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शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

पर्यावरण संरक्षण : हमारी आवश्यता हमारे जंगल,जल, जमीन है - चन्दन सिंह नयाल ।।web news।।


प्रकृति प्रेमी चन्दन सिंह नयाल की प्रकृति संरक्षण यात्रा ।।

शुरुआती दौर में आज से चार पांच साल पूर्व मेरे गांव में सड़क भी नहीं थी लगभग 3 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था तो उस वक्त मैं मेरे परिवार वाले मेरे युवा सहयोगी सड़क से गांव तक पेड़ों को अपने सर में ले जाकर अपने क्षेत्र में पौधारोपण करते थे और कई जगह कई गांव में हमने कंधों पर पौधे ले जाकर पौधारोपण भी किया कई जल स्रोतों पर भी हम लोगों ने चौड़ी पत्ती का पौधा रोपण किया एक जोश जुनून के साथ अभी भी यह कार्य निरंतर प्रगति पर है ।



पहाड़ की जिंदगी सब समझते हैं पहाड़ के रास्ते पहाड़ के स्कूल, नैनीताल जिले की कई दूरस्थ स्कूलों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देने का कार्य भी निरंतर जारी है जिसमें अभी तक 251 से अधिक विद्यालयों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी दी, कई विद्यालयों में कई कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है धूप हो या छांव हो निकल पड़ता था, प्रकृति से अमिट प्रेम ने सब कुछ भुला दिया बस यही समझा दिया की प्रकृति ही जीवन है जिसके लिए निरंतर प्रयास जारी है गांव के लोगों में जागरूकता धीरे-धीरे आने लगी है क्योंकि हम लोगों द्वारा दूरस्थ दूरस्थ गांव में जाकर वहां की महिलाओं को वहां के लोगों को जंगलों की महत्वता को समझाया खत्म होते विलुप्त होते जंगलों की रक्षा के लिए उन सब के साथ बीड़ा उठाया क्योंकि मुफ्त की चीज की कोई कदर नहीं करता यह कदर करना हमने गांव के लोगों को समझाने की कोशिश की मेरे नजदीकी गांव कोटली से लगता हुआ एक देव गुरु का बहुत बड़ा जंगल है जहां पर मध्य में देव गुरु बृहस्पति महाराज का मंदिर है जो लगभग 700 से 800 हेक्टेयर का जंगल है जिसमें कई गांव के लोग इस जंगल का अनियंत्रित दोहन कर रहे थे परंतु पिछले तीन-चार वर्षो के गांव वालों की और हमारे प्रयास से लोग समझने लगे हैं और अनियंत्रित दोहन कम किया है जिससे यह जंगल पुनः और भी घना प्रतीत होता है यहां 200 से अधिक जल स्रोत हैं ।


 जिन का मुख्य कारण यह है यहां चौड़ी पत्ती के बाज खरसू रेयाज बुरास उतीस , ऐसी कई जोड़ी पत्ती के पौधे हैं यह जंगल गोला नदी को भी अपने जल स्रोतों से पानी देता है, मन में ख्याल आया कि खुद ही अपने घर पर पौधे तैयार करो छोटी सी नर्सरी तैयार कर जंगल में पौधे रोपित करने के लिए पौधे तैयार किए अपनी निजी भूमि पर, देखिए हमारे पहाड़ में जंगल की महत्वता सर्वाधिक होती है चाहे वह खेती हो चाहे वह बागवानी हो चाहे वह ईधन के लिए हो, हमारी जरूरत हमारे जंगल हैं अगर हम कुछ भी करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम जंगल की ही आवश्यकता है जल की ही आवश्यकता है जब जल जंगल जमीन है तब हम खेती की बात कर सकते हैं बागवानी की बात कर सकते हैं स्वरोजगार की बात कर सकते हैं गहराई से जंगल की महत्वता को समझना होगा आज जहां कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं उनकी विलुप्तता का कारण कहीं ना कहीं हम ही लोग हैं मेरा मुख्य उद्देश्य यह भी रहा कि जो प्राकृतिक जंगल है उन्हें संरक्षित करने का कार्य बहुत जरूरी है जो हमने प्रारंभ किया, साथ ही युवा साथियों के साथ वन पंचायतों में पौधारोपण कार्य किया और कई जल स्रोतों के आसपास चाल खाल खंन्तिया बनाई गई साथ ही अगस्त सितंबर माह में प्रत्येक वर्ष पौधा वितरण का कार्यक्रम भी हम लोग करते हैं 1- 1,2 - 2 पौधे अलग-अलग गांव में जाकर ग्रामीणों को देते हैं जो फलदार पौधे होते हैं जिन्हें वह अपने घर पर लगाते हैं, इस वर्ष लॉकडाउन में हमारे द्वारा कई चाल खाल बनाए गए हैं जो जल संरक्षण की मुख्य भूमिका पर है


यह सारे कार्य युवा साथियों के सहयोग से ही किया जाता है क्योंकि हमारा कोई एनजीओ नहीं है और ना ही कोई फंडिंग होती है पिछले छह 7 वर्षों से हमारे द्वारा यह कार्य किए जा रहे हैं यह 6,7 वर्षों का समय पहाड़ जैसा संघर्षशील रहा है क्योंकि पहाड़ में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इन कठिनाइयों का सामना हमने किया और आगे भी करते रहेंगे ।

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लेखक : चंदन सिंह नयाल

परिचय : प्रकृति प्रेमी,पर्यावरण संरक्षक कार्यकर्ता

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लोकपर्व हरेला : पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है हरेला - संदीप ढौंडियाल, ।। Web News।।

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गुरुवार, 16 जुलाई 2020

लोकपर्व हरेला : पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है हरेला - संदीप ढौंडियाल, ।। Web News।।



हमारे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति दूरदर्शिता दर्शाता है उत्तराखण्डी लोकपर्व हरेला ।।


आज पूरा विश्व समुदाय पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतन कर रहा है। साथ ही कई तरह के दिवसों के माध्यम से भी जन - जागरूकता चलाई जा रही है। एक ओर जल संरक्षण से लेकर वायु, मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष भर कई दिवसों के माध्यम से करोड़ों रुपए के कार्यक्रम  आयोजित किए जाते रहे हैं।
आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय की मांग के हिसाब से एक ओर जरूर प्रकृति संरक्षण पर बल दिए जाने की बात कई फोरम पर उठती हैं। लेकिन प्रकृति संरक्षण को लेकर वास्तव में हमारे पूर्वज कितने सजग थे और उनकी कितनी दूरदर्शी सोच थी। यह हमारे पर्व त्योहारों और संस्कृति में आसानी से समझा जा सकता है। जिसकी एक बानगी झलकती है हमारे उत्तराखंडी पर्व हरेला में। हरेला का सीधा शाब्दिक अर्थ ही हरियाली है। हरियाली यानी प्रकृति का रूप। हरेला पर्व श्रावण माह के पहले दिन मनाया जाता है। जिसमें वृक्षारोपण के साथ ही कुछ पारंपरिक तौर तरीके से प्रकृति की पूजा और अनुष्ठान किया जाता है। अगर गौर किया जाए तो प्राकृतिक रूप से भी  वृक्षारोपण का सही समय और सही मौसम भी यही होता है। उत्तराखंड राज्य में हरेला पर्व को एक शासकीय मान्यता का रूप देकर निश्चित ही प्रकृति को बचाने की विरासत या परंपरा को  सबल बनाया है। यूं तो हरेला उत्तराखंड के गांव में साल के शुरू के दिन से और आखिर तक पौधों के रोपण के साथ - साथ प्रकृति के कई आयामों को बचाने के लिए जाना जाता है। जैसे  सदियों से परंपरा रही है कि श्रावण के महीने में शिकारी लोग जंगलों में शिकार नहीं करते थे। क्योंकि यह वन्य पशुओं के प्रजनन का महीना होता है। यह प्रकृति के प्रति उनकी भावनात्मक रूप से जुड़ाव को दर्शाता है। वहीं इसके साथ ही कुछ ऐसे पर्व शुरू होते हैं जब लोग  ऊंचाई पर स्थित बुग्यालों से फूलों को लाना शुरू करते हैं। जैसे कई स्थानों पर ब्रह्म कमल को नंदा अष्टमी के पर्व पर ही तोड़े जाने की परम्परा है। चमोली जिले की उरगम घाटी इसका का एक उदाहरण है।
उत्तराखंड में नई बहुओं को हरेला के जौ जमाकर हरियाली देने की प्रथा है। यह पर्व कुमाऊं के क्षेत्र में ज्यादा प्रचलित है। जैसे बिहार का छठ पर्व, पंजाब का करवा चौथ और नेपाल से आया हुआ तीज त्यौहार है। इसी प्रकार उत्तराखंड का हरेला पर्व भी राष्ट्रीय बनता जा रहा है। पानी और पेड़ का एक साथ संबंध होने के कारण सावन का महीना वृक्षारोपण के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। ऐसे में हरेला अपने आप में कहीं न कहीं पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है।

हमें आशीर्वचन देती लोक पर्व हरेला के दिन गायी जाने वाली कुमाउँनी लोकगीत की कुछ पंक्तिया-

जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया

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लेखक परिचय -,संदीप ढौंडियाल, एक बड़े समाचारपत्र में पत्रकार और पर्यावरणीय स्तम्भ लेखक होने के साथ ही इंजीनियर, सामाजिक संस्था जिंदगी डायरेक्शन सोसाइटी देहरादून के संस्थापक व अध्यक्ष

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शुक्रवार, 5 जून 2020

Environment Day :पहाड़ का बदलता पर्यावरण और हाशिये पर पहाड़ी - सुमित बहुगुणा ।। Web news Uttrakahnd ।।



Environment-day , 5-june, paryawaran-diwas


पर्यावरण दिवस विशेष इस लेख में पहाड़ों में हो रहे बदलावों को पहाडी की नजरों से देखते है ।

उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों से हो रहे नुकसान का असर देखा जा सकता है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून व अन्य मैदानी शहर वायु प्रदूषण के घेरे में तो पहले ही आ चुके हैं । किंतु आज चिंता यह है कि पहाड़ों में विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यो व पहाड़ी प्राकृतिक सम्पदाओं के निरंतर दोहन से ,वायु प्रदूषण जैसी गंभीर  समस्या ने पहाड़ों में भी जन्म ले लिया है । पहाड़ों में आज विभिन्न बांध परियोजनाओं के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है । 2013 की केदारनाथ आपदा से तबाह संपूर्ण केदार घाटी में पुनर्निर्माण के कार्य जिस तेजी से गति पकड़ रहे हैं वह मनुष्यों का केदार घाटी पहुंचना सुगम कर देंगे परन्तु तेजी से हो रहा पर्यावरणीय नुकसान किसी आपदा से कम नहीं । विकास कार्यो को हमे SDG यानी सतत विकास के लक्ष्यों के आधार पर ही करना चाहिए ।

अंग्रेजों ने अपने समय में मसूरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी कस्बे स्वच्छ पर्यावरण को देख कर बसाए ,साथ ही देहरादून शहर में शिवालिक और मध्य हिमालय से घिरी घाटी के स्वच्छ पर्यावरण को देखते हुए ही स्वप्निल बसेरे बनाए गए थे। इन जगहों को आज अलग अलग किस्म के प्रदूषणों की शिकार होते हुए देखा जा सकता है , सुहाने मौसम के लिए विख्यात दून अब धूल, धुएं और शोर की घाटी है। स्मार्ट सिटी के लिए नामित होने के साथ अब यहां विकास कार्यों ने जो गति पकड़ी है उससे प्रदूषण के स्तर का भी गति पकड़ना स्वाभाविक है। पहाड़ों से देहरादून पलायन कर घर बसाने की वजह से भी पिछले कुछ दशकों में यहां जनसंख्या में तेजी आई है साथ ही पड़ोसी राज्यों के लोगों द्वारा देहरादून की सरकारी जमीनों पर झुग्गी बस्तियां बसाने से भी जनसंख्या का बोझ राजधानी देहरादून पर पड़ा है।

ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिंताएं जताई जा रही हैं , विद्वानों और विशेषज्ञों में इस बारे में बहुत मतभेद भी हैं। कुछ कहते हैं ग्लेशियरों का पिघलना असाधारण बात नहीं है सैकड़ों हजारों साल के बाद ग्लेशियरों का बनना बिगड़ना स्वाभाविक व प्राकृतिक घटनाएं है लेकिन कुछ पर्यावरणविद और वैज्ञानिक पुरजोर तौर पर मानते है कि ग्लेशियरों का पिघलना एक सामान्य घटना नहीं है और ये जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े सूचकों में से एक है। इन बहसों से दूर भी रहा जाए लेकिन एक सच्चाई तो यही है  कि पहाड़ों के मौसम अब पहले जैसे तो नहीं रहे,आजकल होने वाली बेमौसमी बारिश हम देख ही रहे हैं।

फसल की पैदावार का पैटर्न भी दिनप्रति दिन बदला है।
फसलों में गुणात्मक और मात्रात्मक गिरावट दोनों देखी जा सकती है । पलायन के चलते बड़े पैमाने पर पहाड़ी जमीन बंजर हो रही है । मानव शून्यता के समय में भी नया माफिया पनप गया है जो भविष्य के लिए निर्माण से लेकर पलायन तक एक बहुत ही संगठित लेकिन अदृश्य शक्ति के रूप में सक्रिय है , यह स्तिथि भी पहाड़ और पहाडी के लिए चिन्तादायक हो सकती है

पहाड़ के पर्यावरण के परिपेक्ष में इन घटनाओं को पहाड के लिए अच्छा नही माना जा सकता, कोविड 19 कोरोना वाइरस के चलते लॉक डाउन की स्थिति से पर्यावणीय सुधारों को सतत नही माना जा सकता न ही यह सत्य है । हरिद्वार में स्वछ गंगाजल और सहारनपुर से दिखायी देने वाली पहाडी आनंदित तो करती है लेकिन कितने समय यह स्थिति बनी रहेगी इसका आकलन करना भी कठिन है । पहाड़ियों की पहाड वापसी को रिवर्स पलायन से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन पलायन की स्थिति पहले आयी ही क्यों और अगर आज समय पहाड़ियों के पहाड़ वापसी का आया है तो सिस्टम उनके लिए पहाड़ फ्रेन्डली कौन सी योजनाएं बना रहा है इन बातों की चिंता हमे प्रर्यावरण दिवस पर आवश्य करनी चाहिए ।

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लेखक- सुमित बहुगुणा "पहाड़ी"

परिचय- अध्यक्ष ( IT प्रकोष्ठ ), पहाड़ी पार्टी - PP , पर्यावरण कॉलमिस्ट, युवा राष्ट्रवादी लेखक, पहाड़वाद सोच की अवधारणा रखने वाले पहाड़ हितैषी, चम्बा-उत्तराखण्ड पेज के एडमिन, ऑनर एन्ड फाउंडर - The Retreat Restorent Harawala , Dehradun

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गुरुवार, 28 मई 2020

Online Charcha : पलायन रोकने के लिए ड्रीम्स का गोल्डन ड्रीम , जानने के लिए पढे पूरी खबर ।। web news ।।



Dreams

पलायन रोकने हेतु कैसे हो स्थानीय संसाधनों का विकास विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा

देहरादून ।। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण विभिन्न राज्यों से बडी संख्या में प्रवासी उत्तराखण्डवासी वापस अपने गाँव आ रहे है। राज्य सरकार द्वारा प्रवासी लोगो के लिए योजनाएं तैयार की जा रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ड्रीम्स संस्था द्वारा एक अभिनव प्रयोग किया गया। प्रवासी लोग अपने गाँव में रहकर ही रोजगार को अपनाए और इस रिवर्स पलायन के बाद पुनः पलायन को कैसे रोका जायए इसके लिये ड्रीम्स संस्था द्वारा समाज के विभिन्न बुद्विजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों के साथ ऑन लाइन वीडियो के माध्यम चर्चा की गई। चर्चा का विषय "कोरोना काल में रिवर्स पलायन के पश्चात् पुनः पलायन रोकने हेतु कैसे हो स्थानीय संसाधनों का विकास" रखा गया था।
"संस्था का यह प्रयास सफल रहा पिछ्ले एक सप्ताह में हर रोज एक वीडियो जारी किया गया। जिसमें समाज के विभिन्न बुद्विजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों के ऑन लाइन वीडियो भेजकर अपने विचार व्यक्त किये गये"- दीपक नौटियाल , महासचिव, ड्रीम्स
1- प्रथम उद्बोधन  "अनूप नौटियाल" ने उत्तराखंड में पलायन के असर के बारे में बताते हुए विभिन्न प्रकार के पलायन के आंकड़े दिये। उन्होंने कहा कि पलायन को रोकने में सरकारें नाकाम रही है। वर्तमान सरकार ने पलायन आयोग का गठन किया।  पलायन आयोग की रिपोर्ट के आंकड़े अपने विचारों के माध्यम से रखे इस कोरोना अवधि में उन्होंने 10 जिलों में अब तक 69360 लोगों के वापस आने की बात कहीं थी। उन्होंने लौटे हुए लोगों के प्रति चिंता जता कर सरकार से जल्दी योजना बनाने और लागु करने पर जोर दिया।

2- दूसरे उद्बोधन में शिक्षक संघ के कोषाध्यक्ष सतीश घिल्डियाल ने भी सरकार से मांग की कि योजनाएं शार्ट टर्म हों और जल्दी से लागु होंए उन्होंने कहा कि लौटे लोगों को योजनाओं की जानकारी एवं उनके लायक कार्य के प्रति उन्हें जानकारी एवं मार्ग दर्शन जल्दी से एवं गंभीरता से देने की आवश्य्कता है। उन्हें किसानों को तकनिकी ज्ञान देने एवं खेतोँ की चैकबंदी करने की दिशा में काम करने को कहा । व्यक्ति स्किलड हो सकता है तो यहां पर सर्विस सेक्टर को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने इंडस्ट्रियल हैम्प (भाँग) की खेती करवाने पर जोर दिया जो कि बहुत अधिक महंगी बिकती है और जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते। इसके अलावा दवाई हेतु उपयोगी कंडाली और बिजली बनाने हेतु पहले से ही प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली चीड़ का सदुपयोग करवाने पर जोर दिया।

3-  तीसरे उद्बोधन में विजय प्रसाद मैठाणी ने भी पलायन के आंकड़ों को रखते हुए पर्यावरण की बहुत सी सभावनाओं जरुरत बताया। उन्होंने अलग अलग महत्वपूर्ण स्थानों को व्यापारिक केंद्र बनाने के सुझाव दिये। जलश्रोतों के सयोजन की विस्तृत योजना बनाते हुए विद्युत परियोजनाओं पर कार्य करने की बात की ओर ध्यान आकर्षित किया और होम स्टेजों को विकसित करने के लिए अच्छी योजनाओं की अपील की।

4-  चौथे सम्बोधन में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय शर्मा ने अपने अपने गावों में लौटे लोगों के लिए सरकार से ईमानदारी से काम करने पर जोर देते हुए नये छोटे बड़े कारखाने लगाने की बात की ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।

5-पांचवें उद्बोधन में हरियाली फाउंडेशन के उपाध्यक्ष राम प्रसाद भट्ट ने सेवानिवृत कर्मचारियों के अनुभवों को सम्मिलित कर लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित करने की बात की। उन्होंने सरकार को लोगों के लिए बहुत कम व्याज दर पर आसान किस्तों में पूर्ण किए जाने वाले लोन उपलब्ध कराने की सलाह दी।

6-छटवें उद्बोधन में चमोली जिले के नेहरू युवा केंद्र के समन्वयक डा0 योगेश धस्माना के अनुसार उत्तराखंड के पलायन और अन्य प्रदेशों के पलायन में बहुत अंतर है। हमारे यहां स्किल्ड लोगों की अधिकता है तो उनके लिए बहुत जल्दी उसी तरह की योजना बनाने की आवश्यकता है। एक ढांचागत नीति के तहत लोकल क्षेत्र की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए काम करने वालों के लिए सब्सिडी के बजाय वाह्य सपोर्ट की आवश्यकता है। हमें अपना ट्रांसपोर्ट सिस्टम एवं सूचना तंत्र को विशेषकर पहाड़ों के लिए मजबूत करना होगा ताकि हर तरह के कार्यों में तकनीकीय स्वरुप आ सके और रोजगार की संभावना बढे। उन्होंने शिक्षा के स्वरुप को नवोदय विद्यालयों की तरज पर बदलने की जरुरत पर जोर दिया एवं कृषि को तकनीकीय स्वरुप देने की बात कही।

7- सातवें उद्द्बोधन में एच पी ममगाईं ने पशुपालन एवं हर्बल विकास पर भी प्रबल सभावनाएं बताई।

8- आठवें उद्बोधन में शिक्षक अमित कपरुवाण ने इस गोष्ठी के आठवें सम्बोधन में लोकल श्रोतों को तकनीकीय स्वरुप देकर विकसित करने एवं पुनः हिमालयी संसाधनों के विकसित करने के साथ साथ प्रचुरता में उत्पादन पर जोर दिया। उनके अनुसार अगर प्रचुरता होगी तो इस तकनीकीय युग में मार्केट स्वतः ही विकसित हो जायेगा।

9- नवें उद्बोधन में फिल्म निर्माता एवं निर्देशक प्रदीप भंडारी ने इसे एक प्रकार से इसे पुनर्स्थापन नाम दिया और इसे दो श्रेणियों में बाँटा पहली वो जब आज लौटे व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है जिसे स्थापित करने हेतु सरकारी मदद या अन्य क्षेत्रीय समर्थन की आवश्यकता है और एक दीर्घकालीन जब वह स्वयं में निर्भर होने की स्तिथि में होगा। दोनों परिस्थियों के लिए सरकार को गंभीर योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।

10- दसवें उद्बोधन में हाई कोर्ट के अधिवक्ता भगवत सिंह नेगी ने 10वें उद्बोधन में पलायन को एक प्राकृतिक, सामयिक एवं प्रस्थितिक प्रक्रिया बताया जो होती रहेगी मगर हमारे क्षेत्रीय संसाधनों का विकास इस तरह से हो कि यही प्रक्रिया विपरीत भी होने लगे अथार्त अपनी रोजी का साधन व्यक्ति पहाड़ों पर भी ढूंढे। कृषि, पशुपालन, पर्यटन, पर्यावरण पर अभी तक कोई भी सरकार गंभीरता से काम नहीं कर पाई है जो अब तनिकीय स्वरुप देकर और भी आसान हो सकता है बस जरुरत सोच और नीयत की।

11- ग्यारवें उद्बोधन में यूथ आइकन के संस्थापक समाजसेवी शशिभूषण मैठाणी ने अपने वीडियो सम्बोधन में सभी लोगों से अपना परिचय सूचना को अपने गावों से जोड़े रखने की और गावों को पूर्ण रूप से न छोड़ने की अपील की। उन्होंने भी सरकार से क्षेत्रीय संसाधनों को विकसित करने हेतु बन रही योजनाओं की सम्पूर्ण एवं सही जानकारी सभी लोगों तक पहुंचाने का अनुरोध किया।
 
12- बारहवें उद्बोधन में राण्उण्मा पालाकुराली जखोली 
रूद्रप्रयाग के विज्ञान के अध्यापक अश्विनी गौड़ ने लोकल उत्पाद की अधिकता एवं उनका ब्रांड बनाकर तकनीकी ढंग देकर उसका वृहद व्यापार करने का सुझाव दिया।

इस श्रृंखला का संयोजन संस्था के उपाध्यक्ष राकेश मैठाणी एवं श्रेया नौटियाल द्वारा बारी.बारी से किया जा रहा है। अभी यह उद्बोधन श्रृंखला जारी है अभी इसमें कुल 20 से 25 उद्बोधनों का संकलन कर उन सभी की एक सूक्ष्म डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कर सुझाव स्वरूप राज्य सरकार को भेंट की जाएगी।

पलायन रोकने की ड्रीम्स के गोल्डन ड्रीम वीडियो गोष्ठि का समापन उद्बोधन संस्था के अध्यक्ष गंभीर सिंह जयाडा जी का होगा । जिसमें उनके द्वारा वीडियो गोष्ठि का निष्कर्ष देव भूमि की आम जन मानस तथा सरकार तक रखने का प्रयास किया जायेगा।

वीडियो गोष्ठि के सभी वीडियो संस्था के फेसबुक पेज पर देखे जा सकते है ।

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मंगलवार, 26 मई 2020

भारत नेपाल के बीच चर्चा में आये काली नदी विवाद को आसान भाषा मे समझा रहे है- भगवान सिंह धामी ।।web news ।।

Bharat-nepal

क्या है काली नदी विवाद इसे समझते है।

सबसे पहले तो इतिहास को देखते हैं जिससे हमें मालूम पड़ता है कि वर्तमान पश्चिमी नेपाल जोकि बाइसी और चौबीसी राज्य क्षेत्र में सम्मिलित है। पूर्व में नेपाल का हिस्सा नहीं था, डोटी और जुमला स्वतन्त्र राज्य थे जैसे उत्तराखण्ड में पँवार और चंद राज्य थे।

चौबीसी जो कि 24 ठकुराइयों में बंटा था इसमें ही एक ठकुराई थी कास्की जिसके अधीन गोरखा राज्य था, जो गुरु गोरखनाथ पर गोरखा कहलाया था। पूर्व में गोरखा केवल एक राज्य था वर्तमान में एक जनपद है।

सीधे विवाद में आते है इतिहास में ज्यादा न पड़ते हुए।

1815-16 में अंग्रेजों और नेपाल के मध्य सिगौली की संधि हुई जिसमें पारस्परिक सम्प्रभुता के साथ ही काली नदी भारत-नेपाल के मध्य सीमा घोषित की गई। हालांकि गोरखों द्वारा डोटी जीतने से पूर्व तक सुदूर पश्चिमी अंचल कभी भी नेपाल का अंग नहीं था। इस संधि से सुदूर पश्चिमी क्षेत्र नेपाल का अंग बन गया। 1817 में असंतुष्ट नेपाल ने सीमांकन दुबारा करवाया तब दो गाँव #छांगरु और #तिंकर नेपाल को दे दिए गए। (नीचे नजरिया मानचित्र में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं)

मानसखण्ड के अनुसार काली नदी के उद्गम कालापानी से होता है। और यह बात सर्वबिदित भी है। कालापानी नामक स्थान पर पानी हालांकि कम मात्रा में है पर उसके कारण ही काली का जल काले रंग का होता है।

अब नेपाल अभी जो मांग रख रहा है वह ये है कि बड़े जलस्रोत को काली नदी माना जाना चाहिए और बड़ा जलस्रोत काली नदी के लिए गूंजी गांव में काली में मिलने वाली कुटी नदी है, जिसे स्थानीय लोग कुटी यांगटी कहते हैं।

यह बात प्रत्येक नेपाली और भारतीय स्थानीय नागरिक जानते हैं कि काली नदी कौन सी है और कुटी यांगती कौन सी है।

बहरहाल नेपाल का यह तर्क मान भी लिया जाये कि बड़ा जलस्रोत ही मान्य होगा तो सवाल सभी उन लोगों से हैं जो गंगा और अलकनंदा को जानते हैं सही मायने में अलकनंदा नदी बड़ी है आकार में जल धारण क्षमता में तो क्या भागीरथी नदी को गंगा न मानकर अलकनंदा नदी को गंगा कहा जाना उचित होगा.?

ये बेतुका तर्क नेपाल सरकार द्वारा दिया जा रहा है, लेख लम्बा करने का कोई अभिप्राय नहीं है। आप लोग नीचे दिए गए मैप के माध्यम से विवाद और नेपाल की मानसिकता को आसानी से समझ सकते हैं।

Map
Map- Pan Singh Dhami



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लेखक - भगवान सिंह धामी
परिचय - सीमांत धारचूला (पिथौरागढ़) स्यांकुरी गांव के भगवान सिंह धामी  वर्तमान में उत्तराखंड सचिवालय में कार्यरत, युवा इतिहास के जानकार, उत्तराखण्ड ज्ञानकोष General Study के एडमिन , उत्तराखण्ड ज्ञानकोष जनपद दर्पण के लेखक, इनफार्मेशन ब्लॉगर
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पॉजिटिव वेब : सीएम ,डीएम के बाद विधान सभा अध्यक्ष की गढ़वाली चिठी , पढ़े पूरी चिठी ।।web news।

Premchand-aggarwal

मुख्यमंत्री और उत्तरकाशी के जिलाधिकारी की गढ़वाली चिठी के बाद चर्चाओं में है विधान सभा अध्यक्ष की गढवाली चिठी

मैं उत्तराखंड का शहीदों का चरणों मा बारम्बार अपणु शीष नवोंदों । साथ मा उत्तराखण्डी भै बैणों आप सब्बू तैं सादर सेवा सौंली लगोंदु ।

भै-बंदों आज इनु समय ऐगि जब हम सब लोग कोरोना महामारी का संकट का बीच अपड़ि गुजर बसर कना छां । कभि हमारा प्रदेश का रैवासि भै बंद रोजि -रोटी का खातिर देश - विदेश मा गैन अर अपणा -अपणा क्षेत्रु मा प्रवासि बन्धुन उल्लेखनीय कार्य का माध्यम सी अपुणु व उत्तराखंड कु नौं रोशन करि। बहुत सारा प्रवासी भै -बंद देशु -प्रदेशु मा भौत अच्छी स्थिति मा छन। अर भौत बड़ी संख्या मा पड्याँ - लिख्याँ ज्वान नौना-नौनी प्रदेशु मा अपणि रोजि- रोठि का खातिर बहुत मेनत कना छन। पलायन करिक तैं भी हमारा उत्तराखंडी भै -बंद देश अर प्रदेश का विकास मा अपड़ा - अपड़ा हिसाब सी योगदान देंणा छन।पर कोरोना महामारिन सैरि दुन्यां मा एक इनि डर उबजैलि कि अधिकतर प्रवासि अपणा - अपणा गौं व क्षेत्रों मा औंण कु मन बणैंलि । जै मा भौत सारा प्रवासि अपणा - अपणा गौं व जगों मा पौंछि भि गैन । जु प्रवासी भै- बन्द औण सि रैगिन तौं का वास्ता भी भौत जल्दी सरकार व्यवस्था बणौण लगीं च । जु काम भारि औखु लगदु थै, सु सरकार कि सूझबूझ सि आसानि सि त ह्वैगि । पर एक बड़ि कठणै भि हमारा सामणि ऐगी । जु भी प्रवासि भै -बंद घौर वापस ऐगिन तौंका वास्ता रोजि- रोठि कु बंदोबस्त जल्द सी जल्दी स्वरोजगार का माध्यम सी सरकार तैं सुनियोजित विचार कन पड़लू।

देश का प्रधानमन्त्री मा० नरेन्द्र मोदी जी 20 लाख करोड़ कि मदत उत्तराखंड सहित देश मा स्वरोजगार व आत्मनिर्भरता का वास्ता दीलिन जै कु मूल मन्त्र च "स्वराज" । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी भि इनि बोल़्दा था कि स्वराज ही हमारा देश तैं आत्मनिर्भर बणैं सकदु । मा० प्रधानमंत्री जी न भि ये विशेष आर्थिक पैकेज मा किसान, श्रमिक, कुटीर, लघु व गृह उद्योग का साथ मा उद्यानिकी, वानिकी, फलोद्यान, मत्स्य पालन, गौ पालन, मौन पालन, पशुपालन का दगड़ा- दगड़ी ग्राम विकास का अनेक इना रचनात्मक कामौं का माध्यम सि बेरोजगार युवा आज अपड़ा सुनहरा भविष्य कि दिशा मा अगनै बढि सकदन।

ग्रामविकास, पर्यावरण, कृषि जल, जंगल जमीन ,पर्यटन, तीर्थाटन, साहासिक पर्यटन आदि अनेक संसाधनु कु उचित दोहन करिक तैं हम स्वरोजगार, स्वावलंबन कि तरफ बड़ी सकदां । ये अभियान मा हम स्वयंसेवी संस्था, सहकारिता, महिला स्वयं सहायता समूह अर सरकार का अनेक विभागौं कु सहयोग व उचित परामर्श का माध्यम सि प्रवासि व घर वासियों का मेलजोल करिक तैं हम गौं कु पलायन भि रोकि सकदा अर स्वरोजगार भि अपणै सकदां । अनेक प्रदेशों मां रेक आप लोग अपणा-अपणा अनुभव ली तें ओणा छन । आपकी मेहनत, ईमानदारी व प्रतिभा कु लाभ उत्तराखंड तें मिलु अर हमारा प्रदेश कु चोमुखी विकास कन मा आप सभी प्रवासी जन समर्पित भाव सि काम करला ।

अन्त मा मैं आप तैं विश्वास दिलौनु कि ईं विपदा कि घड़ी मा आप पर भगवन श्री बद्री केदार कृपा बणि रली। मैं आप सभि प्रदेश वासियों का दगड़ा मा छौं। अर मैं स्वयं व सरकार का माध्यम सी जतना भि सहयोग आपका खातिर ह्वै सकुलू, कनकु पूरु - पूरू प्रयास करलु । आप जब ऐथर - ऐथर चलला त हम सब आपका दगड़ा - दगड़ी चलिक तैं आपकु व प्रदेश कु उज्जवल भविष्य बणौंण कि पूरि कोशिश करला।
मेरु आप सबु सि निवेदन छ कि आप लोग "आरोग्य सेतु" एप कु उपयोग करला, साथ मा संस्थागत क्वारेंटीन / होम क्वारेंटीन होण मा सहयोग देला, ताकि हम स्वयं स्वस्थ रला, हमारू परिवार, समाज व प्रदेश स्वस्थ रै सकुलु । ये का दगडा -दगड़ी सामाजिक दूरी बणैक रख्यां, भीड़ वाळी जगौं मा कतै नि जाया, अर जु भि सरकार का नियम बणायां छन, वूं कु पूरू - पूरू पालन करला। बस इथगा निवेदन आप सबु सी करदु । आप सभी प्रदेश वासियों तैं मेरु सादर प्रणाम।

जय उत्तराखंड ! जय भारत !!

( प्रेम चन्द अग्रवाल )
अध्यक्ष उत्तराखंड विधानसभा

सोमवार, 25 मई 2020

जन्मदिवस विशेष: अमर हुतात्मा श्रीदेव सुमन ने टिहरी रियासत को राजशाही के बेड़ियों से मुक्ति दिलायी- विनय तिवारी ।।web news ।।


Shridev-suman

टिहरी सियासत के स्वतंत्रता सेनानी अमर हुतात्मा श्री देव सुमन जी को शत शत नमन

अपनी जननी-जन्मभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से आजादी दिलाने के संकल्प को मन में लिए जीने और परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर राजशाही से मातृभूमि को आजादी दिलाने के लिए अपना जीवन अर्पण करने वाले तरुण तपस्वी श्रीदेव सुमन जी को उनके जन्मदिवस पर शत्-शत् नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि।

श्रीदेव सुमन और टिहरी राज्य का गणराज्य भारत में विलय

श्री देव सुमन जी का जन्म जिला टिहरी गढ़वाल के चम्बा ब्लॉक, बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में २५ मई १९१६ को हुआ था । इनके पिताजी का नाम पंडित हरिराम बडोनी तथा माताजी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैद्य थे । सन् १९१९ में जब क्षेत्र में भयानक हैजा रोग का प्रकोप हुआ तब उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना रोगियों की दिन रात एकनिष्ठ सेवा की। उनके परिश्रम से रोगियों को कुछ राहत तो मिली लेकिन वे स्वयं हैजा के शिकार हो गए और मात्र ३६ वर्ष की आयु में परलोक चले गये। उसके बाद सुमन जी की दृढ़ निश्चयी मां ने श्रीदेव सुमन का लालन-पालन तथा शिक्षा का उचित प्रबंध किया । सुमन जी ने पिता से लोक सेवा तथा माँ से दृढ़निश्चय के गुण अंगीकार किए । उनकी पत्नी श्रीमती विजय लक्ष्मी थी जिन्होंने हर संघर्ष में सुमन जी का साथ दिया। सुमन जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव एवं चम्बा से हुई तथा टिहरी से मिडल पास किया। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने अनेकों उपाधियां प्राप्त की। इसी दौरान सन् १९३० में वो देहरादून गए तथा वहां सत्याग्रहियों का जत्था देखा और उसमें शामिल हो गए। उसके बाद देहरादून में अध्यापक की नौकरी करने लगे। उस दौरान देहरादून में ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलनों से प्रभावित हुए तथा टिहरी की राजशाही के अत्याचार के खिलाफ खड़े हो गए। जनता पर राजशाही के अत्याचारों से क्षुब्ध होकर इन्होंने राजशाही के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया |

"अपने देश के लिए और खासकर टिहरी राज्य की प्रजा के लिए मैं अपने जीवन को अर्पित कर दूंगा, पर टिहरी के सार्वजनिक जीवन को कुचलने नहीं दूंगा" श्री श्रीदेव 'सुमन'

इस दौरान सन् १९३९ में उन्होंने टिहरी "प्रजामण्डल" की स्थापना की व राजशाही के अत्याचारों के विरुद्ध टिहरी की आम जनता को एकजुट किया। इस प्रकार वे टिहरी राजशाही के विरोध में सक्रिय भूमिका में आ गए। इसी कारण सन् १९४२ में इन्हें टिहरी के राजा की पुलिस ने गिरफ्तार कर इन पर भविष्य में टिहरी आने पर प्रतिबंध लगा दिया । इसी क्रम में ३० दिसम्बर १९४३ को इन्हें पुनः गिरफ्तार कर दिया गया। उन पर आमानवीय जुल्म किये गए तथा उनके पूरे शरीर को ३५ सेर की बेड़ियां से जकड़ दिया गया २९ फरवरी १९४५ को उन्होंने जेल में जेल प्रशासन के अभद्र व्यवहार के खिलाफ अपना अनशन शुरू किया। जिस पर राजा की ओर से आश्वासन के बाद उन्होंने अनशन समाप्त किया। लेकिन कुछ ही समय बाद टिहरी शासन अपनी हरकतों पर वापिस आ गया। जिससे आहत हो उन्होंने पुनः ३ मई १९४५ को आमरण अनशन शुरू कर दिया। इस पर जेल प्रशासन द्वारा भीषण जुल्म किये गए। सुमन जी का हौंसला टूटता हुआ नहीं दिखने पर क्रूर जेल कर्मियों ने उन्हें जानलेवा इंजेक्शन लगवाए। जिस कारण २५ जुलाई १९४४ को शाम करीब ४ बजे उस वीर अमर सेनानी ने राजशाही से अपनी मातृ भूमि एवं अपने आदर्शों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी रात जेल प्रशासन द्वारा जनता से छुपते-छुपाते इनकी मृतक देह को कंबल में लपेटकर भागीरथी-भिलंगना के संगम से गंगा नदी में डाल दिया। राजशाही का यह अपराध टिहरी राजशाही के लिये उसकी ताबूत का आखरी कील साबित हुआ । राजशाही को जनता के आक्रोश के आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप राजशाही ने टिहरी प्रजामंडल को मान्यता दे दी। सन् १९४७ में प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन हुआ। सन् १९४८ में तो प्रजा ने देवप्रयाग, कीर्तिनगर और टिहरी पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार एक के बाद एक राजशाही कमजोर हो गई। इसके बाद १ अगस्त १९४९ को टिहरी रियासत का भारतीय गणराज्य में विलय हो गया। राजशाही से आजादी एवं भारतीय गणराज्य में विलय के बाद उनकी पत्नी दो बार देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक भी चुनी गईं।
इस प्रकार सुमन जी एवं उन जैसे अनेकों कर्मयोगी नायकों ने टिहरी रियासत की जनता को राजशाही से मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग बनने का मार्ग प्रशस्त किया।

श्रीदेव सुमन जी का सरकारी सम्मान

श्रीदेव सुमन जी के सम्मान में प्रदेश सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं उनके नाम से चलाई जाती है। अनेकों विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल एवं अनेकों संस्थानों को उनके नाम से चलाया जाता है। प्रसिद्ध टिहरी झील को भी सुमन सागर के नाम से जाना जाता है।

टिहरी की जनता का श्रीदेव सुमन जी के वास्तविक सम्मान में सपने

टिहरी सियासत सदैव ऋणी रहेगी अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन जी का। हमारी आगे की पीढ़ी भी अपने स्मृति पटल पर हमेशा हमेशा के लिए सुमन को अंकित कर सके इसके लिए सरकार से हमारी मांग रहेगी कि चम्बा य आस पास के क्षेत्र में एक आधुनिक स्मारक बनाया जाय जिसमें श्रीदेव सुमन जी की स्मृतियों को संजोया जाय, ऐसे प्रयास पहले भी हुए है जो अभी तक सफल नही हुए , श्रीदेव सुमन जी पर शोधार्थियों के लिए सरकार द्वारा उचित सहयोग मिलना चाहिए । 

इस प्रकार सुमन जी का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित हो गया। नमन है इस भूमि को, उन मां-पिता को जिन्होंने ऐसे सपूत को जन्म दिया।

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Vinay-tiwari
लेखक परिचय - विनय तिवारी, सोशल मीडिया युवा लेखक, सामाजिक कार्यो में सक्रियता, साथ ही चम्बा से जुड़ी गतिविधियों के लिए चबा द हिल किंग टिहरी गढ़वान पेज पर निरतंर सक्रिय रहते है । कई वेब पोर्टलों, वेबसाइटों के माध्यम   से युवाओं को संकृति, राष्ट्रभक्ति से परिचित कराने का कार्य करते है । 

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शुक्रवार, 22 मई 2020

Biodiversity Day Special : जैव विविधता का असंतुलन है केदारनाथ जैसी त्रासदी - संदीप ढौंडियाल ।। web news uttrakhand ।।


Kedarnath

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष

जैव विविधता अर्थात जीवों के अनेक प्रकार या कह सकते हैं जीवन के अनेक रूप। प्रकृति में मौजूद वनस्पति से लेकर सभी जीव जंतुओं की संतुलित मौजूदगी पर चिंता ने ही जैव विविधता दिवस की परिकल्पना की। निरंतर होते जा रहे प्रकृति के दोहन ने आज पूरे विश्व को इस ओर ध्यान आकर्षित कर सोचने पर मजबूर किया है। इन्हीं तमाम चिंताओं को लेकर विश्व समुदाय ने 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। प्रत्येक वर्ष एक नए विषय पर पूरे विश्व भर में चिंतन और मनन होता है। साथ ही उस पर तमाम देश अच्छे सुझाव को लेकर जैव विविधता के संरक्षण के कार्य को अंगीकार करते हैं।

सही मायने में प्रकृति जैसे - हवा, पानी, पेड़, वनस्पति सहित वन्य जीव जंतु का मानव से सीधा जुड़ाव ही जैव विविधता है। प्रकृति या पर्यावरण का असंतुलित हो जाना ही कारण बनता है प्राकृतिक उथल - पुथल का। जिसके फिर भयंकर परिणाम सामने आते हैं। जैसे बाढ़, चक्रवात, तूफान और भूकंप जैसी अप्रिय घटनाओं का होना। इन सब को देखते हुए मानव सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी हो जाता है कि हम प्रकृति को उसके मूल स्वरूप में ही रहने दें। प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने का अर्थ है प्रकृति का रुष्ट और क्रोधित हो जाना। दुष्परिणाम स्वरूप 2013 की केदारनाथ जैसी भयंकर त्रासदी का घटित होना। पूर्व में ऐसी घटनाएं ही कारण भी रही है कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए विश्व भर में आवाज उठने लगी। 29 दिसंबर 1992 को नैरोबी में जैव विविधता के एक कार्यक्रम में जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। लेकिन तमाम देशों  की ओर से कठिनाइयां व्यक्त करने के बाद 29 मई की जगह 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। जिसमें प्रकृति के साथ ही संस्कृति के संरक्षण पर भी बल दिया गया। जैसे भाषा - संगीत, कला - शिल्प के साथ ही पारंपरिक वस्त्र और भोजन आदि को जोड़कर  इनके संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

अगर भारत की बात करें तो पूरे देश की लगभग 28 प्रतिशत जैव विविधता हिमालयी क्षेत्र में है। जिनमें से एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में मौजूद है। राज्य में 6 राष्ट्रीय उद्यानों सहित 7 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, 4 कंजर्वेशन और एक बायोस्फीयर रिजर्व मौजूद है। वर्तमान समय में सरकारों की ओर से अपने स्तर पर जैव विविधता संरक्षण को लेकर कई कार्य किए जा रहे हैं। जैसे लगातार लुप्त होते जा रहे भारतीय चीता और शेरों की ओर ध्यान गया तो उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए लगातार कार्य किया जाने लगा। ऐसे ही प्रयासों के लिए उत्तराखंड राज्य में भी उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया है। मौजूदा समय में जैव विविधता संरक्षण के लिए तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में वृहद रूप में कार्य किए जाने की आवश्यकता है। ग्रामीण अंचल में बसी हुई प्रकृति और संस्कृति को संजोए रखना आज किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में हमें चाहिए कि जैव विविधता संरक्षण के लिए दूरस्थ क्षेत्रों के गांवों  को जोड़कर इसमें ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। उत्तराखंड प्रकृतिक सम्पदा से धन-धान्य राज्य है। यहां के लोगों की तमाम धार्मिक मान्यताएं हमें प्रकृति से सीधे जोड़ती हैं। ऐसे में यहां के पौराणिक मठ - मंदिरों को भी जैव विविधता में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए अनवरत प्रयास किए जाने की नितांत आवश्यकता है।

जैव विविधता संरक्षण के महत्व को आज के संदर्भ में इन पंक्तियों से समझा जा सकता है -


श्रृंखलाएं पर्वतों की, क्यों दहाड़ मारे रो उठी।
बाघ, पानी, पेड़, पक्षी, है मानवों से क्यों डरी।।
है सभ्यता का अंत निश्चित, जो अनादि से थी अडिग खड़ी।
विनाशरूपी विकास में, कुछ हिस्सेदारी मेरी सही।।

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लेखक परिचय -,संदीप ढौंडियाल, एक बड़े समाचारपत्र में पत्रकार और पर्यावरणीय स्तम्भ लेखक होने के साथ ही इंजीनियर, सामाजिक संस्था जिंदगी डायरेक्शन सोसाइटी देहरादून के संस्थापक व अध्यक्ष

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यह भी पढ़ें - उत्तराखड की सांस्कृति का केंद्र बिन्दु है थौल मेले -विनय तिवारी ।। web news uttrakhand ।।

शनिवार, 9 मई 2020

इम्युनिटी बढ़ाये कोरोना भगाये - डॉ शैलेन्द्र कौशिक व डॉ प्रिया पांडेय कौशिक

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कैसे रखे अपने इम्यूनिटी सिस्टम का ख्याल जाने डाक्टर दंपति डॉ शैलेन्द्र कौशिक व डॉ प्रिया पांडेय कौशिक से विस्तृत जानकारी

कोरोना वायरस का संक्रमण भारत में अभी भी तेजी से बढ़ रहा है जिसे देखते हुए यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि भारत में अगले दो हफ़्तो मे संक्रमण और तेजी से फैलेगा ऐसे में किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचे रहने के लिए आपके इम्यून सिस्टम का मजबूत होना बहुत जरूरी है। इसी को ध्यान में रखते हुए कौशिक होम्यो क्लिनिक के संचालक डॉक्टर दंपत्ति ने अपनी ओर से एडव्यजरि जारी की है जिससे इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के कुछ उपाय शामिल है ।

अगर हम अपनी दिनचर्या की कुछ बातों पर विशेष ध्यान दें तो हमारा इम्यून सिस्टम काफी मजबूत होगा और हम कोरोना सहित कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने से बचे रहेंगे। इसके लिए सबसे पहले हमे हेल्दी लाइफ स्टाइल अपनाना होगा,

गहरी नींद लेने से भी इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाए रखा जा सकता है इसलिए अगर आप अपने में सिस्टम को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं तो भरपूर नींद लें। हालांकि, कुछ लोगों को अनिद्रा की भी समस्या होती है और अगर आप ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं तो ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जो आपको जल्दी नींद दिला सकें और आप की स्लीपिंग क्वालिटी को भी बूस्ट कर सके।

व्यायाम करने से हमें अच्छी फिटनेस तो मिलती ही है इसके साथ-साथ इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए भी इसका बहुत बड़ा योगदान होता है। दरअसल, एक्सर्साइज के दौरान हमारे शरीर के कई अंगों की बेहतरीन मालिश हो जाती है जिसके कारण यह इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट करने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं। इसलिए नियमित रूप से व्यायाम भी करें ताकि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे।

स्ट्रेस लेने वालों का इम्यून सिस्टम भी काफी हद तक कमजोर हो जाता है। इसलिए अगर आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं तो किसी भी काम के बारे में स्ट्रेस ना लें और कोशिश करें कि आपके जो भी काम हैं उसे सही समय पर खत्म करें। स्ट्रेस लेने के कारण शरीर की कई कोशिकाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके कारण वह इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं को भी हानि पहुंचाती हैं और आपका इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। इसलिए मजबूत इम्यूनिटी के लिए स्ट्रेस लेने से बचें।

विटामिन-सी हमारी रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ने मे बहुत कारगर है, इसलिए आप भी इसका सेवन नियमित रूप से कर सकते है,

दही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो हमारे पेट को ठंडा रखने के साथ-साथ हमें कई प्रकार की बीमारियों से भी बचाता है। इतना ही नहीं, पेट में अच्छे बैक्टीरिया बनाकर भी यह हमारे इम्यून सिस्टम को कमज़ोर होने से बचाए रखने का काम करता है। इसलिए इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए आप भी नियमित रूप से दही का सेवन कर सकते हैं।

पुरुषों के लिए लहसुन जितना फायदेमंद होता है, उतना ही इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए भी इसका सेवन किया जाता है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके लिए आप सुबह रोज दो कच्चे लहसुन का भी सेवन कर सकते हैं जो आपकी इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार साबित होगा।

सिगरेट और शराब के इम्यूनिटी पर दुष्प्रभाव पड़ते है

◆ धूम्रपान

यदि आप धूम्रपान करते है तो पहले आपको धूम्रपान छोड़ना होगा क्योंकि धूम्रपान करने के कारण आपके फेफड़े और श्वसन प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है जिसके कारण इम्यून सिस्टम भी कमजोर होने लगता है। इतना ही नहीं यह आप के श्वसन अंगो में कैंसर का भी कारण बन सकता है। इसलिए मजबूत इम्यूनिटी के लिए आपको धूम्रपान छोड़ देना चाहिए।

दिमाग,यक्रत ,लीवर,भोजन नली,केंद्रिय तंत्रिका तंत्र,मानसिक,शरीरिक ,सामाजिक, परिवारिक,और आर्थिक सभी ओर से हानि ही मिलती है किसी भी प्रकार के नशे से,और कैंसर का भी खतरा होता है।

◆ शराब

शराब हमारे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लिए हानिकारक है और हमारी मनोदशा में उतार-चढ़ाव ला सकती है. शराब हमारे मस्तिष्क में सेरोटोनिन के स्तर को कम करती है. इसके नियमित सेवन से मस्तिष्क का रसायन विज्ञान बदल जाता है जिससे मस्तिष्क स्वास्थ्य में गिरावट आती है."

इन बातों में भी ध्यान दें

• घर पर रहे सुरक्षित रहे और जितना हो सके बहुत ही जरूरी काम हो तो ही घर से बाहर जाए
• कोरोना के किसी भी लक्षण जैसे बुखार,सुखी खाँसी,गले मे दर्द या खराश,बदन दर्द,स्वास लेने मे दिक्कत इत्यादि लक्षणों के आने पर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जारी टोल फ्री नंबरो पर तुरंत संपर्क करे ।
• कोरोना योद्धा ओ का सम्मान करे , शासन, प्रशासन ,समाज सेवियो,बैंक कर्मियों,पुलिस कर्मियों,सफ़ाई कर्मियों और हेल्थ वर्करस् का सहयोग करे ।
इन्होंने अपने परिवार को खतरे मे डाला है आपकी सुरक्षा और सेवा के लिए इनका सम्मान करे जय हिंद

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डॉ शैलेन्द्र कौशिक, डॉ प्रिया पांडेय कौशिक
कौशिक होम्यो क्लिनिक लाडपुर,रायपुर रोड, देहरादून,




मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

उत्तराखड की सांस्कृति का केंद्र बिन्दु है थौल मेले -विनय तिवारी ।। web news uttrakhand ।।


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वी सी गब्बरसिंह स्मृति स्मारक चम्बा 

चम्बा की पहचान है इसकी पहाड़ी संस्कृति। ८ गति बैशाख का थौल चम्बा की एक विशेष सांस्कृतिक झलकी है। जो चम्बा के एक वीर पराक्रमी बेटे विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित शहीद गबर सिंह जी की स्मृति में आयोजित एक उत्सव है। वैसे तो पहाड़ों की संस्कृति अनेकों अलंकारों से सुशोभित है ही जिसमें प्रमुख हैं इसके धार्मिक यात्रा, रामलीला, पांडव नृत्य,धार्मिक अनुष्ठान,थौल मेले आदि। फिर भी थौल का महत्व इतना अधिक होता है कि इस दिन लोग घरों से निकल चम्बा की ओर हर्ष और उल्लास के माहौल के साथ बढ़ते हैं। अन्य दिनों की भांति चम्बा की ओर ये विशेष कार्य सिद्धि के लिए ना होकर वीर स्मृति में आनंदित होने के लिए होती है। वर्तमान में भले ही बाजारों में मेले जैसी ही भीड़ होती है लेकिन पहले के समय में बाज़ार ऐसे नहीं होते थे। अब जबकि बाज़ार रोज ही सजते हैं फिर भी थौल के दिन मानो लोग अपने सारे काम धाम छोड़ चल देते हैं चम्बा बाज़ार।

इस आयोजन में पहाड़ी जलेबी पकोड़ी, मिठाई और आईस क्रीम का महत्व बहुतायत होता है। बच्चों के खिलौने, झूला, चरखी आदि अनेकों साधन वर्तमान समय में थौल की पहचान हैं।
.....…....

बीते कुछ वर्षों में कार्यक्रम की रूपरेखा -

◆सर्वप्रथम थौल के कुछ दिन पूर्व से अगले शाम तक स्मारक की सफाई, सुधि इत्यादि किया जाता है।
◆भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स के जवान सलामी परेड की तैयारी करते हैं।
◆थौल वाले दिन सुबह वीर स्मारक को फूल मालाओं से सजाया जाता है।
◆सुबह की प्रथम किरण एवं मुहूर्त के साथ ढोल दमाऊ की थाप लिए शहीद के वंशज धूप दीप, फूल आदि से उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
◆गढ़वाल राइफल्स के जवान जो कि पूरी तैयारी के साथ शहीद के सम्मान में परेड का आयोजन करते हैं। इसमें परेड, मस्क बाजे और ड्रम की अनेकों धुन तथा शहीद के स्मारक पर फूल अर्पण आदि कार्य होता है। यह थौल कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बिंदु भी है। इसके साथ ही थौल का आगाज़ होता है। वर्तमान में थौल कार्यक्रम परिवहन की सुविधा के कारण देर शाम लगभग ८ बजे तक चलता है।
◆उसके बाद २ से ३ दिन शाम को राजकीय इंटर कॉलेज तल्ला चम्बा में रंगारंग सास्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं।
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शहीद का संक्षिप्त परिचय-

विक्टोरिया क्रॉस शहीद गबर सिंह नेगी जी का जन्म चम्बा के मंज्यूड़ गांव में २१ अप्रैल १८९५ हुआ था। इनके पिता श्री बद्री सिंह नेगी और माता श्रीमती सावित्री देवी थी। छोटी उम्र में ही पिता की मृत्यु हो गई जिस कारण घर की जिम्मेदारी इनके ऊपर आ गई। इस पर वर्ष १९११ में टिहरी नरेश के प्रतापनगर स्थित राजमहल में नौकरी करनी शुरू कर दी। १ साल बाद १९१२ में इनकी शादी मखलोगी पट्टी के छाती गांव की सत्तूरी देवी से हुई। गबर सिंह राजमहल में नौकरी तो कर रहे थे लेकिन उनका मन नहीं लग रहा था वे फौज में भर्ती होना चाहते थे इसलिए राजमहल में केवल सितंबर १९१३ तक की नौकरी की। उसी दौरान प्रथम विश्वयुद्ध की आशंका के चलते फौज में भर्ती होने का दौर चला। गबर सिंह को शुरू से ही फौजी वर्दी और सेना से लगाव था। वह सेना में भर्ती होने के लिए लैंसडाउन जा पहुंचे और अक्टूबर १९१३ में गढ़वाल रेजीमेंट की २/३९ बटालियन में बतौर राइफलमैन भर्ती हुए। तब भारतवर्ष ब्रिटिश शासन के अधीन था।
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गबर सिंह नेगी और प्रथम विश्वयुद्ध-

गब्बर सिंह को भर्ती हुए कुछ ही दिन बीते थे कि ब्रिटिशों ने भारतीय सेना को यूरोपीय मोर्चे पर तैनात किया जिसकी जिम्मेदारी गबर सिंह की रेजीमेंट को दी गई। २ सितंबर १९१४ को गढ़वाल रेजीमेंट ने यूरोप के लिए प्रस्थान किया और वहां युद्ध में डट गए। वहां पर जर्मन सेनाओं ने ४ मील से अधिक का अभेद्य मोर्चा बना लिया था। अभी तक जर्मन सेना ब्रिटिश सेना पर हावी थी ब्रिटिश सेनापति चिंतित थे कि आखिरी युद्ध कैसे जीता जाए। काफी सोच-विचार के बाद ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर गढ़वाल बटालियन को भेज दिया। १० मार्च १९१५ सुबह की प्रथम प्रहर चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था ब्रिटिश सैनिक अधिकारी और गढ़वाल बटालियन के बहादुर सैनिक आगे बढ़े। दुश्मन की गोलाबारी के कारण भारी संख्या में सैन्य अधिकारी एवं सैनिक मारे गए । इस युद्ध में 250 सैनिक तथा 20 अधिकारी शहीद हुए। मोर्चे पर जर्मन सेना की मशीन गन कहर बरपा रही थी। गढ़वाली वीर सैनिक जय बद्री विशाल के उद्घोष के साथ आगे बढ़े और अनेक बाधाओं को पार कर जर्मन सेना पर टूट पड़े। इसी दौरान टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे नायक शहीद हो गए। उनके स्थान पर गबर सिंह ने टुकड़ी का नेतृत्व किया और वह दुश्मन की पोस्ट में घुस गए उन्होंने अपनी रायफल से जर्मन सेना के सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। एक ओर जर्मन सेना की मशीन गनें आग उगल रही थी तो दूसरी ओर गढ़वाल बटालियन के सैनिकों की सिंह गर्जना। जब गबर सिंह जी की राइफल खाली हो गई तो उन्होंने दुश्मनों की मशीनगन छीनकर उन पर ही गोलियां दागनी शुरू कर दी गबर सिंह ने न केवल जर्मन सैनिकों को मार गिराया बल्कि उनके सैकड़ों सैनिकों को बंदी भी बना दिया। इस युद्ध में वह दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। गढ़वाल राइफल के जवान गबर सिंह नेगी को मरणोपरांत सेना का तत्कालीन सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया गया। जब गबर सिंह शहीद हुए तो उस समय उनकी आयु मात्र २० साल थी। ब्रिटिश सरकार की ओर से सन् १९२५ में चंबा नगर के चौराहे में शहीद का स्मारक बनाया गया।
जहां हर वर्ष उनकी शहादत दिवस और जन्मदिवस पर सेना के जवान उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।इस समय विश्व व्यापी काॅरोना संकट के चलते भारत सरकार द्वारा सभी सार्वजनिक समारोह स्थगित किए गये हैं। जिस कारण इस वर्ष प्रशासन द्वारा वीर गबर सिंह की जन्म स्मृति में आयोजित होने वाले ८ गति वैशाख थौल तथा अन्य समारोह स्थगित किए गए। लेकिन सामाजिक दूरी का पालन करते हुए स्मारक में पूजा अर्चना एवं माल्यार्पण किया गया। वीर गबर सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।

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लेखक परिचय - विनय तिवारी, सोशल मीडिया युवा लेखक, सामाजिक कार्यो में सक्रियता, साथ ही चम्बा से जुड़ी गतिविधियों के लिए चबा द हिल किंग टिहरी गढ़वान पेज पर निरतंर सक्रिय रहते है । कई वेब पोर्टलों, वेबसाइटों के माध्यम   से युवाओं को संकृति, राष्ट्रभक्ति से परिचित कराने का कार्य करते है । 

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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

7 गति बैशाख मेरा मुलुक मेला : रथि देवता मेला।।


Chmba-mela, उत्तराखंड-के-मेले,
फ़ोटो: चम्बा द हिल किंग - टिहरी गढ़वाल के फेसबुक पेज से 

चम्बा।।उत्तराखंड।। विनय तिवारी
।। उत्तराखंड की संस्कृति में थौल मेलों का अपना एक अलग महत्व है। पहाड़ी संस्कृति में थौल मेलों का स्थान काफी ऊंचा है ये अवसर ईश्वर वंदना, सांस्कृतिक सम्मेलन, सांस्कृतिक आदान प्रदान एवं भांति भांति के कार्यक्रमों का अवसर होता है। थौल मेलों का आकर्षण हर उम्र वर्ग के लोगों को मोह लेता है। इस अवसर पर खेलों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं खानपान से सुसज्जित बाजारों को देखा जाता है।
थौल मेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक यात्रओं को लेकर गढ़ रत्न श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीत "2 गति बैशाख मेरा मुलुक मेला" आपने जरूर सुना और गुनगुनाया होगा ।
बैशाख के पूरे महीने संक्रांति से ही थौल मेले प्रारंभ हो जाते बाजार नई रंगत से सज जाते है, व्यापारी अपने व्यवसाय बढ़ने की कामना करते है, ध्याण मेलों में मैतियों मिलन की ईच्छा रखती है । नव युवा युवतियां  प्रेम प्रसंग की आस लगते है , बढे ,बूढ़े-बुजुर्ग रसीली जलेबी चटपटी पकौड़ी का इंतजार करते है । बच्चे खिलोने ,चरखी के मजे लेने का, तो देव भूमि के देवी देवता रोट भेंट का । थौल मेले मुख्य बाजार, छोटी-छोटी मार्केटों में व देव स्तुति के लिए मंदिर प्रांगण में लगते है । मेलों का इंतजार साल भर से होता है ।
इसी क्रम में हिन्दू पंचांग के अनुसार 7 गति बैशाख को श्री धनसिंह रथी देवता सिद्ध देवता का मेला होता है यह मंदिर चम्बा (टिहरी गढ़वाल )से लगभग २६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हमारे भारतवर्ष में किलिखाल मेले के रूप में प्रसिद्ध है।
इस बार किसी को भी इस स्थल में जाने का शुभ अवसर प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि देश एक महामारी काल के दौर में है। लॉक डॉउन का पालन अतिआवश्यक है। इसलिए यह लेख आपके लिए प्रस्तुत है। इस बार इस बार ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था थी ।
सभी संस्कृति प्रेमियों के चरणों में लेेेख के माध्यम से एक धार्मिक सांस्कृतिक भेंट।

।।जय रथी राजा! जय धन सिंह महाराज!।।