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शनिवार, 5 जून 2021

World Environment Day : यूसर्क ने उत्तराखंड में जल सुरक्षा एवं जलसंरक्षण पर केंद्रित पर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया ।।web news।।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यूसर्क नेपर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन

आज विश्व पर्यावरण दिवस 2021 के अवसर पर उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क), देहरादून द्वारा ऑनलाइन माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस वर्ष निर्धारित की गई थीम "ईकोलॉजिकल रेस्टोरेशन" के अंतर्गत "उत्तराखंड में जल सुरक्षा एवं जलसंरक्षण पर केंद्रित पर्यावरणीय समाधान' विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशेषज्ञों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का संचालन करने हुये यूसर्क के वैज्ञानिक डा० ओम प्रकाश नौटियाल ने किया।


कार्यक्रम में यूसर्क की निदेशक प्रो० (डा०) अनीता रावत ने कहा कि पांचों तत्वों के शुद्धिकरण एवं पुनर्जीवन पर केंद्रित एप्रोच के माध्यमों से एक जल तत्व को केंद्रित करते हुए आज का कार्यक्रम "एनवायर्नमेंटल सोलूशन्स फोकसिंग ऑन वाटर प्रोटेक्शन एंड कंजर्वेशन इन उत्तराखंड" विषय पर आयोजित किया गया । 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विख्यात पर्यावरणविद एवं पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता सचिदानंद भारती द्वारा मुख्य व्याख्यान दिया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान में उत्तराखण्ड की जल समस्याओं के समाधान हेतु पाणी राखो आन्दोलन पर विस्तार से बताते हुये तथा पहाड़ी चाल, खाल के महत्व एवं उनकी आवश्यकता पर बताया। 
कार्यक्रम में "क्लीनिंग ऑफ रिवर्स एण्ड रिजुविनेशन आफ स्माल ट्रिब्यूटरीज इन उत्तराखण्ड" विषय पर पैनल डिस्कसन भी किया गया, जिसमें बोलते हुये हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय बादशाही थाल परिसर के जल विशेषज्ञ एवं प्रोफेसर एन० के० अग्रवाल ने कहा कि पहाड़ के छोटे-छोटे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करके नदियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस दिशा में सामूहिक जन सहभागिता आवश्यक है। पैनल डिस्कसन में कोसी नदी पुनर्जीवन के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर शिवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि जलागम प्रबन्धन करके, सघन पौधारोपण एवं जन सहभागिता से कोसी, कुंजगढ़, सरोटागाड, गगास, रामगंगा नदियों जल स्रोतों का पुनर्जीवित किया जा रहा है। हैस्को के भूवैज्ञानिक विनोद खाती ने चाल, खाल, नौले धारे के पुनर्जीवन हेतु जन सहभागिता के साथ भू वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी स्थान पर वर्षाजल संचयन विधियां अपनाने को कहा तथा पहाड़ में पुनर्जीवित किये गये जलस्रोतों के अनुभव बताये ।

यूसर्क द्वारा आयोजित की गयी जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता एवं जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान हेतु नवाचार समाधान विषयक लेखन प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों का परिणाम यूसक की वैज्ञानिक डा० मन्जू सुन्दरियाल एवं डा० राजेन्द्र सिंह राणा द्वारा घोषित किया गया। 

प्रतियोगिता परिणाम सीनियर वर्ग

◆जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता के सीनियर वर्ग अपराजिता (हरिद्वार) ने प्रथम स्थान,अशंमान सुजलबेरीने (पिथौरागढ़)द्वितीय व उदय सती (रानीख़ेत)तृतीय स्थान प्राप्त किया
◆जल केंद्रित पर्यावरणीय समाधान विषय पर मॉडल निर्माण प्रतियोगिता के सीनियर वर्ग में उत्कर्ष धपोला (बागेश्वर) ने प्रथमक० नीहारिका शर्मा (देहरादून) ने द्वितीय व कृष्णा पाण्डे (नैनीताल) ने तृतीय स्थान प्राप्त किया ।

देखे वीडियो, पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का जीवन परिचय


कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन यूसर्क के वैज्ञानिक डॉ. भवतोष शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों शिक्षकों सहित कुल 90 लोगों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम के आयोजन में यूसर्क की आई०सी०टी० टीम के ओम जोशी, उमेश जोशी, राजदीप जंग, शिवानी पोखरियाल द्वारा सकिय प्रतिभाग किया गया। माटी संस्था, हिमालयन ग्राम विकास समिति गंगोलीहाट, डी०एन०ए० लैब, किशन असवाल, पवन शर्मा, डा० शम्मू प्रसाद नौटियाल, विनीत, एल०डी० भट्ट, प्रो० के० डी० पुरोहित, पर्यावरणविद प्रताप पोखरियाल उत्तरकाशी, दीप जोशी बागेश्वर, सुनील नाथन बिष्ट चमोली द्वारा चर्चा में प्रतिभाग कर अनुभव बताये गये।

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शुक्रवार, 5 जून 2020

Environment Day :पहाड़ का बदलता पर्यावरण और हाशिये पर पहाड़ी - सुमित बहुगुणा ।। Web news Uttrakahnd ।।



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पर्यावरण दिवस विशेष इस लेख में पहाड़ों में हो रहे बदलावों को पहाडी की नजरों से देखते है ।

उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों से हो रहे नुकसान का असर देखा जा सकता है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून व अन्य मैदानी शहर वायु प्रदूषण के घेरे में तो पहले ही आ चुके हैं । किंतु आज चिंता यह है कि पहाड़ों में विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यो व पहाड़ी प्राकृतिक सम्पदाओं के निरंतर दोहन से ,वायु प्रदूषण जैसी गंभीर  समस्या ने पहाड़ों में भी जन्म ले लिया है । पहाड़ों में आज विभिन्न बांध परियोजनाओं के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है । 2013 की केदारनाथ आपदा से तबाह संपूर्ण केदार घाटी में पुनर्निर्माण के कार्य जिस तेजी से गति पकड़ रहे हैं वह मनुष्यों का केदार घाटी पहुंचना सुगम कर देंगे परन्तु तेजी से हो रहा पर्यावरणीय नुकसान किसी आपदा से कम नहीं । विकास कार्यो को हमे SDG यानी सतत विकास के लक्ष्यों के आधार पर ही करना चाहिए ।

अंग्रेजों ने अपने समय में मसूरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी कस्बे स्वच्छ पर्यावरण को देख कर बसाए ,साथ ही देहरादून शहर में शिवालिक और मध्य हिमालय से घिरी घाटी के स्वच्छ पर्यावरण को देखते हुए ही स्वप्निल बसेरे बनाए गए थे। इन जगहों को आज अलग अलग किस्म के प्रदूषणों की शिकार होते हुए देखा जा सकता है , सुहाने मौसम के लिए विख्यात दून अब धूल, धुएं और शोर की घाटी है। स्मार्ट सिटी के लिए नामित होने के साथ अब यहां विकास कार्यों ने जो गति पकड़ी है उससे प्रदूषण के स्तर का भी गति पकड़ना स्वाभाविक है। पहाड़ों से देहरादून पलायन कर घर बसाने की वजह से भी पिछले कुछ दशकों में यहां जनसंख्या में तेजी आई है साथ ही पड़ोसी राज्यों के लोगों द्वारा देहरादून की सरकारी जमीनों पर झुग्गी बस्तियां बसाने से भी जनसंख्या का बोझ राजधानी देहरादून पर पड़ा है।

ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिंताएं जताई जा रही हैं , विद्वानों और विशेषज्ञों में इस बारे में बहुत मतभेद भी हैं। कुछ कहते हैं ग्लेशियरों का पिघलना असाधारण बात नहीं है सैकड़ों हजारों साल के बाद ग्लेशियरों का बनना बिगड़ना स्वाभाविक व प्राकृतिक घटनाएं है लेकिन कुछ पर्यावरणविद और वैज्ञानिक पुरजोर तौर पर मानते है कि ग्लेशियरों का पिघलना एक सामान्य घटना नहीं है और ये जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े सूचकों में से एक है। इन बहसों से दूर भी रहा जाए लेकिन एक सच्चाई तो यही है  कि पहाड़ों के मौसम अब पहले जैसे तो नहीं रहे,आजकल होने वाली बेमौसमी बारिश हम देख ही रहे हैं।

फसल की पैदावार का पैटर्न भी दिनप्रति दिन बदला है।
फसलों में गुणात्मक और मात्रात्मक गिरावट दोनों देखी जा सकती है । पलायन के चलते बड़े पैमाने पर पहाड़ी जमीन बंजर हो रही है । मानव शून्यता के समय में भी नया माफिया पनप गया है जो भविष्य के लिए निर्माण से लेकर पलायन तक एक बहुत ही संगठित लेकिन अदृश्य शक्ति के रूप में सक्रिय है , यह स्तिथि भी पहाड़ और पहाडी के लिए चिन्तादायक हो सकती है

पहाड़ के पर्यावरण के परिपेक्ष में इन घटनाओं को पहाड के लिए अच्छा नही माना जा सकता, कोविड 19 कोरोना वाइरस के चलते लॉक डाउन की स्थिति से पर्यावणीय सुधारों को सतत नही माना जा सकता न ही यह सत्य है । हरिद्वार में स्वछ गंगाजल और सहारनपुर से दिखायी देने वाली पहाडी आनंदित तो करती है लेकिन कितने समय यह स्थिति बनी रहेगी इसका आकलन करना भी कठिन है । पहाड़ियों की पहाड वापसी को रिवर्स पलायन से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन पलायन की स्थिति पहले आयी ही क्यों और अगर आज समय पहाड़ियों के पहाड़ वापसी का आया है तो सिस्टम उनके लिए पहाड़ फ्रेन्डली कौन सी योजनाएं बना रहा है इन बातों की चिंता हमे प्रर्यावरण दिवस पर आवश्य करनी चाहिए ।

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लेखक- सुमित बहुगुणा "पहाड़ी"

परिचय- अध्यक्ष ( IT प्रकोष्ठ ), पहाड़ी पार्टी - PP , पर्यावरण कॉलमिस्ट, युवा राष्ट्रवादी लेखक, पहाड़वाद सोच की अवधारणा रखने वाले पहाड़ हितैषी, चम्बा-उत्तराखण्ड पेज के एडमिन, ऑनर एन्ड फाउंडर - The Retreat Restorent Harawala , Dehradun

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