, विधानसभा के उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चैहान सहित कई अन्य मंत्री , विधायक एवं अधिकारी सहित आदि वीआईपी मेहमान उपस्थित रहे ।

बुधवार, 9 सितंबर 2020

हिमालय दिवस : नौबत ढोल बजा कर सामाजिक संगठनों ने सरकार से किया हिमालय के वाशिंदों को बचाने का किया आग्रह ।।web news।।


देहरादून।। हिमालय दिवस के अवसर पर जाड़ी संस्था के संस्थापक द्वारिका प्रसाद सेमवाल के नेतृत्व मे गाँधी पार्क देहरादून मे बीज बम अभियान, सामाजिक विकास अनुसंधान एवं परिवर्तन सोसायटी, आगाज फेडरेशन व उत्तराखंड समता अभियान के कार्यकर्ताओ ने दिन 11 बजे से 1 बजे तक नौबत ढोल बजा कर जनगीत गा करसरकार से हिमालय व हिमालय के वाशिंदो को बचाने का आग्रह किया ।

हिलामय दिवस के अवसर पर सरकार से सामाजिक संगठनों की हिमालय के वाशिंदों को बचाने की मांगें

◆ राज्य में वन कानून 2006 को शीघ्र लागू किया जाय
◆मानव एवं वन्य जीवों के बीच बढ़ रहे संघर्ष को कम करने के लिए बीज बम अभियान को अनिवार्य रूप से लागू किया जाय
◆ वन एवं वन्यजीवो की सुरक्षा के प्रभावी उपाय किये जाय।
◆वनों पर स्थानीय लोगों के हक- हकूक को बरकरार रखा जाय एवं यहाँ के वाशिन्दों को हिमालय संरक्षक का दर्जा मिले।
◆प्रवासी नागरिकों के रोजगार एवं पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाय।
◆उत्तराखण्ड के समस्त स्कूलो जिनमे मिड दे मील बनता है वह पर सप्ताह के एक दिन आवश्यक रूप से गढ़ भोज शामिल किया जाय ।
◆ चार धाम सड़क परियोजना से हुए पर्यावरण के नुकसान को स्थानीय ग्राम पंचायत, वन पंचायत और
सामाजिक संगठनों के सहयोग से दूर करने के शीघ्र प्रयास किये जाएं।
पहले जो आल वेदर रोड बन रही थी अब चारधाम सड़क परियोजना हो गयी उससे जो लाखो पेड़ काटे गए उनकी भरपाई कैसे होगी , साथ ही ढाल पर जो मलबा फेंकने से जैव विविधता का नुक्सान, जल स्रोत सूखे उनके नुकसान की भर पाई कैसे होगी इस पर शीघ्र काम करने की जरूरत है , नदियों में सारा मलबा डाला जा रहा है , अवैज्ञनिक तरीके से पहाड़ और सड़क काटी जा रही है इससे सारे चार धाम और वहां की नदियों के जलागम क्षेत्र का एको सिस्टम गडबड़ा गया है -जगदंबा प्रसाद मैठाणी, संस्थापक, आगाज

इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित रहे

जे पी, मैठाणी, अनुज भट्ट , विनय थपलियाल , प्रेम पंचोली, रोहन सती, शमशेर सिंह परमार

नौबत ढोल बजा कर माँग रखते हुए द्वारिका प्रसाद सेमवाल ,वीडियो देखें




सोमवार, 24 अगस्त 2020

हिमालय दिवस :सामूहिक प्रयत्नों से ही हिमालय की रक्षा संभव है-डॉ० अनिल प्रकाश जोशी ।।web news।।

हिमालय दिवस की तैयारी में डॉ० अनिल प्रकाश जोशी की प्रेस कॉन्फ्रेंस

डॉ० अनिल प्रकाश जोशी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा जीवन और अर्थव्यवस्था के परिग्रह के परिणामस्वरूप ही विश्व पर कोविड -19 महामारी की मार पड़ी है। मानव इतिहास में अब तक की सबसे खराब इस महामारी में पूरे विश्व को पंगु बना दिया है और हर तरह की गतिविधि पर रोक लगा दी। हमेशा की तरह इस बार भी दुनिया भर में प्रकृति की बिगड़ते हालातों पर केवल बहस ही हुई है इसी बीच सोशल मीडिया पर प्रकृति के सुधार हालातों से संबंधित विभिन्न खबरें भी वायरल हुई। कहीं ना कहीं हमें ये तो पता है कि हमने प्रकृति के साथ जो भी ज्यातियां की हैं कोरोना उसी का नतीजा है। हम इस तथ्य को समझने में पूरी तरह असफल रहे हैं कि आखिरकार दो प्रकृति ही है जो हमारे भाग्य को निर्धास्ति करती है और अगर हम अपनी सीमाओं को पार करेंगे तो प्रकृति ही उसका हिसाब करेगी। इस दौरान खासतौर से जब कोविड 19 एक असाधारण वैश्विक आपदा बन कर उभरा तय प्रकृति ने आम जनमानस का ध्यान खींचा। ये भी सच है कि मनुष्य ने अपने लालम व विलासिताओं के लिये प्रकृति का दोहन करने की सारी सीमाओं को पार कर दिया है। अब समय आ गया है कि जब हम सबको अपने अस्तित्व और जीवन के सार को बचाने के लिये सामूहिक रूप से प्रकृति के संरक्षण हेतु जुटना होगा। इसके अलावा विभिन्न पारिस्थितिकी इकाईया जिनका मानव सभ्यता के विकास में अभूतपूर्व योगदान है उन्हें बचाने के लिये समझबूझ और जोश के साथ आना होगा वर्ना हम उन्हें हमेशा के लिये खो देंगे। जैसे कि अंटार्कटिका और हिमालय का उदाहरण हमारे सामने है जो कि आज विघटन की कगार पर है।

हिमालय सदियों से विभिन्न जीवन सहायक संसाधनों का केन्द्र रहा है जिनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह अपने जल, मृदा और वायु से बहुत से देशों की प्रत्यक्ष व अप्रत्यस रूप से सेवा करता है। कृषि को बढ़ावा देकर विभिन्न कृषि आधारित उद्योगों को विकसित कर और अपने पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं के माध्यम से हिमालय हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बृहद रूप से योगदान देता है।


इस वर्ष हिमालय दिवस की विषयवस्तु हिमालय और प्रकृति पर केन्द्रित होगी

हिमालय ने विभिन्न पारिस्थितिकी संकटों से हमारे देश की सुरक्षा की है इसलिये भी इस कोविड 19 आपदा की विभीषिका के बाद हिमालय को समझने की जरूरत ज्यादा है। हालांकि ये पारिस्थितिकी तंत्र कुछ मोर्चों पर असमर्थ भी हो चुका है पर बावजूद इसकी सेवा में अनवरत हमारे साथ है। इसीलिये इस वर्ष हिमालय दिवस की विषयवस्तु हिमालय और प्रकृति पर केन्द्रित होगी वर्तमान कोविड 19 की महामारी और उसके संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए हिमालय को संरक्षित करने की आवश्यकता है तभी हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा। हिमालय ने अपनी प्रकृति से ही मन विरोधियों के प्रति कवच का काम किया है यहां का अनाज, जड़ी-यूटी. कदमूल फल की व्याख्या शास्त्रों व पुराणों में हैं। यहाँ शुरूआती दौर में वनौषधि व भोजन ही सभी तरह की बिमारियों से दूर रखता रहा है। हिमालय ने यह भी दृश्य है कि वो मात्र देश का मुकुट व सीमाओं की रक्षा नही करता बल्कि मानव समाज की प्रतिरक्षा में भी प्रमुख है।

डॉ० अनिल प्रकाश जोशी ने प्रेस क्लब में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा

इस बार का हिमालय दिवस इन की महिमा जो देश व स्थानीय लोगों की असिनिता आस्था व आर्थिकी पर केन्द्रित रहेगी। इन्ही चर्चाओं के बीच में हिमालय के प्रति सामूहिक कार्य जो यहाँ के संस्थानों व संगठनों द्वारा किये जाने चाहिये की भी पहल होगी। उत्तर-पूर्वी व पश्चिमी हिमालय के निवासी. सामाजिक, राजनैतिक व वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाने की कोशिश की आज बड़ी आवश्यकता है सामूहिक प्रयत्नों से ही हिमालय की रक्षा संभव है।

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पहाड़ों में हैस्को संस्था का बरसात के पानी की बूंद बूंद बचाने का अभियान

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4. Good news : बॉयोटैक किसान परियोजना के अंतर्गत हैस्को संस्था द्वारा उन्नत खेती का प्रशिक्षण दिया गया , जाने पूरी खबर ।।web news।।

Good news : हैस्को बागों से होंगे किसान आत्मनिर्भर, पढे विशेष रिपोर्ट।।web news।।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

पर्यावरण संरक्षण : हमारी आवश्यता हमारे जंगल,जल, जमीन है - चन्दन सिंह नयाल ।।web news।।


प्रकृति प्रेमी चन्दन सिंह नयाल की प्रकृति संरक्षण यात्रा ।।

शुरुआती दौर में आज से चार पांच साल पूर्व मेरे गांव में सड़क भी नहीं थी लगभग 3 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था तो उस वक्त मैं मेरे परिवार वाले मेरे युवा सहयोगी सड़क से गांव तक पेड़ों को अपने सर में ले जाकर अपने क्षेत्र में पौधारोपण करते थे और कई जगह कई गांव में हमने कंधों पर पौधे ले जाकर पौधारोपण भी किया कई जल स्रोतों पर भी हम लोगों ने चौड़ी पत्ती का पौधा रोपण किया एक जोश जुनून के साथ अभी भी यह कार्य निरंतर प्रगति पर है ।



पहाड़ की जिंदगी सब समझते हैं पहाड़ के रास्ते पहाड़ के स्कूल, नैनीताल जिले की कई दूरस्थ स्कूलों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देने का कार्य भी निरंतर जारी है जिसमें अभी तक 251 से अधिक विद्यालयों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी दी, कई विद्यालयों में कई कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है धूप हो या छांव हो निकल पड़ता था, प्रकृति से अमिट प्रेम ने सब कुछ भुला दिया बस यही समझा दिया की प्रकृति ही जीवन है जिसके लिए निरंतर प्रयास जारी है गांव के लोगों में जागरूकता धीरे-धीरे आने लगी है क्योंकि हम लोगों द्वारा दूरस्थ दूरस्थ गांव में जाकर वहां की महिलाओं को वहां के लोगों को जंगलों की महत्वता को समझाया खत्म होते विलुप्त होते जंगलों की रक्षा के लिए उन सब के साथ बीड़ा उठाया क्योंकि मुफ्त की चीज की कोई कदर नहीं करता यह कदर करना हमने गांव के लोगों को समझाने की कोशिश की मेरे नजदीकी गांव कोटली से लगता हुआ एक देव गुरु का बहुत बड़ा जंगल है जहां पर मध्य में देव गुरु बृहस्पति महाराज का मंदिर है जो लगभग 700 से 800 हेक्टेयर का जंगल है जिसमें कई गांव के लोग इस जंगल का अनियंत्रित दोहन कर रहे थे परंतु पिछले तीन-चार वर्षो के गांव वालों की और हमारे प्रयास से लोग समझने लगे हैं और अनियंत्रित दोहन कम किया है जिससे यह जंगल पुनः और भी घना प्रतीत होता है यहां 200 से अधिक जल स्रोत हैं ।


 जिन का मुख्य कारण यह है यहां चौड़ी पत्ती के बाज खरसू रेयाज बुरास उतीस , ऐसी कई जोड़ी पत्ती के पौधे हैं यह जंगल गोला नदी को भी अपने जल स्रोतों से पानी देता है, मन में ख्याल आया कि खुद ही अपने घर पर पौधे तैयार करो छोटी सी नर्सरी तैयार कर जंगल में पौधे रोपित करने के लिए पौधे तैयार किए अपनी निजी भूमि पर, देखिए हमारे पहाड़ में जंगल की महत्वता सर्वाधिक होती है चाहे वह खेती हो चाहे वह बागवानी हो चाहे वह ईधन के लिए हो, हमारी जरूरत हमारे जंगल हैं अगर हम कुछ भी करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम जंगल की ही आवश्यकता है जल की ही आवश्यकता है जब जल जंगल जमीन है तब हम खेती की बात कर सकते हैं बागवानी की बात कर सकते हैं स्वरोजगार की बात कर सकते हैं गहराई से जंगल की महत्वता को समझना होगा आज जहां कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं उनकी विलुप्तता का कारण कहीं ना कहीं हम ही लोग हैं मेरा मुख्य उद्देश्य यह भी रहा कि जो प्राकृतिक जंगल है उन्हें संरक्षित करने का कार्य बहुत जरूरी है जो हमने प्रारंभ किया, साथ ही युवा साथियों के साथ वन पंचायतों में पौधारोपण कार्य किया और कई जल स्रोतों के आसपास चाल खाल खंन्तिया बनाई गई साथ ही अगस्त सितंबर माह में प्रत्येक वर्ष पौधा वितरण का कार्यक्रम भी हम लोग करते हैं 1- 1,2 - 2 पौधे अलग-अलग गांव में जाकर ग्रामीणों को देते हैं जो फलदार पौधे होते हैं जिन्हें वह अपने घर पर लगाते हैं, इस वर्ष लॉकडाउन में हमारे द्वारा कई चाल खाल बनाए गए हैं जो जल संरक्षण की मुख्य भूमिका पर है


यह सारे कार्य युवा साथियों के सहयोग से ही किया जाता है क्योंकि हमारा कोई एनजीओ नहीं है और ना ही कोई फंडिंग होती है पिछले छह 7 वर्षों से हमारे द्वारा यह कार्य किए जा रहे हैं यह 6,7 वर्षों का समय पहाड़ जैसा संघर्षशील रहा है क्योंकि पहाड़ में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इन कठिनाइयों का सामना हमने किया और आगे भी करते रहेंगे ।

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लेखक : चंदन सिंह नयाल

परिचय : प्रकृति प्रेमी,पर्यावरण संरक्षक कार्यकर्ता

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सोमवार, 20 जुलाई 2020

'Arth' Video Series : पृथ्वी की उत्पत्ति के गूढ़ विज्ञान को वीडियो सीरीज से बता रहे है पर्यावरणविद् डॉ अनिल प्रकाश जोशी, वीडियो सीरीज की पूरी जानकारी पढे ।।web news।।



डॉ अनिल प्रकाश जोशी की "अर्थ" वीडियो सीरीज से आसान भाषा में समझिए पृथ्वी की उत्पत्ति के गूढ़ विज्ञान को


पदम भूषण व पर्यावरणविद् डॉ अनिल प्रकाश जोशी पृथ्वी की उत्पत्ति के गूढ़ विज्ञान को वीडियो सीरीज के माध्यम से जानकारी दे रहे है, अभी तक अर्थ वीडियो सीरीज के दो भाग प्रसारित किए गए है , अर्थ वीडियो सीरीज के सभी भाग यू ट्यूब चैनल और प्रसारित किए जाएंगे । डॉ अनिल प्रकाश जोशी द्वारा प्रसारित अर्थ वीडियो सीरीज देखने के लिए यू ट्यूब चैनल से जुड़ें ।


यू ट्यूब चैनल का लिंक - Dr Anilprkash Joshi Hesco

अर्थ वीडियो सीरीज पार्ट -1

अर्थ वीडियो सीरीज के पार्ट -1 में अर्थवेद के मंत्र माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या के आधार पर वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ पृथ्वी की उत्पत्ति के गूढ़ विज्ञान को समझाया गया है ।

पृथ्वी की उत्पति जानने के लिए ....जुड़िए डॉ अनिल प्रकाश जोशी से और सुनिए उनकी जुबानी..अर्थ वीडियो सीरीज पार्ट -1 में



अर्थ वीडियो सीरीज पार्ट -2

जले विष्णु थले विष्णु.... जल और थल दोनों में विष्णु का वास है, दोनों ही जीवन को पनपाते हैं,अर्थ वीडियो सीरीज का पार्ट -2 में जल से हुए जीवन की उत्पत्ति का सार को समर्पित है ।

जीवन की रहस्यमयी उत्पत्ति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
जानने के लिए जुड़िए डॉ अनिल प्रकाश जोशी से और सुनिए उनकी जुबानी..अर्थ वीडियो सीरीज पार्ट -2 में


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गुरुवार, 16 जुलाई 2020

लोकपर्व हरेला : पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है हरेला - संदीप ढौंडियाल, ।। Web News।।



हमारे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति दूरदर्शिता दर्शाता है उत्तराखण्डी लोकपर्व हरेला ।।


आज पूरा विश्व समुदाय पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतन कर रहा है। साथ ही कई तरह के दिवसों के माध्यम से भी जन - जागरूकता चलाई जा रही है। एक ओर जल संरक्षण से लेकर वायु, मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष भर कई दिवसों के माध्यम से करोड़ों रुपए के कार्यक्रम  आयोजित किए जाते रहे हैं।
आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय की मांग के हिसाब से एक ओर जरूर प्रकृति संरक्षण पर बल दिए जाने की बात कई फोरम पर उठती हैं। लेकिन प्रकृति संरक्षण को लेकर वास्तव में हमारे पूर्वज कितने सजग थे और उनकी कितनी दूरदर्शी सोच थी। यह हमारे पर्व त्योहारों और संस्कृति में आसानी से समझा जा सकता है। जिसकी एक बानगी झलकती है हमारे उत्तराखंडी पर्व हरेला में। हरेला का सीधा शाब्दिक अर्थ ही हरियाली है। हरियाली यानी प्रकृति का रूप। हरेला पर्व श्रावण माह के पहले दिन मनाया जाता है। जिसमें वृक्षारोपण के साथ ही कुछ पारंपरिक तौर तरीके से प्रकृति की पूजा और अनुष्ठान किया जाता है। अगर गौर किया जाए तो प्राकृतिक रूप से भी  वृक्षारोपण का सही समय और सही मौसम भी यही होता है। उत्तराखंड राज्य में हरेला पर्व को एक शासकीय मान्यता का रूप देकर निश्चित ही प्रकृति को बचाने की विरासत या परंपरा को  सबल बनाया है। यूं तो हरेला उत्तराखंड के गांव में साल के शुरू के दिन से और आखिर तक पौधों के रोपण के साथ - साथ प्रकृति के कई आयामों को बचाने के लिए जाना जाता है। जैसे  सदियों से परंपरा रही है कि श्रावण के महीने में शिकारी लोग जंगलों में शिकार नहीं करते थे। क्योंकि यह वन्य पशुओं के प्रजनन का महीना होता है। यह प्रकृति के प्रति उनकी भावनात्मक रूप से जुड़ाव को दर्शाता है। वहीं इसके साथ ही कुछ ऐसे पर्व शुरू होते हैं जब लोग  ऊंचाई पर स्थित बुग्यालों से फूलों को लाना शुरू करते हैं। जैसे कई स्थानों पर ब्रह्म कमल को नंदा अष्टमी के पर्व पर ही तोड़े जाने की परम्परा है। चमोली जिले की उरगम घाटी इसका का एक उदाहरण है।
उत्तराखंड में नई बहुओं को हरेला के जौ जमाकर हरियाली देने की प्रथा है। यह पर्व कुमाऊं के क्षेत्र में ज्यादा प्रचलित है। जैसे बिहार का छठ पर्व, पंजाब का करवा चौथ और नेपाल से आया हुआ तीज त्यौहार है। इसी प्रकार उत्तराखंड का हरेला पर्व भी राष्ट्रीय बनता जा रहा है। पानी और पेड़ का एक साथ संबंध होने के कारण सावन का महीना वृक्षारोपण के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। ऐसे में हरेला अपने आप में कहीं न कहीं पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है।

हमें आशीर्वचन देती लोक पर्व हरेला के दिन गायी जाने वाली कुमाउँनी लोकगीत की कुछ पंक्तिया-

जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया

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लेखक परिचय -,संदीप ढौंडियाल, एक बड़े समाचारपत्र में पत्रकार और पर्यावरणीय स्तम्भ लेखक होने के साथ ही इंजीनियर, सामाजिक संस्था जिंदगी डायरेक्शन सोसाइटी देहरादून के संस्थापक व अध्यक्ष

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शुक्रवार, 5 जून 2020

Environment Day :पहाड़ का बदलता पर्यावरण और हाशिये पर पहाड़ी - सुमित बहुगुणा ।। Web news Uttrakahnd ।।



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पर्यावरण दिवस विशेष इस लेख में पहाड़ों में हो रहे बदलावों को पहाडी की नजरों से देखते है ।

उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों से हो रहे नुकसान का असर देखा जा सकता है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून व अन्य मैदानी शहर वायु प्रदूषण के घेरे में तो पहले ही आ चुके हैं । किंतु आज चिंता यह है कि पहाड़ों में विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यो व पहाड़ी प्राकृतिक सम्पदाओं के निरंतर दोहन से ,वायु प्रदूषण जैसी गंभीर  समस्या ने पहाड़ों में भी जन्म ले लिया है । पहाड़ों में आज विभिन्न बांध परियोजनाओं के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है । 2013 की केदारनाथ आपदा से तबाह संपूर्ण केदार घाटी में पुनर्निर्माण के कार्य जिस तेजी से गति पकड़ रहे हैं वह मनुष्यों का केदार घाटी पहुंचना सुगम कर देंगे परन्तु तेजी से हो रहा पर्यावरणीय नुकसान किसी आपदा से कम नहीं । विकास कार्यो को हमे SDG यानी सतत विकास के लक्ष्यों के आधार पर ही करना चाहिए ।

अंग्रेजों ने अपने समय में मसूरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी कस्बे स्वच्छ पर्यावरण को देख कर बसाए ,साथ ही देहरादून शहर में शिवालिक और मध्य हिमालय से घिरी घाटी के स्वच्छ पर्यावरण को देखते हुए ही स्वप्निल बसेरे बनाए गए थे। इन जगहों को आज अलग अलग किस्म के प्रदूषणों की शिकार होते हुए देखा जा सकता है , सुहाने मौसम के लिए विख्यात दून अब धूल, धुएं और शोर की घाटी है। स्मार्ट सिटी के लिए नामित होने के साथ अब यहां विकास कार्यों ने जो गति पकड़ी है उससे प्रदूषण के स्तर का भी गति पकड़ना स्वाभाविक है। पहाड़ों से देहरादून पलायन कर घर बसाने की वजह से भी पिछले कुछ दशकों में यहां जनसंख्या में तेजी आई है साथ ही पड़ोसी राज्यों के लोगों द्वारा देहरादून की सरकारी जमीनों पर झुग्गी बस्तियां बसाने से भी जनसंख्या का बोझ राजधानी देहरादून पर पड़ा है।

ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिंताएं जताई जा रही हैं , विद्वानों और विशेषज्ञों में इस बारे में बहुत मतभेद भी हैं। कुछ कहते हैं ग्लेशियरों का पिघलना असाधारण बात नहीं है सैकड़ों हजारों साल के बाद ग्लेशियरों का बनना बिगड़ना स्वाभाविक व प्राकृतिक घटनाएं है लेकिन कुछ पर्यावरणविद और वैज्ञानिक पुरजोर तौर पर मानते है कि ग्लेशियरों का पिघलना एक सामान्य घटना नहीं है और ये जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े सूचकों में से एक है। इन बहसों से दूर भी रहा जाए लेकिन एक सच्चाई तो यही है  कि पहाड़ों के मौसम अब पहले जैसे तो नहीं रहे,आजकल होने वाली बेमौसमी बारिश हम देख ही रहे हैं।

फसल की पैदावार का पैटर्न भी दिनप्रति दिन बदला है।
फसलों में गुणात्मक और मात्रात्मक गिरावट दोनों देखी जा सकती है । पलायन के चलते बड़े पैमाने पर पहाड़ी जमीन बंजर हो रही है । मानव शून्यता के समय में भी नया माफिया पनप गया है जो भविष्य के लिए निर्माण से लेकर पलायन तक एक बहुत ही संगठित लेकिन अदृश्य शक्ति के रूप में सक्रिय है , यह स्तिथि भी पहाड़ और पहाडी के लिए चिन्तादायक हो सकती है

पहाड़ के पर्यावरण के परिपेक्ष में इन घटनाओं को पहाड के लिए अच्छा नही माना जा सकता, कोविड 19 कोरोना वाइरस के चलते लॉक डाउन की स्थिति से पर्यावणीय सुधारों को सतत नही माना जा सकता न ही यह सत्य है । हरिद्वार में स्वछ गंगाजल और सहारनपुर से दिखायी देने वाली पहाडी आनंदित तो करती है लेकिन कितने समय यह स्थिति बनी रहेगी इसका आकलन करना भी कठिन है । पहाड़ियों की पहाड वापसी को रिवर्स पलायन से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन पलायन की स्थिति पहले आयी ही क्यों और अगर आज समय पहाड़ियों के पहाड़ वापसी का आया है तो सिस्टम उनके लिए पहाड़ फ्रेन्डली कौन सी योजनाएं बना रहा है इन बातों की चिंता हमे प्रर्यावरण दिवस पर आवश्य करनी चाहिए ।

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लेखक- सुमित बहुगुणा "पहाड़ी"

परिचय- अध्यक्ष ( IT प्रकोष्ठ ), पहाड़ी पार्टी - PP , पर्यावरण कॉलमिस्ट, युवा राष्ट्रवादी लेखक, पहाड़वाद सोच की अवधारणा रखने वाले पहाड़ हितैषी, चम्बा-उत्तराखण्ड पेज के एडमिन, ऑनर एन्ड फाउंडर - The Retreat Restorent Harawala , Dehradun

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शुक्रवार, 22 मई 2020

Biodiversity Day Special : जैव विविधता का असंतुलन है केदारनाथ जैसी त्रासदी - संदीप ढौंडियाल ।। web news uttrakhand ।।


Kedarnath

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष

जैव विविधता अर्थात जीवों के अनेक प्रकार या कह सकते हैं जीवन के अनेक रूप। प्रकृति में मौजूद वनस्पति से लेकर सभी जीव जंतुओं की संतुलित मौजूदगी पर चिंता ने ही जैव विविधता दिवस की परिकल्पना की। निरंतर होते जा रहे प्रकृति के दोहन ने आज पूरे विश्व को इस ओर ध्यान आकर्षित कर सोचने पर मजबूर किया है। इन्हीं तमाम चिंताओं को लेकर विश्व समुदाय ने 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। प्रत्येक वर्ष एक नए विषय पर पूरे विश्व भर में चिंतन और मनन होता है। साथ ही उस पर तमाम देश अच्छे सुझाव को लेकर जैव विविधता के संरक्षण के कार्य को अंगीकार करते हैं।

सही मायने में प्रकृति जैसे - हवा, पानी, पेड़, वनस्पति सहित वन्य जीव जंतु का मानव से सीधा जुड़ाव ही जैव विविधता है। प्रकृति या पर्यावरण का असंतुलित हो जाना ही कारण बनता है प्राकृतिक उथल - पुथल का। जिसके फिर भयंकर परिणाम सामने आते हैं। जैसे बाढ़, चक्रवात, तूफान और भूकंप जैसी अप्रिय घटनाओं का होना। इन सब को देखते हुए मानव सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी हो जाता है कि हम प्रकृति को उसके मूल स्वरूप में ही रहने दें। प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने का अर्थ है प्रकृति का रुष्ट और क्रोधित हो जाना। दुष्परिणाम स्वरूप 2013 की केदारनाथ जैसी भयंकर त्रासदी का घटित होना। पूर्व में ऐसी घटनाएं ही कारण भी रही है कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए विश्व भर में आवाज उठने लगी। 29 दिसंबर 1992 को नैरोबी में जैव विविधता के एक कार्यक्रम में जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। लेकिन तमाम देशों  की ओर से कठिनाइयां व्यक्त करने के बाद 29 मई की जगह 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। जिसमें प्रकृति के साथ ही संस्कृति के संरक्षण पर भी बल दिया गया। जैसे भाषा - संगीत, कला - शिल्प के साथ ही पारंपरिक वस्त्र और भोजन आदि को जोड़कर  इनके संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

अगर भारत की बात करें तो पूरे देश की लगभग 28 प्रतिशत जैव विविधता हिमालयी क्षेत्र में है। जिनमें से एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में मौजूद है। राज्य में 6 राष्ट्रीय उद्यानों सहित 7 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, 4 कंजर्वेशन और एक बायोस्फीयर रिजर्व मौजूद है। वर्तमान समय में सरकारों की ओर से अपने स्तर पर जैव विविधता संरक्षण को लेकर कई कार्य किए जा रहे हैं। जैसे लगातार लुप्त होते जा रहे भारतीय चीता और शेरों की ओर ध्यान गया तो उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए लगातार कार्य किया जाने लगा। ऐसे ही प्रयासों के लिए उत्तराखंड राज्य में भी उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया है। मौजूदा समय में जैव विविधता संरक्षण के लिए तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में वृहद रूप में कार्य किए जाने की आवश्यकता है। ग्रामीण अंचल में बसी हुई प्रकृति और संस्कृति को संजोए रखना आज किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में हमें चाहिए कि जैव विविधता संरक्षण के लिए दूरस्थ क्षेत्रों के गांवों  को जोड़कर इसमें ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। उत्तराखंड प्रकृतिक सम्पदा से धन-धान्य राज्य है। यहां के लोगों की तमाम धार्मिक मान्यताएं हमें प्रकृति से सीधे जोड़ती हैं। ऐसे में यहां के पौराणिक मठ - मंदिरों को भी जैव विविधता में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए अनवरत प्रयास किए जाने की नितांत आवश्यकता है।

जैव विविधता संरक्षण के महत्व को आज के संदर्भ में इन पंक्तियों से समझा जा सकता है -


श्रृंखलाएं पर्वतों की, क्यों दहाड़ मारे रो उठी।
बाघ, पानी, पेड़, पक्षी, है मानवों से क्यों डरी।।
है सभ्यता का अंत निश्चित, जो अनादि से थी अडिग खड़ी।
विनाशरूपी विकास में, कुछ हिस्सेदारी मेरी सही।।

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लेखक परिचय -,संदीप ढौंडियाल, एक बड़े समाचारपत्र में पत्रकार और पर्यावरणीय स्तम्भ लेखक होने के साथ ही इंजीनियर, सामाजिक संस्था जिंदगी डायरेक्शन सोसाइटी देहरादून के संस्थापक व अध्यक्ष

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यह भी पढ़ें - उत्तराखड की सांस्कृति का केंद्र बिन्दु है थौल मेले -विनय तिवारी ।। web news uttrakhand ।।