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अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शुक्रवार, 26 मार्च 2021

उत्तराखंड समाचार : कृपया ध्यान दे ! होली सरकारी फरमान के अनुसार मनाए , जाने होली की गाइडलाइन ।।web news।।

होली के लिए सरकार ने जारी की गाइडलाइन

कोरोना को देखते हुए होली के लिए गाइडलाइन जारी की गयी, गाइडलाइन के अनुसार होलिका दहन कार्यक्रम स्थल की छमता 50% व्यक्तियों के लिए ही अनुमति रहेगी तथा होलिका दहन स्थल पर भीड़ का जमावड़ा नहीं किया जाएगा कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले समस्त व्यक्ति मास्क व समाजिक दूरी के नियम का पालन करेंगे होलिका दहन कार्यक्रम में 60 साल से ऊपर की महिला व पुरुष 10 साल से कम उम्र के बच्चे तथा गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति कार्यक्रम में प्रतिभाग करने से बचें होली मिलन स्थल पर स्थल की क्षमता का 50% अधिकतम 100 से ज्यादा व्यक्ति प्रति भाग नहीं करेंगे समारोह के आयोजकों द्वारा स्थल के प्रवेश पर थर्मल स्कैनिंग सैनिटाइजर आदि व्यवस्थाओं की सुनिश्चित किया जाएगा तथा बुखार जुखाम आदि से पीड़ित व्यक्तियों तथा बिना मास पहने व्यक्तियों का शालीनता के साथ स्थल पर प्रवेश न करने की सलाह दी जाए होली मिलन स्थलों पर शालीनता के साथ होली मनाई जाए किसी प्रकार का हुड़दंग आदि नहीं किया जाएगा सार्वजनिक स्थल पर मदिरापान तेज म्यूजिक लाउडस्पीकर आदि का प्रयोग नहीं किया जाएगा कैंटोनमेंट जोन मैं होली खेलना पूर्णता प्रतिबंध रहेगा लोग अपने घरों के अंदर ही होली मना सकते हैं संकरी सड़कों व संकरी गलियों आदि में होली खेलने से बचे हैं होली में पानी वाले रंगों का प्रयोग करने से बचें, ऑर्गेनिक रंगों का प्रयोग करने, होली मिलन समारोह में यथासंभव खाद्य सामग्री आदि का वितरण से परहेज किया जाए । यदि आवश्यक है तो खाद्य पदार्थ व पेयजल वितरण के लिए डिस्पोजेबल गिलास व बर्तनों का प्रयोग किया जाए समारोह स्थल पर आयोजकों द्वारा डस्टबिन आदि की समुचित व्यवस्था की जाएगी तथा कूड़े आदि के इधर उधर न बिखरा कर डस्टबिन का प्रयोग किया जाएगा समारोह स्थल पर कोविड-19 इनको व दिशा निर्देशों का समुचित अनुपालन करने का दायित्व आयोजकों का होगा, समय समय पर भारत सरकार राज्य सरकार व जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होगा , इसमें सोशल डिस्टेंसिंग सैनिटाइजेशन और मास्क का उपयोग शामिल है ।

आज के अन्य महत्वपूर्ण समाचार

शुक्रवार, 22 मई 2020

Biodiversity Day Special : जैव विविधता का असंतुलन है केदारनाथ जैसी त्रासदी - संदीप ढौंडियाल ।। web news uttrakhand ।।


Kedarnath

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष

जैव विविधता अर्थात जीवों के अनेक प्रकार या कह सकते हैं जीवन के अनेक रूप। प्रकृति में मौजूद वनस्पति से लेकर सभी जीव जंतुओं की संतुलित मौजूदगी पर चिंता ने ही जैव विविधता दिवस की परिकल्पना की। निरंतर होते जा रहे प्रकृति के दोहन ने आज पूरे विश्व को इस ओर ध्यान आकर्षित कर सोचने पर मजबूर किया है। इन्हीं तमाम चिंताओं को लेकर विश्व समुदाय ने 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। प्रत्येक वर्ष एक नए विषय पर पूरे विश्व भर में चिंतन और मनन होता है। साथ ही उस पर तमाम देश अच्छे सुझाव को लेकर जैव विविधता के संरक्षण के कार्य को अंगीकार करते हैं।

सही मायने में प्रकृति जैसे - हवा, पानी, पेड़, वनस्पति सहित वन्य जीव जंतु का मानव से सीधा जुड़ाव ही जैव विविधता है। प्रकृति या पर्यावरण का असंतुलित हो जाना ही कारण बनता है प्राकृतिक उथल - पुथल का। जिसके फिर भयंकर परिणाम सामने आते हैं। जैसे बाढ़, चक्रवात, तूफान और भूकंप जैसी अप्रिय घटनाओं का होना। इन सब को देखते हुए मानव सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी हो जाता है कि हम प्रकृति को उसके मूल स्वरूप में ही रहने दें। प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने का अर्थ है प्रकृति का रुष्ट और क्रोधित हो जाना। दुष्परिणाम स्वरूप 2013 की केदारनाथ जैसी भयंकर त्रासदी का घटित होना। पूर्व में ऐसी घटनाएं ही कारण भी रही है कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए विश्व भर में आवाज उठने लगी। 29 दिसंबर 1992 को नैरोबी में जैव विविधता के एक कार्यक्रम में जैव विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। लेकिन तमाम देशों  की ओर से कठिनाइयां व्यक्त करने के बाद 29 मई की जगह 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। जिसमें प्रकृति के साथ ही संस्कृति के संरक्षण पर भी बल दिया गया। जैसे भाषा - संगीत, कला - शिल्प के साथ ही पारंपरिक वस्त्र और भोजन आदि को जोड़कर  इनके संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

अगर भारत की बात करें तो पूरे देश की लगभग 28 प्रतिशत जैव विविधता हिमालयी क्षेत्र में है। जिनमें से एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में मौजूद है। राज्य में 6 राष्ट्रीय उद्यानों सहित 7 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, 4 कंजर्वेशन और एक बायोस्फीयर रिजर्व मौजूद है। वर्तमान समय में सरकारों की ओर से अपने स्तर पर जैव विविधता संरक्षण को लेकर कई कार्य किए जा रहे हैं। जैसे लगातार लुप्त होते जा रहे भारतीय चीता और शेरों की ओर ध्यान गया तो उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए लगातार कार्य किया जाने लगा। ऐसे ही प्रयासों के लिए उत्तराखंड राज्य में भी उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया है। मौजूदा समय में जैव विविधता संरक्षण के लिए तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में वृहद रूप में कार्य किए जाने की आवश्यकता है। ग्रामीण अंचल में बसी हुई प्रकृति और संस्कृति को संजोए रखना आज किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में हमें चाहिए कि जैव विविधता संरक्षण के लिए दूरस्थ क्षेत्रों के गांवों  को जोड़कर इसमें ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। उत्तराखंड प्रकृतिक सम्पदा से धन-धान्य राज्य है। यहां के लोगों की तमाम धार्मिक मान्यताएं हमें प्रकृति से सीधे जोड़ती हैं। ऐसे में यहां के पौराणिक मठ - मंदिरों को भी जैव विविधता में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही उनके संवर्धन और संरक्षण के लिए अनवरत प्रयास किए जाने की नितांत आवश्यकता है।

जैव विविधता संरक्षण के महत्व को आज के संदर्भ में इन पंक्तियों से समझा जा सकता है -


श्रृंखलाएं पर्वतों की, क्यों दहाड़ मारे रो उठी।
बाघ, पानी, पेड़, पक्षी, है मानवों से क्यों डरी।।
है सभ्यता का अंत निश्चित, जो अनादि से थी अडिग खड़ी।
विनाशरूपी विकास में, कुछ हिस्सेदारी मेरी सही।।

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लेखक परिचय -,संदीप ढौंडियाल, एक बड़े समाचारपत्र में पत्रकार और पर्यावरणीय स्तम्भ लेखक होने के साथ ही इंजीनियर, सामाजिक संस्था जिंदगी डायरेक्शन सोसाइटी देहरादून के संस्थापक व अध्यक्ष

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