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गणेश चतुर्थी विशेष : स्वाधीनता संग्राम में गणपति की रही विशेष कृपा ।।web news uttarakhand।।

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ब्रिटिश समयकाल में लोग किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे । इसीलिए, लोग घरों में पूजा अर्चना करते थे। स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूतों में से एक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया जो आगे चलकर एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में गणेशोत्सव ने लोगों को एक जुट करने में अहम भूमिका निभाई । लोकमान्य तिलक ने उस दौरान गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया उससे गणपति "राष्ट्रीय एकता के प्रतीक" बन गए । उन्होंने पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि, गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया भी बनाया एवं उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया । इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।   वीर सावरकर तथा अन्य क्रांतिकारियों ने भी गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किया , महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही

कोरोना काल में घर बैठे ऑनलाइन करे 'सुकन्या समृद्धि' बचत योजना से बेटियों का भविष्य सुरक्षित, पढे पूरी जानकारी ।। web news।।

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जाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी सुकन्या समृद्धि योजना  सुकन्या समृद्धि योजना 22 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ की गई । योजना के अंतर्गत बेटी के माता-पिता द्वारा बेटी के लिए बचत खाता पोस्ट ऑफिस (डाकघर) में या किसी भी राष्ट्रीय बैंक में खोल सकते हैं । 'सुकन्या समृद्धि' बचत योजना में बेटी की उम्र 10 साल होने से पहले न्यूनतम 250 रुपये से 15 साल के लिए खाता खुलवाया जा सकता है। इसकी पॉलिसी 21 साल बाद मैच्योर होती है।  सुकन्या समृद्धि योजना में कैसे करना है निवेश? इसमें 14 साल ही निवेश करना पड़ता है। इस योजना में निवेश का तीन गुना मुनाफा मिलता है। यह खाता देशभर में कहीं भी ट्रांसफर हो सकता है। योजना में अधिकतम डेढ़ लाख रुपये प्रतिवर्ष खाते में जमा कर सकते हैं। बेटी की उम्र 18 से 21 साल होने तक इसे जारी रख सकते हैं। पहले सुकन्या समृद्धि योजना के अंतर्गत 9.1 प्रतिशत की ब्याज दर थी, जो कि अब 7.6 फीसदी की ब्याज दर से ब्याज दिया गया है।  एक उदाहरण से समझते है सुकन्या समृद्धि योजना  मान लीजिए कि अगर आप 14 साल तक 1.5 लाख रुपये (12,500 रुपये महीने) सालाना क

पर्यावरण संरक्षण : हमारी आवश्यता हमारे जंगल,जल, जमीन है - चन्दन सिंह नयाल ।।web news।।

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प्रकृति प्रेमी चन्दन सिंह नयाल की प्रकृति संरक्षण यात्रा ।। शुरुआती दौर में आज से चार पांच साल पूर्व मेरे गांव में सड़क भी नहीं थी लगभग 3 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था तो उस वक्त मैं मेरे परिवार वाले मेरे युवा सहयोगी सड़क से गांव तक पेड़ों को अपने सर में ले जाकर अपने क्षेत्र में पौधारोपण करते थे और कई जगह कई गांव में हमने कंधों पर पौधे ले जाकर पौधारोपण भी किया कई जल स्रोतों पर भी हम लोगों ने चौड़ी पत्ती का पौधा रोपण किया एक जोश जुनून के साथ अभी भी यह कार्य निरंतर प्रगति पर है । पहाड़ की जिंदगी सब समझते हैं पहाड़ के रास्ते पहाड़ के स्कूल, नैनीताल जिले की कई दूरस्थ स्कूलों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देने का कार्य भी निरंतर जारी है जिसमें अभी तक 251 से अधिक विद्यालयों में जाकर बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की जानकारी दी, कई विद्यालयों में कई कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है धूप हो या छांव हो निकल पड़ता था, प्रकृति से अमिट प्रेम ने सब कुछ भुला दिया बस यही समझा दिया की प्रकृति ही जीवन है जिसके लिए निरंतर प्रयास जारी है गांव के लोगों में जागरूकता धीरे-धीरे आने लगी

लोकपर्व हरेला : पर्यावरण संरक्षण का स्वयं सिद्ध पर्व है हरेला - संदीप ढौंडियाल, ।। Web News।।

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हमारे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति दूरदर्शिता दर्शाता है उत्तराखण्डी लोकपर्व हरेला ।। आज पूरा विश्व समुदाय पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतन कर रहा है। साथ ही कई तरह के दिवसों के माध्यम से भी जन - जागरूकता चलाई जा रही है। एक ओर जल संरक्षण से लेकर वायु, मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष भर कई दिवसों के माध्यम से करोड़ों रुपए के कार्यक्रम  आयोजित किए जाते रहे हैं। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय की मांग के हिसाब से एक ओर जरूर प्रकृति संरक्षण पर बल दिए जाने की बात कई फोरम पर उठती हैं। लेकिन प्रकृति संरक्षण को लेकर वास्तव में हमारे पूर्वज कितने सजग थे और उनकी कितनी दूरदर्शी सोच थी। यह हमारे पर्व त्योहारों और संस्कृति में आसानी से समझा जा सकता है। जिसकी एक बानगी झलकती है हमारे उत्तराखंडी पर्व हरेला में। हरेला का सीधा शाब्दिक अर्थ ही हरियाली है। हरियाली यानी प्रकृति का रूप। हरेला पर्व श्रावण माह के पहले दिन मनाया जाता है। जिसमें वृक्षारोपण के साथ ही कुछ पारंपरिक तौर तरीके से प्रकृति की पूजा और अनुष्ठान किया जाता है। अगर गौर किया जाए तो प्राकृतिक रूप से भी  वृक्षारो

Environment Day :पहाड़ का बदलता पर्यावरण और हाशिये पर पहाड़ी - सुमित बहुगुणा ।। Web news Uttrakahnd ।।

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पर्यावरण दिवस विशेष इस लेख में पहाड़ों में हो रहे बदलावों को पहाडी की नजरों से देखते है । उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलावों से हो रहे नुकसान का असर देखा जा सकता है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून व अन्य मैदानी शहर वायु प्रदूषण के घेरे में तो पहले ही आ चुके हैं । किंतु आज चिंता यह है कि पहाड़ों में विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यो व पहाड़ी प्राकृतिक सम्पदाओं के निरंतर दोहन से ,वायु प्रदूषण जैसी गंभीर  समस्या ने पहाड़ों में भी जन्म ले लिया है । पहाड़ों में आज विभिन्न बांध परियोजनाओं के साथ बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है । 2013 की केदारनाथ आपदा से तबाह संपूर्ण केदार घाटी में पुनर्निर्माण के कार्य जिस तेजी से गति पकड़ रहे हैं वह मनुष्यों का केदार घाटी पहुंचना सुगम कर देंगे परन्तु तेजी से हो रहा पर्यावरणीय नुकसान किसी आपदा से कम नहीं । विकास कार्यो को हमे SDG यानी सतत विकास के लक्ष्यों के आधार पर ही करना चाहिए । अंग्रेजों ने अपने समय में मसूरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी कस्बे स्वच्छ पर्यावरण को देख कर बसाए ,साथ ही द

भारत नेपाल के बीच चर्चा में आये काली नदी विवाद को आसान भाषा मे समझा रहे है- भगवान सिंह धामी ।।web news ।।

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क्या है काली नदी विवाद इसे समझते है। सबसे पहले तो इतिहास को देखते हैं जिससे हमें मालूम पड़ता है कि वर्तमान पश्चिमी नेपाल जोकि बाइसी और चौबीसी राज्य क्षेत्र में सम्मिलित है। पूर्व में नेपाल का हिस्सा नहीं था, डोटी और जुमला स्वतन्त्र राज्य थे जैसे उत्तराखण्ड में पँवार और चंद राज्य थे। चौबीसी जो कि 24 ठकुराइयों में बंटा था इसमें ही एक ठकुराई थी कास्की जिसके अधीन गोरखा राज्य था, जो गुरु गोरखनाथ पर गोरखा कहलाया था। पूर्व में गोरखा केवल एक राज्य था वर्तमान में एक जनपद है। सीधे विवाद में आते है इतिहास में ज्यादा न पड़ते हुए। 1815-16 में अंग्रेजों और नेपाल के मध्य सिगौली की संधि हुई जिसमें पारस्परिक सम्प्रभुता के साथ ही काली नदी भारत-नेपाल के मध्य सीमा घोषित की गई। हालांकि गोरखों द्वारा डोटी जीतने से पूर्व तक सुदूर पश्चिमी अंचल कभी भी नेपाल का अंग नहीं था। इस संधि से सुदूर पश्चिमी क्षेत्र नेपाल का अंग बन गया। 1817 में असंतुष्ट नेपाल ने सीमांकन दुबारा करवाया तब दो गाँव #छांगरु और #तिंकर नेपाल को दे दिए गए। (नीचे नजरिया मानचित्र में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं) मानसखण्ड के अनु

जन्मदिवस विशेष: अमर हुतात्मा श्रीदेव सुमन ने टिहरी रियासत को राजशाही के बेड़ियों से मुक्ति दिलायी- विनय तिवारी ।।web news ।।

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टिहरी सियासत के स्वतंत्रता सेनानी अमर हुतात्मा श्री देव सुमन जी को शत शत नमन अपनी जननी-जन्मभूमि को परतंत्रता की बेड़ियों से आजादी दिलाने के संकल्प को मन में लिए जीने और परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर राजशाही से मातृभूमि को आजादी दिलाने के लिए अपना जीवन अर्पण करने वाले तरुण तपस्वी श्रीदेव सुमन जी को उनके जन्मदिवस पर शत्-शत् नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि। श्रीदेव सुमन और टिहरी राज्य का गणराज्य भारत में विलय श्री देव सुमन जी का जन्म जिला टिहरी गढ़वाल के चम्बा ब्लॉक, बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में २५ मई १९१६ को हुआ था । इनके पिताजी का नाम पंडित हरिराम बडोनी तथा माताजी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैद्य थे । सन् १९१९ में जब क्षेत्र में भयानक हैजा रोग का प्रकोप हुआ तब उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना रोगियों की दिन रात एकनिष्ठ सेवा की। उनके परिश्रम से रोगियों को कुछ राहत तो मिली लेकिन वे स्वयं हैजा के शिकार हो गए और मात्र ३६ वर्ष की आयु में परलोक चले गये। उसके बाद सुमन जी की दृढ़ निश्चयी मां ने श्रीदेव सुमन का लालन-पालन तथा शिक्षा का उचित प्रबं

Biodiversity Day Special : जैव विविधता का असंतुलन है केदारनाथ जैसी त्रासदी - संदीप ढौंडियाल ।। web news uttrakhand ।।

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अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष जैव विविधता अर्थात जीवों के अनेक प्रकार या कह सकते हैं जीवन के अनेक रूप। प्रकृति में मौजूद वनस्पति से लेकर सभी जीव जंतुओं की संतुलित मौजूदगी पर चिंता ने ही जैव विविधता दिवस की परिकल्पना की। निरंतर होते जा रहे प्रकृति के दोहन ने आज पूरे विश्व को इस ओर ध्यान आकर्षित कर सोचने पर मजबूर किया है। इन्हीं तमाम चिंताओं को लेकर विश्व समुदाय ने 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। प्रत्येक वर्ष एक नए विषय पर पूरे विश्व भर में चिंतन और मनन होता है। साथ ही उस पर तमाम देश अच्छे सुझाव को लेकर जैव विविधता के संरक्षण के कार्य को अंगीकार करते हैं। सही मायने में प्रकृति जैसे - हवा, पानी, पेड़, वनस्पति सहित वन्य जीव जंतु का मानव से सीधा जुड़ाव ही जैव विविधता है। प्रकृति या पर्यावरण का असंतुलित हो जाना ही कारण बनता है प्राकृतिक उथल - पुथल का। जिसके फिर भयंकर परिणाम सामने आते हैं। जैसे बाढ़, चक्रवात, तूफान और भूकंप जैसी अप्रिय घटनाओं का होना। इन सब को देखते हुए मानव सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी हो जाता ह