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मंगलवार, 25 मई 2021

माटी संस्था ने जैवविविधता सम्बंधित राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित की ।।web news।।

माटी संस्था, देहरादून ने जैव विविधता सम्बंधित समस्याओं के समाधान विषय पर राष्ट्रीय बेविनार सह परिचर्चा का आयोजन किया

प्रत्येक वर्ष 22 मई को “अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस” मनाया जाता है। साथ ही यह एक पूरा सप्ताह है जो की पूरी तरह जैव विविधता के प्रति समर्पित दिखता है। जैसे 20 मई विश्व मधुमक्खी दिवस, 21 मई लुप्तप्राय प्रजाति दिवस, 23 मई, विश्व कछुआ दिवस। विश्व भर में जैव विविधता दिवस मनाने का उद्देश्य इसकी की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति मानव समाज में जागरूकता बढ़ाया जा सके। इस वर्ष 2021 की थीम रही- "हम समाधान का हिस्सा हैं (We’re part of the solution)", जो की पिछले साल "हमारे समाधान प्रकृति में हैं (Our solutions are in nature)" के थीम को निरंतरता प्रदान करता ही, क्योंकि हम और प्रकृति आपस में सह-सम्बंधित हैं। अतीत एवं वर्तमान में मानवजाति की विकास की हमारी प्रक्रियाओं के कारण हम अपनी जैव- विविधता का दोहन आवश्यकताओं से कही अधिक करते जा रहे है। इससे जैव विविधता को नुकसान के साथ अमूल्य परिवर्तन आया है और हम इस परिवर्तन को आसानी से प्रकृति के मूल स्वरुप में नहीं ला सकते हैं। लेकिन अब हम अपनी दैनिक क्रियाओं में बदलाब लाकर अपनी आसपास की जैव-विविधता को बचाने हेतु हम महतवपूर्ण योगदान कर सकते हैं।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी माटी संस्था, देहरादून ने अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस को मनाया । इस वर्ष कोरोना की इस दूसरी लहरों के बिच आज माटी संस्था, देहरादून ने वेर्चुअल मोड में एक राष्ट्रीय वेबिनार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता मनाया। इस राष्ट्रीय वेबिनार का मुख्य उद्देश्य था मानव जाति द्वारा निर्मित समस्याओं के बुनियादी स्तर के समाधान की खोज करना था. जो इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता -2021 की थीम भी है “हम समाधान का हिस्सा हैं (We’re part of the solution)”। 
इस राष्ट्रीय वेबिनार मूल प्रकृति रूप से अन्य वेबिनारों से अलग थी ,इसमें वक्ता के रूप में विषयक्षेत्र से सम्बंधित लोगों के आलावा इंजिनीअरिंग, मेडिकल, कॉमर्स, कला आदि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 100 से ज्यादा प्रतिभागीयों ने वक्ता के रूप में मौजूद थे। सभी वक्ताओं ने जैव-विविधता के संरक्षण हेतु अपने विचारों और दृष्टिकोणों कों साँझा किया।


कार्यक्रम की शुरुआत माटी संगठन की सह-संस्थापक और वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपूत के स्वागत भाषण से हुई, उनके भाषण के बाद, पेशे से इंजीनियर शतमाघना चौधरी ने सस्टेनेबिलीटी पर अपने विचार रखे । आगे विचारों को साझा करने की श्रृंखला में वक्ता के रूप में अर्कदीप ने अपने विचार रखे ।मानवविज्ञानी जोखान शर्मा ने बताया कि जैव - विविधता के संरक्षण में हमारी संस्कृति और पारंपरिक प्रथाएं बहुत अधिक प्रभावी हैं।  इस वेबिनार में मुख्य मंच संचालक के रूप में ओइंद्रिला सान्याल एवं दीपशिखा नें सह - मंच संचालक ने योगदान किया। इस कार्यक्रम के दौरान प्रतीक्षा महार, अनुप्रिया सहित समस्त माटी टीम सदस्य उपस्थित रहे।

देखे वीडियो ,बाबा रामदेव ने फार्मा कंपनियों से पूछे 25 सवाल









गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

Online training : माटी संस्था ने आलू की खेती की ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया ।। Web News।।

Online-tranning

माटी संस्था, देहरादून की ओर से “आलू की खेती: जीविकोपार्जन का एक उत्तम विकल्प ” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।

देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के अवसर बढ़ाने के अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में आज "माटी जैव विविधता संरक्षण और सामाजिक अनुसंधान संगठन" देहरादून, ने “आलू (सोलनम ट्यूबरोसम) की खेती जीविका उपार्जन का एक उत्तम विकल्प” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 

Mati-sansath

माटी संस्था के संस्थापक वैज्ञानिक डॉ० वेद कुमार ने अपने उद्बोधन भाषण में कहा ।

माटी संस्था के संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० वेद कुमार ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा की ‘यह प्रशिक्षण कार्यक्रम हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की उस अपील को ध्यान मे रखते हुए कराया गया, जिसमे उन्होने देश को “आत्मनिर्भर भारत” बनाने की बात कही थी। माटी संस्था शुरुवात से ही अनेक ऐसे सामाजिक सरोकार संबन्धित कार्य करती आई है, जिससे देश व समाज आत्मनिर्भर बने।‘ वही संस्था के सह-संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपुत ने कहा की इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मूल उद्देश्य देश के युवाओं को ग्रामीण कृषि स्वरोज़गार हेतु प्रेरित करने के साथ उन्हे कृषि संबन्धित वर्तमान में आधुनिक तकनीकी ज्ञान से परिचित करवाना है।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रथम वक्ता प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना ने कहा ।

इस एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुवात प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन, कोलकाता के द्वारा की गयी। इन्होने अपने उदघाटन उद्बोधन के दौरान बताया कि ‘इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशालाएं विधार्थियों के लिए उपयोगी हैं, जो न केवल उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता करती हैं, अपितु देश के जाने-माने वैज्ञानिक व् विशेषज्ञों से रूबरू होकर अपनी शंकाओं का निवारण भी करने का मौका मिलता है। प्रोफेसर सक्सेना ने बताया कि माटी संगठन इस प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन लगातार करवाता रहा है, जो कि एक सराहनीय कदम है। 

One-day-tranning

प्रशिक्षण के द्वितीय वक्ता प्रोफेसर वी० एल० सक्सेना ने कहा ।

इस प्रशिक्षण के दूसरे वक्ता श्री० एस० के० चौहान (डायरेक्टर ऑफ़ अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूट) ने कहा की परम्परागत रूप से हम आलू की खेती करते है, लेकिन हमें अच्छे उन्नति के लिए वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की आवश्यकता है। 

प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन प्रोफेसर ध्यानेंद्र कुमार ने कहा ।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजक, प्रोफेसर ध्यानेंद्र कुमार, अध्यक्ष माटी ने बताया कि इस वैश्विक संकट काल कोविड-19 के इस कठिन समय में आलू की खेती आजीविका का बेहतर अवसर कैसे हो सकती है। उन्होंने बताया कि अगर हम अपनी पारम्परिक फसल जैसे आलू को भी उचित वैज्ञानिक तकनीकों के द्वारा उगाएं तो उसकी गुणवत्ता और मूल्य में सुधार कर अपनी आय को बढ़ा सकतें हैं। 

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प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन ने कहा ।

इस एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन जी (पूर्व निदेशक व् कृषि वैज्ञानिक, नेशनल रिसर्च सेण्टर फॉर मखाना, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्) ने आलू की वैज्ञानिक खेती पर एक बहुत ही विस्तृत और प्रासंगिक जानकारियों से अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि आलू दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है,जिसका उपयोग विश्व में खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है और उन्होंने यह भी बताया की आलू कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च और विटामिन का बहुत बड़ा स्रोत है, यह एक किफायती व् उच्च उत्पादक क्षमता वाली फसल है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में, चिप्स बनाने के लिए किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आलू की खेती शुरुआती बसंत में और गर्म सर्दियों में लगाया जाता है, और सबसे ठंडे महीनों में भी इसकी पैदावार होती है। उन्होंने आलू की खेती के विभिन्न चरणों जैसे आलू का उत्पादन, कीटों और बीमारियों, मिट्टी और भूमि की तैयारी के बारे में भी विस्तृत विवरण दिया। आलू की फसल आमतौर पर बीज से नहीं बल्कि "आलू के छोटे कंद" से उगाई जाती है। कंद के टुकड़ों को 5 से 10 सेमी की गहराई तक बोया जाता है। अच्छे फसल के लिए स्वस्थ बीज कंदों तथा अच्छे किस्म (कुफरी लालिमा ,कुफरी चंद्रमुखी इत्यादि) की आवश्यकता होती है अथवा बीज का किस्म बुआई की जाने वाली क्षेत्र पर निर्भर करता है और कंद बीज रोग रहित तथा अच्छी तरह से अंकुरित होना चाहिए और प्रत्येक बीज कंद का वजन में 30 से 40 ग्राम तक होना चाहिए। डॉ जनार्दन जी ने कहा कि पारंपरिक और वैज्ञानिक ज्ञान के संयोजन से आलू का उत्पादन को बढ़या जा सकता है, जिससे किसानो के लिए आमदनी का एक अच्छा स्त्रोत बन सकता है। 

डॉ. हिमानी बडोनी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया ।

कार्यक्रम अंत में डॉ. हिमानी बडोनी (प्रोजेक्ट साइंटिस्ट) द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। उन्होंने प्रो० ध्यानेंद्र कुमार (अध्यक्ष, माटी), प्रो० विजय लक्ष्मी सक्सेना (अध्यक्ष, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन कोलकाता), मुख्य वक्ता डॉ० जनार्दन जी (कृषि वैज्ञानिक), श्री अनिल सैनी (चेयरमैन अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्रीमती भावना सैनी (मैनेजिंग डायरेक्टर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्री एस के चौहान (डायरेक्टर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट), श्री उत्तम कुमार सिंह (अकादमिक कोऑर्डिनेटर अल्पाइन ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट) को इस एक दिवसीय प्रशिक्षण वेबिनार में भाग लेने और इसे सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञपित किया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में माटी टीम ने सक्रिय भूमिका निभाई ।

इस एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम को जोखन शर्मा व ओंद्रिला सान्याल के द्वारा समन्वित किया गया और डॉ० हिमानी बडोनी ने मंच का संचालन किया। कार्यक्रम समन्वयक ओंद्रिला सान्याल ने बताया की इस एक दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान देश भर से कुल 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमे से अधिकांश कॉलेज, विश्वविद्यालयों के छात्र - छात्राओं, ग्रामीण युवा किसान मुख्य रूप से शामिल रहे। साथ ही कार्यक्रम के दौरान माटी टीम के सभी सदस्य प्रतिक्षा, अनुप्रिया, शेफाली, मृत्युंजय, विशाल, रश्मि, शालिनी, दिशांषी भी उपस्थित रहे ।

Web-news


मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

World Wetland Day : माटी संस्था व भारतीय प्राणी सर्वेक्षण देहारादून ने “पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम का आयोजन किया ।। web news ।।


विश्व वेटलैंड दिवस के अवसर पर माटी संस्था व भारतीय प्राणी सर्वेक्षण देहारादून के संयुक्त प्रयास से “पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम का आयोजन ।

2 फरवरी को “विश्व आर्द्रभूमि दिवस” (World Wetland Day) मनाया जाता है । इस वर्ष “विश्व आर्द्रभूमि दिवस” की थीम “आर्द्रभूमि (वेटलेंड) और जीवन” निर्धारित की गयी है। यह दिन वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करने, उसे बढ़ावा देने तथा सम्पूर्ण मानव जाति के लिये आर्द्रभूमि (वेटलैंड) की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताने के लिए आयोजित किया जाता है। वेटलैंड का मतलब होता है नमी या दलदली क्षेत्र अथवा पानी से संतृप्त भूभाग से है। आर्द्रभूमि वह क्षेत्र है जो सालभर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है। भारत में वेटलैंड ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है। वेटलैंड के बहुत से लाभ है। जैविक रूप से विविध पारिस्थितिक तंत्र जो कई प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करना, तूफान और बाढ़ के खिलाफ तट पर बफ़र्स के रूप में सेवा करना, पानी की गुणवत्ता में सुधार करने, बाढ़ के पानी को स्टोर करने और हानिकारक प्रदूषकों को बदलकर स्वाभाविक रूप से पानी को फ़िल्टर अर्थात जल को प्रदुषण से मुक्त करना है। वेटलैंड्स जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहां उपयोगी वनस्पतियां एवं औषधीय पौधे भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। ये उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विश्व वेटलैंड दिवस पर बर्ड वाचिंग कार्यक्रम का आयोजन

माटी संस्था, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण और अल्पाइन ग्रुप ऑफ कॉलेज द्वारा संयुक्त रूप से “विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) के अवसर पर आसन कंज़र्वेशन रिज़र्व, देहारादून के आर्द्रभूमि (वेटलैंड) क्षेत्र में “बर्ड वाचिंग कार्यक्रम” का आयोजन किया। आसन आर्द्रभूमि  क्षेत्र उत्तराखंड का पहला वेटलैंड है जिसको रामसर साइट घोषित किया गया है। आसन बैराज, आसन और यमुना नदी के किनारे फैला लगभग 4.5 किमी का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में सितम्बर -अक्टूबर से ही विदेशी मेहमानो अर्थात प्रवासी पक्षियों का आना आरम्भ हो जाता है। एक दिवसीय “बर्ड वाचिंग” कार्यक्रम की शुरूवात भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, देहारादून के वैज्ञानिक डॉ० गौरव शर्मा द्वारा की गयी। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए वेटलैंड व प्रवासी पक्षियों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए भारतीय प्राणी सर्वेक्षण संस्थान के द्वारा पक्षी व जंतुओं पर पूर्व व वर्तमान किए जा रहे शोधों से अवगत कराया। साथ ही उन्होने अपने संस्थान की तरफ से प्राणीयों पीआर शोध कर रहे विद्यार्थियों व शोधार्थियों को हर संभव मदद करेंगे का असवासन दिया। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ० वेद प्रकाश तिवारी, संस्थापक और वैज्ञानिक, माटी संस्थान ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए वेलैंड डे को मानाने के उद्देश्य, वेटलैंड के हमारे जीवन में महत्त्व से लेकर इनके संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों के विषय में रोचक जानकारी दी। उन्होंने प्रवासी पक्षियों के बारे में भी चर्चा की और बताया कि कैसे बर्डवॉचिंग एक मनोरंजन के साथ - साथ हमें इन नन्हे जीवों के जीवन की विभिन्न क्रियाओं व् पहलुओं से भी रूबरू करवाता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि हर किसी को स्थानीय स्तर पर और विश्व स्तर पर इस तरह के जैव विविधता दस्तावेज में संलग्न होना चाहिए ताकि यह हमारे वन्यजीवों और उनके आवासों को बचाने के लिए एकजुट होकर कार्य कर सके। इस दौरान भारतीय प्राणी सर्वेक्षण से डा० अनिल कुमार, पक्षी विशेषज्ञ ने भी इन पक्षियों के विषय में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । इसके बाद माटी की एक रिसर्च स्कॉलर ओएँड्रिल्ला सान्याल ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सभी प्रतिभागियों को चार - चार समूहों में विभाजित किया व बर्डवाचिंग के नियमो के विषय में सभी को बताया। छात्रों ने पक्षियों के संबंध में सभी जानकारी एकत्र की और उनके व्यवहार और आवास को बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया। सभी ग्रुप्स के फील्ड नोट्स और ड्राइंग का आकलन करने के पश्चात् वहां उपस्थित सभी संस्थानों के वैज्ञानिको द्वारा कार्यक्रम के अंत में बेस्ट-बर्ड वॉचर से एक समूह को सम्मानित किया गया ताकि वे भविष्य में भारत की जैव विविधता को बचाने के लिए आगे आएं। कार्यक्रम का संचालन डॉ ० हिमानी बडोनी, प्रोजेक्ट साइंटिस्ट, माटी संस्था ने किया। उन्होने बताया की इस बर्ड वाचिंग कार्यक्रम के दौरान इस क्षेत्र में पाए जाने वाले पक्षियों की विभिन्न क्रियाओं से सम्बंधित फोटोग्राफ व विडियो भी संलेखित किया गया, साथ ही पक्षियों को प्रलेखित किया गया, जिनमे हैरूडी शेल्डक, टफ्टेड डक, रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड, नार्दर्न पिंटेल, पेंटेड स्टॉर्क, ग्रे हेडेड स्वेफेन कॉमन कोट, कॉमन मूरेन, इंडियन स्पॉट-बिल्ड डक, ग्रे हेरॉन, रिवर लैपविंग, ग्रीन सैंडपाइपर आदि प्रमुख है। अंत में प्रतीक्षा, सीनियर रिसर्च फेलो, माटी ने उपस्थित सभी प्रतिभागियों, मेहमानों, वैज्ञानिको आदि का धन्यवाद व्यक्त करते हुए माटी और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण द्वारा आयोजित ऑनलाइन फोटोग्राफी प्रतियोगीयता के बारें में जानकारी प्रदान किया। 

“पक्षी विहार दर्शन” कार्यक्रम में उपस्थित रहे ।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) के अवसर पर अल्पाइन इंस्टिट्यूट के विधार्थियों के साथ - साथ पर्यावरण डिपार्टमेंट के अध्यक्ष एम० डी० कौसर ने भी भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान कुल सत्तर से ज्यादा प्रतिभागियों में भाग लिया। इस कार्यक्रम को सफल बनाए में माटी संस्था टीम के सभी सदस्य जिसमें की अनुप्रिया, शेफाली, मृतुन्जय, रश्मि , शालिनी, विशाल, देशांशी आदि ने योगदान किया।

रविवार, 1 नवंबर 2020

Positive Action : “महिला अधिकार एवं सुरक्षा” विषय पर सामाजिक संगठनों का राष्ट्रीय वेबिनार , पढे पूरी खबर ।।web news।।


माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में महिला अधिकार एवं सुरक्षा विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया 

माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में
जागरूकता के लिए महिला अधिकार एवं सुरक्षा विषय पर राष्ट्रीय बेविनार का आयोजन किया गया गया । संगोष्ठी का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों खासकर महिलाओं को महिला अपराध, सुरक्षा तथा संवैधानिक व कानूनी अधिकारो के प्रति जागरूक करना है। बेविनार के मुख्य वक्ताओ मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड),डॉ० सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड),श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड) ,धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता) ने महिला सुरक्षा , महिला अपराध के सामाजिक व सांस्कृतिक पक्ष,महिला के साथ ही रहे अपराधों का मनोवैज्ञानिक पक्ष, महिलाओं के कानूनी अधिकार , पुलिस प्रशासन द्वारा किये जा रहे कार्य आदि बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी, इस राष्ट्रीय बेविनार में देश के 23 राज्यों से कुल 150 से ज्यादा प्रतिभागियों ने भाग लिया।


संगोष्ठी के मुख्य वक्ताओं ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए।

राष्ट्रीय बेविनार संगोष्ठी का शुभारम्भ माटी संस्था, देहारादून के निदेशक प्रोफेसर ध्यानेंद्र कुमार ने किया
उन्होंने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार व आत्म सम्मान के लिए खुद आगे आने की जरूरत है। महिलाओं के अंदर वह शक्ति है जिससे समाज में हो रहे उनके प्रति अत्याचार को रोका जा सकता है इसके लिए जरूरी है कि शिक्षाविदों व बौद्धिक लोगों के द्वारा ऐसे संगोष्ठियों के माध्यम से नयी व पुरानी पीढ़ी के महिलाओं को उनके प्रति होने वाले अपराधों के प्रति जागरूक किया जाए। 
◆तत्यपश्चयात राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी की संचालिका डॉ० साधना अवस्थी ने माटी संस्था के विभिन्न वैज्ञानिक व सामाजिक कार्यो तथा संस्था के मूल उद्देश्यों से संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथिगणों व प्रतिभागियों को करवाया।
◆ तत्यपश्चयत अरमान फाउंडेशन के निदेशक श्री रोहित श्रीवास्तव ने भी अपने संस्था के द्वारा किए जा रहे कार्यों से संगोष्ठी को अवगत कराया। 
◆इस संगोष्ठी में प्रथम अतिथि वक्ता मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड) ने महिला अपराध के सामाजिक व सांस्कृतिक पक्ष को संगोष्ठी के समक्ष रखा। अपने इस प्रश्न के जबाब में उन्होने कहा कि महिला अपराध के पीछे पुरुष सत्तात्मक परिवेश व संस्कृति, महिलाओं को गैर – बराबरी का बोध करवाना तथा इन्हे उपभोग की वस्तु समझने जैसी मानसिकता जिम्मेदार है। ऐसी मानसिकता के कारण पुरुषों में अपनी पुरुष शक्ति के माध्यम से महिला को नियंत्रण करने कि सोच सदेव विकसित होती रहती है जिसे कही न कही सामाजिक स्वीकृति भी मिली होती है। 
◆ तत्पश्चात दूसरे अतिथि वक्ता डॉ० सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड) ने महिला के प्रति हो रहे अपराधों के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर अपने विचार प्रकट किए। 



◆तीसरे अतिथि वक्ता के रूप में श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड) ने अपने वीडियो संदेश के माध्यम से संगोष्ठी में अपने विचार रखे साथ ही महिला अपराध से संबन्धित राज्य की पुलिसप्रशासन के द्वारा किए जा रहे कार्यो से अवगत कराया। 
◆ संगोष्ठी के अंतिम वक्ता के रूप में धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता) ने आईपीसी, सीपीसी व अन्य विभिन्न धाराओं के तहत महिलाओं को मिले कानूनी अधिकारों को विस्तृत रूप सेजानकारी प्रदान किया। 
◆ संगोष्ठी के अंतिम सत्र में महिला अधिकार एवं सुरक्षा से संबंधित परिचर्चा की गयी जिसमे इस संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के प्रश्नों के रूप में उनकी जिज्ञासाओं का निवारण व्यक्ताओ ने अपने उत्तर के मध्याम से किया।
◆संगोष्ठी के अंत माटी संस्था के संस्थापक व वैज्ञानिक वेद प्रकाश ने सभी सम्मानित अतिथि गणों श्रोता गणों व प्रतिभागियों को इस सेमिनार में सम्मिलित होने के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया। 

राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी की तकनीकी व संयोजन टीम इस प्रकार है ।

राष्ट्रीय वेबिनार संगोष्ठी के सफल आयोजन में माटी संस्था के अंकिता राजपूत , समन्वयक जोखन शर्मा, तकनीकी सहायक के रूप में प्रतीक्षा महर ने प्रमुख योगदान किया साथ ही माटी संस्था व अरमान फाउंडेशन के सदस्यों एंव पदाधिकारियों का सहयोग रहा।

राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग किया ।

माटी संस्था, देहारादून के निदेशक प्रोफेसर ध्यानेन्द्र कुमार, वेद प्रकाश (संस्थापक व वैज्ञानिक, माटी संस्था), अंकिता राजपूत (सह-संस्थापक व वैज्ञानिक, माटी संस्था) व रोहित श्रीवास्तव (निदेशक, अरमान फाउंडेशन) श्वेता चौबे (पुलिस अधीक्षक, सिटी देहारादून, उत्तराखण्ड), मीनाक्षी शर्मा (सहयाक निदेशक व कार्यालय प्रमुख, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, क्षेत्रीय कार्यालय राँची, झारखण्ड), धीरेन्द्र मुद्दगल (अधिवक्ता, ईलाहाबाद हाई कोर्ट, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) एवं डॉ0 सादिक़ रज़्ज़ाक़ (अध्यक्ष, स्नाकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखण्ड




गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

माटी संस्था का देहरादून में कोविड-19 और स्वच्छता जागरूकता अभियान - Web News

गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2020 से चल रहे “स्वच्छता पखवाड़ा” के अंतिम दिन आज माटी, जैव विविधता संरक्षण और सामाजिक अनुसंधान संगठन, देहरादून ने जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, उत्तर क्षेत्रीय केंद्र, देहरादून और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, उत्तर क्षेत्रीय केंद्र, देहरादून के सहयोग से देहरादून (उत्तराखंड) में गांधी पार्क, राजपुर रोड व आसपास के क्षेत्रों में “कोविड-19 और स्वच्छता जागरूकता अभियान” चलाया गया। इस अभियान का मकसद स्थानीय लोगों के बीच कोविड-19 के दौरान स्वच्छता के महत्व एवं कोरोना महामारी कोविड-19 से संबन्धित भारत सरकार द्वारा दी गई निर्देशों और दिशानिर्देशों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना था। 

इस जन जागरूकता अभियान के तहत माटी संस्था, देहारादून की सह-संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपूत ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए अभियान के मकसद के बारे में बताया व जागरूक किया। अपने सम्बोधन में डॉ० अंकिता नें कहा कि, देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते प्रत्येक का कर्तव्य है कि वह व्यक्तिगत स्वच्छता और शहर की स्वच्छता को बनाए रखने पर ध्यान दे। स्वच्छता हमें स्वस्थ रखने में बहुत सहायक है और कोविद -19 के इस संकटकाल में जीवन रक्षक साबित हो सकती है। उन्होंने कहा की लोगों को स्वस्थ स्वच्छता, आवासीय स्वच्छता, कचरे के पुनर्चक्रण और प्लास्टिक के कम से कम उपयोग आदि जैसे आदतों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करनी चाहिए। अगर हम इन तमाम आदतों को अपने जीवन में शामिल नही करते है तों हम अपने पर्यावरण और समाज के लिए समस्याएं पैदा करते रहेंगे।

इस संगठन के संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० वेद प्रकाश ने भी लोगो से बातचीत करते हुए उन्हें मास्क पहनने, हाथ धोने / हाथ धोने और मास्क पहनने के महत्व के बारे में बताया है। उन्होंने उन पुलिसकर्मियों के साथ भी बातचीत की व कोरोना संकट के दौरान उनके कार्य की सराहना की। पुलिस के जवानों ने बताया की लोग कोरोना के प्रति लापरवाही बरत रहे है सहयोग नहीं कर रहे हैं जिससे की यह बीमारी और भी संकट पैदा कर सकती है। अंत में उन्होंने कहा कि "महात्मा गांधी ने एक स्वच्छ और स्वच्छ देश का सपना देखा था, इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके शब्दों पर ध्यान दें और उनके दिखाए मार्ग पर चलें। "

इस जागरूकता अभियान के तहत डॉ० गौरव शर्मा, कार्यालय प्रभारी, वैज्ञानिक 'ई', जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एन०आर०सी०, देहरादून ने आसपास के लोगों के साथ बातचीत की और स्वच्छता और स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया, उन्होंने बताया कि स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता बहुत आवश्यक है, न केवल व्यक्तिगत स्वच्छता बल्कि स्वच्छ वातावरण और स्वच्छ शहर भी हमारे मन और मस्तिष्क को पोषण देते हैं।
डॉ० एस० के० सिंह, कार्यालय प्रभारी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, वनस्पति सर्वेक्षण भारत, एनआरसी, देहरादून ने भी लोगों से कहा कि वे एकजुट हों और अपने पर्यावरण को साफ करने में मदद करें, क्योंकि हम सभी एक राष्ट्र के हैं और हमारी प्रगति तभी संभव है तभी हमारा राष्ट्र प्रगति करेगा।

इस जागरूकता अभियान के अवसर पर माटी संस्था के सभी वैज्ञानिक व कर्मचारीगणों ने उपस्थित लोगों से स्वच्छता संबन्धित सभी मुद्दों और उनके समाधानों के बारे में भी चर्चा की। साथ ही स्थानीय लोगों के बीच COVID-19 महामारी के बारे में और अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए शहर के प्रमुख स्थलों पर स्वच्छता संबन्धित संदेश व पोस्टर चिपकाकर जागरूकता पैदा करने के कार्य में योगदान किया। 
इस जन जागरूकता अभियान के तहत माटी संस्था के डॉ० साधना अवस्थी, डॉ० हिमानी बडोनी, श्री जोखन शर्मा, सुश्री मेघा बिष्ट, सुश्री प्रतीक, सुश्री अनुप्रिया, सुश्री शेफाली, सुश्री श्वेता, सुश्री उर्वशी और श्री गौरव सहित माटी संस्था की सभी वैज्ञानिक व कर्मचारीगण उपस्थित रहे। साथ ही जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एन०आर०सी० तथा वनस्पति सर्वेक्षण भारत, एन०आर०सी०, देहरादून के वैज्ञानिक, आधिकारी व कर्मचारीगण भी मौजूद रहे

शनिवार, 26 सितंबर 2020

किसानों को आत्मनिर्भर बना रही है माटी संस्था की “उर्वरा योजना” , ।।web news।।


माटी संस्था किसानो को उर्वरा योजना के तहत बना रही हैआत्मनिर्भर।

देश में किसानों की एक अलग ही भूमिका वर्षों से रही है। हमारे किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जब कोरोना संकट काल में देश की आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से थम सी गयी थी, उस समय केवल हमारे किसान ही थे जिन्होने देश की अर्थव्यवस्था को संभाला। इस विकट स्थिति में भी अगर देश के लोगों तक खाद्य-सामग्री व अनाजों सुचारु रूप से पहुँच रही थी तो उसके पीछे हमारे किसानो के अपने कृषि के प्रति कठिन मेहनत व लगन थी। कोरोना संकट में यह देश को दिखा दिया कि दुनिया के इस संघर्षमय समय में आज कृषि आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन बन कर उभरा है। कृषि क्षेत्र की इसी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री ने कोरोनाकाल के मध्य में अर्थव्यवस्था को पुनः खड़ा करने के लिए देश को आत्मनिर्भर बनने का एक नई राह का संदेश दिया। देश में कृषि की अहम भूमिका व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से प्रेरणा लेते हुए माटी संस्था, देहारादून की ओर से पिछले कुछ माह पूर्व एक योजना “उर्वरा” की शुरुवात की गयी थी। इस योजना के अंतर्गत संस्था के वैज्ञानिको व् संस्था से जुड़े विशेषज्ञों के द्वारा किसानो को आधुनिक, पारंपरिक एवं जैविक खेती के लिए तकनीकी प्रशिक्षण व सहायता प्रदान किया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य देश के किसानों को जैविक कृषि के प्रति प्रोत्साहित करना जिससे वे इसे स्वरोज़गार के रूप में अपना कर आत्मनिर्भर बन सके। साथ ही किसानो को कृषि संबन्धित प्रबंधन, भंडारण व बाजार जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाना भी इस योजना का एक उद्देश्य है।

माटी संस्था अपने उर्वरा योजना के तहत उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिला के किसानों को केसर जैसे गैर-पारंपरिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था। केसर (saffron) एक सुगंध देने वाला व विश्व का सबसे कीमती पौधा है। इसके पुष्प की वर्तिकाग्र (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। केसर न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद होता है बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी गुणकारी होता है।

किसानों के द्वारा उगाए केसर को बेचने के लिए वे व्यापारियों से संपर्क कर रहे हैं। साथ उन्होंने बताया की केसर की यह खेती मात्र जैविक खेती व परंपरागत खेती मात्र नहीं है, बल्कि यह स्मार्ट परंपारगत खेती भी है जिसके माध्यम से गुणवत्ता और उत्पादन मात्रा दोनों बनाए रखा जा सकता है। माटी संस्था की यह "उर्वरा कृषि योजना" उत्तराखंड व उत्तरप्रदेश के साथ अन्य राज्यों के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु समय-समय पर अन्य फसलों के साथ भी प्रयोग करने की है जिससे किसान आत्मनिर्भर बन कर व देश की उन्नति में सहयोग दे सकते हैं- डॉ० वेद प्रकाश ,माटी संस्था के संस्थापक व वैज्ञानिक
माटी संस्था के विशेषज्ञों के द्वारा सेहत के लिए गुणकारी एवं किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होने वाली केसर की खेती करने के लिए एक प्रयोग किया। इसके लिए संस्था के द्वारा पूर्व कुछ माह से लगातार किसानो को केसर के खेती हेतु आवश्यक आर्थिक व तकनीकी सहायता प्रदान किया जा रहा था साथ ही किसानो को केसर की खेती हेतु समय - समय प्रशिक्षण मुहैया कारवाई गई। संस्था के इस मार्गदर्शन व सहयोग से बिजनौर के किसान श्री धरम पाल सिंह जी ने बेशकीमती फसल केसर की खेती सफलतापूर्वक कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। केसर उत्पादन करने वाले श्री धरम पाल सिंह ने बताया की इस वर्ष उन्होंने केसर की खेती छोटे स्तर पर प्रयोग हेतु किया जिसके अंतर्गत लगभग 5 किलो केसर उत्पादित किया। उन्होने बताया कि मेरी इस सफलता को देख कर गाँव व क्षेत्र के अन्य किसान भी इस दिशा में आगे आ रहे हैं। उन्होने कहा कि इस प्रयास व सफलता के पीछे माटी संस्था देहारादून के संस्थाप व वैज्ञानिक डॉ॰ वेद प्रकाश तथा सह-संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपूत के सयुंक्त प्रयास व मेहनत रहा है।

किसानो के केसर गैर-पारंपरिक खेती के सफल उत्पादन पर माटी संस्था के सह-संस्थापक व वैज्ञानिक डॉ० अंकिता राजपूत ने बताया कि केसर की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके बीज, केसर तो महंगे बिकते ही हैं, साथ में फसल के अवशेष भी हवन सामग्री में इस्तेमाल किए जाते हैं। डॉ० अंकिता ने बताया की संस्था के द्वारा तैयार केसर की गुणवता की जाँच प्रतिष्ठित लैबों मेँ करवाया गया, जिसमें इसकी गुणवता उच्च कोटी पाई गयी। उन्होने बताया की बाजार में केसर का थोक रेट फिलहाल साठ हजार से डेढ़ लाख प्रति किलोग्राम बताया जा रहा है।